“जाति” के जरिए “जीत” को साधने की जुगत …?

अपना एमपी गज्जब है.102

(अरुण दीक्षित)

मध्यप्रदेश के रिकॉर्डतोड़ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक और रिकॉर्ड बना दिया है। वे एमपी के ऐसे पहले मुख्यमंत्री भी बन गए हैं जिन्होंने विधानसभा चुनाव का प्रचार अभियान शुरू करने के बाद अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया है। इस विस्तार के जरिए उन्होंने आखिरी क्षणों में, चुनावी गणित के हिसाब से, जातियों को साधने की कोशिश की है। देखना यह है कि क्या यह विस्तार, तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद भी, उनकी पार्टी को फिर से सत्ता में लाने के लिए “जीवन रक्षक औषधि” का काम कर पाएगा!क्योंकि अब यह तो कह नहीं सकते कि यह विस्तार उन्हें पांचवी बार राज्य का मुखिया बनवाएगा। क्योंकि जब पार्टी के वास्तविक “कमांडर” अमित शाह बार बार पूछे जाने पर भी यह नही कह रहे हैं तो फिर हम कैसे कहें?

शिवराज के इस मंत्रिमंडल विस्तार से कुछ बातें तो एकदम साफ हो गईं हैं। पहली – वे किसी भी कीमत पर जातियों को साधना चाहते हैं। दूसरी – पार्टी के भीतर अपने विरोधियों को कांग्रेस की तर्ज पर निपटा रहे हैं!तीसरी – भले ही उनकी पार्टी घोषित तौर पर जातीय जनगणना का विरोध करे लेकिन वे जातियों को साध कर ही जीत पाने की कोशिश कर रहे हैं। चौथी – दावे कुछ भी किए जाएं पर दलित और आदिवासी बीजेपी में अभी भी शोभा की वस्तु से ज्यादा कुछ नहीं हैं।

पहले मंत्रिमंडल विस्तार की बात करते हैं। शिवराज ने शनिवार को सबेरे सबेरे तीन नए चेहरे अपने मंत्रिमंडल में शामिल किए। इनके नाम हैं – गौरी शंकर बिसेन, राजेंद्र शुक्ला और राहुल लोधी!यह सवाल बेमानी है कि इन्हें कौन सा विभाग मिलेगा और कितने दिन काम करने का मौका !अगर समय पर चुनाव हुए तो इन मंत्रियों को कुल 45 दिन मिलेंगे। क्योंकि बाकी समय तो आचार संहिता की भेंट चढ़ जायेगा। इतने दिन में ये क्या हासिल कर लेंगे ये तो वे ही जाने लेकिन एक नए मंत्री द्वारा “सर्जिकल स्ट्राइक” का उदाहरण दिए जाने से यह साफ है कि उनका इरादा क्या है। इन मंत्रियों के नामों से यह भी साफ है कि शिवराज ने नाराज जातियों को साधने की कोशिश की है।

71 बसंत देख चुके गौरी शंकर बिसेन बालाघाट से हैं। वे पिछली सरकार में मंत्री थे। समझौता सरकार में उन्हें बाहर रहना पड़ा था। लेकिन शिवराज ने उन्हें पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष बना कर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे रखा था। अब उनका दर्जा हटाकर सीधे कैबिनेट मंत्री बना दिया है। कड़क स्वभाव के बिसेन पवार जाति के हैं। महाकौशल क्षेत्र, खासकर बालाघाट सिवनी और छिंदवाड़ा में पवार जाति का दबदबा है। पिछड़े वर्ग की इस जाति के लोग गौरी शंकर को बहुत मानते हैं। इसलिए उन्हें साधने के लिए उन्हें मंत्री पद दिया गया है। कहा यह भी जा रहा है कि छिंदवाड़ा में कमलनाथ को घेरने के लिए और पार्टी के भीतर केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल को किनारे पर रखने के लिए बिसेन को सरकार में नाइट बैट्समैन बनाया गया है।

रीवा के राजेंद्र शुक्ला शिवराज के करीबी माने जाते हैं। मार्च 2020 में कोटे की कमी की वजह से वे उन्हें मंत्री नही बना पाए थे। वे बनते तो अब भी नहीं!लेकिन सीधी के आदिवासी पेशाब कांड ने उन्हें डेढ़ महीने का मंत्री बनवा दिया है। पेशाब कांड के बाद सरकार ने जो सख्ती आरोपी पर की थी उससे पूरे विंध्य क्षेत्र के ब्राह्मण नाखुश हैं। इसके अलावा एक गिरीश गौतम (विधानसभा अध्यक्ष) को छोड़ किसी ब्राह्मण विधायक को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली थी। अतः पार्टी के भीतर और बाहर खासी नाराजगी है। आर्थिक रूप से संपन्न और स्वभाव से विनम्र राजेंद्र शुक्ला को अब लालबत्ती की गाड़ी में बैठ कर विंध्य के नाखुश ब्राह्मणों के आगे मत्था टेकना होगा।

राज्यमंत्री बनाए गए राहुल लोधी की सबसे बड़ी योग्यता यह है कि वे पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के भतीजे हैं। उनके लिए शिवराज या कहें बीजेपी ने अपने कई नियम तोड़े हैं। राहुल पहली बार के विधायक हैं। उन पर कई आरोप भी हैं। अपनी पत्नी को जिला पंचायत अध्यक्ष चुनवाने के समय वे काफी चर्चा में रहे थे। राहुल कम समय में सर्जिकल स्ट्राइक भी करना चाहते हैं।

लेकिन उनकी बुआ के दवाब और लोधी समाज के वोटों को अपने पाले में करने के लिए शिवराज ने उन्हें ग्यारहवां खिलाड़ी बना लिया है। सब जानते हैं कि उमा भारती पिछले कई साल से शिवराज सरकार को कटघरे में खड़ा करती आ रही हैं। उन्होंने शराब बंदी आंदोलन चलाया! शराब की दुकानों पर पत्थर फेंके! गोरक्षा का मुद्दा भी उठाया। प्रदेश के अस्पतालों और स्कूलों की दुर्दशा की भी बात की। बीजेपी नेतृत्व को भी पता है कि प्रदेश में लोधी मतदाता करीब 30 सीटों पर निर्णायक भूमिका में हैं। इसी वजह से पहले उनके करीब प्रीतम लोधी को पिछोर से प्रत्याशी घोषित किया। कई अपराधिक मुकदमें लड़ रहे प्रीतम लोधी ब्राह्मण विरोधी टिप्पणी की वजह से पार्टी से निकाले गए थे। लेकिन बाद में वापस लिए गए। कहा यह भी जा रहा है कि राहुल की आड़ में मुख्यमंत्री ने केंद्रीय राज्य मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल को भी संदेश दे दिया है। हालांकि लोधी समाज में प्रह्लाद की भी अच्छी खासी पकड़ है। मंत्री पद के दावेदार उनके छोटे भाई जालम सिंह पटेल लोधी समाज के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। लेकिन जालम की बजाय राहुल को मंत्री बनाकर शिवराज ने अपनी प्राथमिकता साफ कर दी है।

एक बात बहुत खास है। शिवराज ने दलित और आदिवासी वर्ग से कोई नया मंत्री नही बनाया है। जबकि कई वरिष्ठ नेता इंतजार में थे। करीब 100 विधानसभा सीटों पर दलित और आदिवासी मतदाता अपना मनचाहा प्रत्याशी चुनवा सकते हैं!उनकी अनदेखी पर सबको आश्चर्य हो रहा है।

ऐसा नहीं है कि शिवराज ने जाति को साधने का काम पहली बार किया है। 17 साल से ज्यादा समय से राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले इस नेता ने पिछले कुछ महीनों में पूरे प्रदेश में जातियों को साधने का काम किया है। उन्होंने जातियों को खुश करने के लिए उनके लिए सरकारी बोर्ड बनाए। उनके नेताओं को मंत्री दर्जे दिए। उनके देवताओं के लिए लोक बनाने के ऐलान किए। यही नहीं उन्होंने राजपूतों की करणी सेना द्वारा भोपाल की सड़कों पर उन्हें गाली दिए जाने को भी अनदेखा कर दिया। वे दुखी हुए। अपनी स्वर्गीय मां की दुहाई भी दी। लेकिन फिर गाली देने वालों को माफ भी कर दिया। भोपाल में पद्मावती की मूर्ति भी लग गई और महाराणा प्रताप लोक बनाने का ऐलान भी हो गया।

कुल मिलाकर शिवराज सिंह अपने राज्य के भीतर जातियों को साधने में जुटे हुए हैं। बीजेपी की सोच से हटकर उनका नारा है – जाति के साधे कुर्सी सधे

खुल कर मिलेंगे वोट…

जाति को पकड़ के रखना है

चाहे कोई करे कितनी भी चोट…

फिलहाल देखना यह है कि जीत के लिए जीवन रक्षक दवाई कोरामीन के इंजेक्शन की तरह उपयोग किए गए इस विस्तार का चुनाव पर कितना असर होता है!या फिर “डोज” बढ़ाने के लिए एक बार फिर मंत्रिमंडल विस्तार करेंगे? क्योंकि एक सीट अभी भी खाली है।

साथ ही नजर इस पर भी रहेगी कि करीब डेढ़ महीने के वास्तविक कार्यकाल में ये तीनों मंत्री कौन सी सर्जिकल स्ट्राइक करेंगे?

प्रतिशत” का आंकड़ा स्थिर रहेगा या फिर शेयर बाजार की तरह उछलेगा?

कुछ भी हो..इतना तो तय है कि अपनी एमपी है तो गज्जब !आपको क्या लगता है।

(साई फीचर्स)