(अरुण दीक्षित)
अचानक बीजेपी में ऐसी घटनाएं घट रही हैं जो पिछले करीब एक दशक में देखने को नहीं मिलीं! पार्टी के भीतर अब तक नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ताकतवर होती प्रतीत हो रही थी लेकिन अब उस पर सवाल उठने लगे हैं। ये सवाल जमीनी नेता भी उठा रहे हैं और सुब्रह्मण्यम स्वामी जैसे परजीवी नेता भी।
यह एक सामान्य धारणा है कि बीजेपी पर संघ का अघोषित “नियंत्रण” रहता है। भले ही वह खुद को सामाजिक संगठन बताता हो लेकिन सच्चाई यह है कि बीजेपी की लगाम हमेशा उसके ही हाथ में रही है। चाहे जिन्ना की मजार पर मत्था टेकने के बाद लालकृष्ण आडवाणी को पद से हटाने का मामला हो या नरेंद्र मोदी को दंगों के बाद भी गुजरात का मुख्यमंत्री बनाए रखने और प्रधानमंत्री प्रत्याशी घोषित करने का फैसला हो! सब कुछ संघ के निर्देश पर ही हुआ था। कहा तो यह भी जाता है कि बीजेपी का चाहे जितना बड़ा नेता क्यों न हो, वह संघ की कठपुतली ही रहता है। जैसे संघ चलाए वैसे उसे चलना होता है। अगर अपनी अलग लाइन खींचने की कोशिश की तो फिर उसकी डोर काट दी जाती है। ऐसे डोर कटे नेताओं की सूची बहुत लंबी है।
पिछले कुछ दिनों से बीजेपी के भीतर और बाहर संघ की यही कुछ कठपुतलियां लगातार बोल रहीं हैं। इस सूची में सबसे पहला नाम सुब्रह्मण्यम स्वामी का है। स्वामी लंबे समय से नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला कर रहे हैं। चीन पर मोदी के मौन को उन्होंने उनकी कायरता तक कहा है। स्वामी साफ साफ कह रहे हैं कि अगर चीन को जवाब नही दे सकते तो मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़ देनी चाहिए।
जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सतपाल मलिक ने तो पुलवामा अटैक से लेकर तमाम अहम मुद्दों पर मोदी के खिलाफ साफ साफ आरोप लगाए हैं। लेकिन आज तक उन्हें न तो रोका गया। न ही उनके खिलाफ कोई कदम उठाया गया। हां यह कहा जा सकता है कि राज्यपाल बनने के बाद वे तकनीकी रूप से बीजेपी के सदस्य नहीं है। लेकिन उन्होंने आज तक जो कुछ बोला है उस पर मोदी का मौन कायम है।
इस सूची में ताजा नाम राजस्थान के वरिष्ठ बीजेपी नेता कैलाश मेघवाल का जुड़ा है। राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष रह चुके कैलाश मेघवाल ने मोदी सरकार के कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि पूर्व नौकरशाह अर्जुन भृष्ट और बेईमान है। मोदी को उन्हें अपने मंत्रिमंडल में नही रखना चाहिए। कैलाश ने यह भी कहा है कि इस बारे में वे मोदी को चिट्ठी भी लिखेंगे! राजस्थान की राजनीति में कैलाश पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के साथ हैं। सिंधिया और मोदी के रिश्तों की खटास जगजाहिर है।
ये तीनों नेता तो बोले हैं। लेकिन चौथे बड़े नेता ने तो बिना बोले ही बहुत कुछ कह दिया है। ये नेता हैं मोदी के सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी। नागपुर के नितिन बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। पार्टी के ही कुछ नेताओं ने कांग्रेस की मदद से उन्हें दूसरी बार अध्यक्ष नही बनने दिया था। वे नेता कौन थे यह सब जानते हैं।
मोदी के लिए गडकरी बड़ी चुनौती हैं, यह बात बीजेपी का बच्चा बच्चा जानता है। नागपुर का होने की वजह से नितिन के संघ में भी संबंध बहुत गहरे हैं।
आजकल एक वीडियो सोशल मीडिया में खूब चल रहा है। नरेंद्र मोदी लाइन में खड़े अपने मंत्रियों के सामने से हाथ जोड़ कर अभिवादन करते हुए जा रहे हैं। लगभग सभी मंत्री मोदी के आगे दंडवत होने की कोशिश करते दिख रहे हैं। लेकिन जब मोदी गडकरी के सामने पहुंचते हैं तो उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं आता है। यही नहीं गडकरी अपने हाथ पीछे से आगे भी नही लाते हैं। अभिवादन का उत्तर देना तो दूर की बात है। मोदी पर केंद्रित कैमरा में यह घटनाक्रम बहुत ही स्पष्ट दिखाई दे रहा है।
मोदी शाह की टीम लंबे समय से गडकरी को किनारे लगाने की कोशिश में लगी है। संसदीय बोर्ड से भी उन्हें हटा दिया है। कई बार सार्वजनिक रूप से उन्हें नीचा दिखाने की कोशिशें सरकारी स्तर पर हुई हैं। पिछले दिनों एक सड़क की लागत को लेकर भी गडकरी पर सवाल उठाए गए। इन सवालों का आधार उसी महालेखाकार की रिपोर्ट है जिसने कुछ साल पहले कांग्रेस सरकार पर आधारहीन आरोप लगाकर बीजेपी की मदद की थी। बाद में कोर्ट में माफी भी मांगी थी। लेकिन मोदी सरकार में उन्हें उल्लेखनीय ढंग से पुरस्कृत किया गया।
नितिन गडकरी को लेकर एक बड़ा डिवलपमेंट मध्यप्रदेश में भी हुआ है। वह भी वीडियो सामने आने के बाद। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव की तैयारी चल रही है। नरेंद्र मोदी ने अमित शाह के जरिए राज्य का पूरा नियंत्रण अपने हाथ में ले रखा है। साथ ही यह भी साफ कर दिया है कि पार्टी में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड बनाने वाले शिवराज सिंह चौहान अभी मुख्यमंत्री भले ही हों लेकिन वे अगले मुख्यमंत्री नही होंगे। यह ऐलान खुद अमित शाह ने किया था।
मध्यप्रदेश में बीजेपी जीत के लिए 5 जनआशीर्वाद यात्राएं निकालने वाली है। दो दिन पहले मोदी मंत्रिमंडल के सदस्य और मध्यप्रदेश चुनाव प्रबंधन समिति के संयोजक नरेंद्र सिंह तोमर और प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने इन यात्राओं का ब्यौरा मीडिया को दिया था। तब उन्होंने बताया था कि अमित शाह चित्रकूट से यात्रा का शुभारंभ करेंगे। पांच में से एक जगह पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्ढा हरी झंडी दिखाएंगे जबकि अमित शाह और राजनाथ सिंह दो दो जगहों पर यात्रा को रवाना करेंगे। 25 सितम्बर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भोपाल में इन यात्राओं का समापन करेंगे।
लेकिन अगले ही दिन कार्यक्रम संशोधित हो गया। उसमें दो बड़े बदलाव हुए। पहला यह कि यात्रा की शुरुआत 3 सितम्बर को अमित शाह नही बल्कि पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्ढा करेंगे। साथ ही इस सूची में नितिन गडकरी का नाम भी जुड़ गया। अब 6 सितंबर को नितिन खंडवा से जन आशीर्वाद यात्रा को रवाना करेंगे। इस सूची में गडकरी का नाम आना बहुत बड़ा संकेत माना जा रहा है।
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों की माने तो नितिन गडकरी का नाम संघ के निर्देश पर ही जोड़ा गया है। कहा यह भी जा रहा है कि महालेखाकार के जरिए गडकरी को बदनाम करने के खेल से संघ नाखुश हुआ है।
यह सब जानते हैं कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ सत्ता के सूत्र परोक्ष रूप से अपने हाथ में रखता है। वह कठपुतली की तरह अपने सेवकों को नचाता है। संघ की मर्जी के बिना कोई नेता कुछ बोल ही नहीं सकता है।
सुब्रह्मण्यम स्वामी के लगातार बोलने के बाद भी न बीजेपी ने उनके खिलाफ कोई कदम उठाया न ही उन्हें रोका गया है। नितिन गडकरी द्वारा सार्वजनिक रूप से मोदी की अनदेखी भी ऐसा ही मामला है। अब राजस्थान के कैलाश मेघवाल द्वारा मोदी के मंत्री को चोर बताया जाना भी बड़ी अनुशासनहीनता की श्रेणी में ही आता है। लेकिन बीजेपी नेतृत्व मौन साधे हुए है।
माना यह जा रहा है कि संघ का मोदी से मोह भंग हो रहा है। मोदी के खिलाफ पार्टी के भीतर से आवाजें उसी के इशारे पर उठाई जा रही हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो अब तक स्वामी, मलिक और मेघवाल गोविंदाचार्य की गति को प्राप्त कर चुके होते।
अंग्रेजी में एक कहावत है – Running with the hares and hunting with the hounds. इसका अर्थ है खरगोशों के साथ दौड़ना और कुत्तों के साथ शिकार करना। संघ कुछ इसी तर्ज पर अपना काम कर रहा है। उसी की शह पर मोदी के खिलाफ आवाजें उठना शुरू हुई हैं। इन आवाजों के जरिए ही वह मोदी की लगाम कसेगा। गडकरी का नाम मध्यप्रदेश की “यात्रा” में जोड़ा जाना इसका पहला प्रमाण है।
अब देखना यह है कि कठपुतलियों का यह खेल कब तक अपने चरम पर पहुंचता है। क्योंकि मोदी खुद तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने का ऐलान कर चुके हैं। अभी तक पूरे देश में पार्टी भी उनके ही इशारों पर चली है। अपने हिंदू एजेंडे की वजह से “मौन” रह कर दूर से तमाशा देख रहा संघ अपनी मुख्य भूमिका में आता नजर आ रहा है। मोदी के लिए यह शुभ संकेत नही माना जा सकता है।
(साई फीचर्स)