(पंकज शर्मा)
राजस्थान के सवाई माधोपुर में में राहुल गांधी ने दो बेहद अहम बातें कही।उन्होंने कहा कि जो कांग्रेसजन अपने भाषणों में महात्मा गांधी से मेरी तुलना कर रहे हैं, वे मेरे साथ घोर अन्याय कर रहे हैं। कहां गांधी, कहां मैं? उन की महानता के सामने मैं कौन? इसलिए कृपया ऐसा कर के मुझे शर्मिंदा न किया करें। दूसरी बात राहुल ने यह कही कि गांधी जी ने, नेहरू जी ने, इंदिरा जी ने और राजीव जी ने बहुत-से काम किए और अच्छे काम किए। भाषणों में कभी-कभार उन कामों का ज़िक्र करना तो ठीक है, लेकिन हमेशा यह रट लगाए रखने के बजाय हमें लोगों को यह बताना चाहिए कि आगे चल कर हम उन के लिए क्या करने वाले हैं, क्या करने का सोच रहे हैं और क्या करेंगे।
राहुल गांधी ने राजस्थान के सवाई माधोपुर में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान अपने संबोधन में दो बेहद अहम बातें कहने की हिम्मत दिखाई। उन्होंने कहा कि जो कांग्रेसजन अपने भाषणों में महात्मा गांधी से मेरी तुलना कर रहे हैं, वे मेरे साथ घोर अन्याय कर रहे हैं। कहां गांधी, कहां मैं? उन की महानता के सामने मैं कौन? इसलिए कृपया ऐसा कर के मुझे शर्मिंदा न किया करें। दूसरी बात राहुल ने यह कही कि गांधी जी ने, नेहरू जी ने, इंदिरा जी ने और राजीव जी ने बहुत-से काम किए और अच्छे काम किए। भाषणों में कभी-कभार उन कामों का ज़िक्र करना तो ठीक है, लेकिन हमेशा यह रट लगाए रखने के बजाय हमें लोगों को यह बताना चाहिए कि आगे चल कर हम उन के लिए क्या करने वाले हैं, क्या करने का सोच रहे हैं और क्या करेंगे।
ये दो बातें सुनने के बाद तो कांग्रेसियों की समझ में यह अच्छी तरह आ जाना चाहिए कि, अगर अपनी लल्लोचप्पो कराने की कोई ललक कभी राहुल में थी भी, तो वे उस से पूरी तरह बाहर आ गए हैं और अतीत की तोतारटंत के बजाय भावी तस्वीर को गढ़ने के उपक्रम पर ज़्यादा ध्यान देना चाहते हैं। इस से पहले राहुल ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान मध्यप्रदेश के इंदौर में अपने संवाददाता सम्मेलन में एक पत्रकार के सवाल के जवाब में कहा था कि ‘मैं ने उस राहुल गांधी को बहुत पीछे छोड़ दिया है। यह राहुल, वह राहुल है ही नहीं, जो आप के दिमाग़ में बैठा हुआ है। मेरे दिमाग़ से तो वह राहुल ग़ायब हो चुका है।’
महात्मा गांधी से ख़ुद की तुलना पर तो, चलिए, कोई भी सकुचाएगा। राहुल तो राहुल हैं, ऐसी तुलना पर तो उन के नाना जवाहरलाल नेहरू भी अपनी कमतरी के अहसास से भर जाते। सो, इस पर राहुल का ऐतराज़ एकदम कुदरती है। मगर नैसर्गिक आंतरिक साहस के बिना यह कहना संभव नहीं है कि कांग्रेस के पूर्वजों ने जो किया, कर के दिखा दिया, पर उस का ही महिमा मंडन करते रहने के बजाय यह तो बताइए कि आप ख़ुद आगे क्या करेंगे? राहुल ने कहा कि गांधी जी, इंदिरा जी और राजीव जी ने प्राणों की कुर्बानी दे दी, नेहरू जी ने बड़े-बड़े काम किए, लेकिन लोग जानना चाहते हैं कि हम-आप क्या करेंगे? रट्टूपन की सियासी शैली से बाहर आ कर नई संभावनाओं के नक्शे को आकार देने की इस पहलक़दमी के लिए मैं तो राहुल का इकराम करूंगा।
राजस्थान का सवाई माधोपुर मध्यप्रदेश के इंदौर का विस्तार है। मुझे तो हमेशा से लगता था कि यही राहुल का असली भाव-रूप है, लेकिन रूपांतरण के इस विराट स्वरूप का सार्वजनिक दर्शन ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की उपलब्धि है। अगर ‘भारत जोड़ो यात्रा’ नहीं होती तो लोगों को कभी पता ही नहीं चल पाता कि राहुल दरअसल हैं क्या? यह यात्रा अगर नहीं होती तो शायद राहुल को भी यह पता नहीं चल पाता कि वे दरअसल हैं क्या? इस यात्रा ने राहुल को उस कूप से बाहर निकाला, जिस में बैठे वे अपने द्वारपालों की आंखों के ज़रिए दुनिया देख रहे थे। आप देखना कि यह यात्रा समाप्त होने के बाद राहुल के बग़लगीर कैसे ‘पुनर्मूषको भवः’ गति को प्राप्त होते हैं। यह यात्रा राहुल के लिए सार-सार गहि लेने और थोथा उड़ा देने की विद्या का अभ्यास करने का गुरुकुल बन गई है।
बावजूद इसके कि राहुल के साथ इस यात्रा में कई सहयात्री दरअसल लालायित शक़्ल-दिखाऊ स्पर्धी हैं और बावजूद इसके कि यात्रा को इक्कादुक्का विचलनों से बचाया जा सकता तो बेहतर होता; यह यात्रा कांग्रेस को तो जो ऐतिहासिक मोड़ देगी, सो, देगी; इतिहास में राहुल के पन्ने की इबारत को तो शाश्वत स्वर्णाक्षरी ज़रूर बना देगी। यात्रा के दौरान राहुल की सोच की जैसी फुहारें बीच-बीच में हमारी राजनीति के खुरदुरे गालों को सहला रही हैं, उन से कांग्रेस के ज़मीनी और सत्यनिष्ठ तबके में एक नई आश्वस्ति का भाव उपजता दिखाई दे रहा है। राजस्थान में प्रवेश करते वक़्त, बढ़ती सर्दियों का हवाला दे कर, जब कुछ दिग्गज सहयात्रियों ने राहुल से हर रोज़ की यात्रा का समय सुबह छह बजे के बजाय साढ़े छह या सात बजे करने का आग्रह किया तो उन्हें जवाब मिला कि जब किसान इस मौसम में सुबह तीन-चार बजे खेत में पानी लगाने जा सकता है तो हम छह बजे पदयात्रा पर क्यों नहीं निकल सकते? सहयात्रियों से सायंकालीन गपशप में एक शाम राहुल ने कहा कि मैं ने ज़िंदगी में पता नहीं कितने लोगों से हाथ मिलाए होंगे, मगर इस यात्रा में जितने लोगों के हाथों का खुरखुरापन मैं ने भीतर तक महसूस किया है, उसने मेरी जीवन-दृष्टि को पूरी तरह बदल डाला है। भारत को समझना है तो पैदल ही चलना होगा।
क्रिसमस के एक दिन पहले ‘भारत जोड़ो यात्रा’ दिल्ली पहुंचेगी और फिर नौ दिन का अवकाश रहेगा। इसे ले कर थोड़ी कुनमुनाहट है। कहने वाले कह रहे हैं कि इस से अच्छा संदेश नहीं जाएगा; अगर नए दिन की अगवानी के लिए यात्रा नौ दिन स्थगित की जा सकती है तो गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव प्रचार में राहुल को भेजने के लिए भी पांच-पांच दिन के लिए उसे रोका जा सकता था; और, अंग्रेज़ी नव वर्ष के आगमन का उत्सव राहुल के लिए इतना ज़रूरी क्यों है? मुझे लगता है कि 28 दिसंबर की सुबह कांग्रेस का स्थापना दिवस मनाने के फ़ौरन बाद राहुल अगर अपनी पदयात्रा फिर शुरू कर देते तो बेहतर होता। लेकिन मैं यह भी मानता हूं कि राहुल के आदतन-विरोधी इस मसले को नाहक तूल दे रहे हैं। यात्रा के दौरान दशहरे पर भी दो दिन की छुट्टी थी और दीवाली पर भी तीन दिन की। दशहरा मैसूर में मना था और दीवाली कर्नाटक से तेलंगाना में प्रवेश के वक़्त दोनों प्रदेशों की सरहद पर। भारत-यात्रियों ने विश्राम-शिविर में ही दोनों त्यौहार मनाए थे। सिर्फ़ क्रिसमस और नए साल पर ही छुट्टी है – ऐसा नहीं है।
मैं मानता हूं कि ज्ञात इतिहास की चार ऐसी विख्यात यात्राएं हैं, जिन्होंने आसुरी प्रवृत्तियों के खि़लाफ़ ठोस विरोध दर्ज़ कराते हुए भारत के जुड़ाव-भाव को सुदृढ़ बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। पहली पदयात्रा राजकुमार से वनवासी बने राम की थी। नौ-साढ़े नौ हज़ार साल पहले अयोध्या से रामेश्वरम के बीच राम पांच-सात हज़ार किलोमीटर तो पैदल चले ही होंगे। भारत को एक सूत्र में बांधने के लिए आदि शंकराचार्य ने भी हज़ारों किलोमीटर की पदयात्रा की। फिर महात्मा गांधी ने देश की एकजुटता और आज़ादी के लिए 79 हज़ार किलोमीटर की यात्राएं कीं। यानी पृथ्वी के दो चक्कर लगाने जितनी दूरी। इनमें से दस-बारह हज़ार किलोमीटर वे पैदल भी चले होंगे। अपने भूदान यज्ञ के लिए विनोबा भावे भी तेरह साल तक देश भर में हज़ारों किलोमीटर पैदल घूमे। राहुल इनमें से किसी के पासंग भी नहीं हैं, लेकिन उनकी पदयात्रा में इन चार यात्राओं की परछाईं, आपको भले न दिखे, मुझे तो दिखती है। जिन्हें ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के त्वरित नतीजों का स्थूल हिसाब-किताब लगाना है, लगाते रहें, मुझे इस यात्रा के दूरगामी सकल परिणामों को ले कर सचमुच बड़ी आस है।
(लेखक न्यूज़-व्यूज़ इंडिया और ग्लोबल इंडिया इनवेस्टिगेटर के संपादक हैं।)
(साई फीचर्स)
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