असेम्बल्ड बनाम ऑर्गेनिक पार्टी!

 

 

(अजित द्विवेदी)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले हफ्ते के अंत में भाजपा के लोकसभा और राज्यसभा सांसदों की कार्यशाला में अपनी पार्टी को लेकर एक बहुत अहम बात कही। उन्होंने कहा कि भाजपा कोई असेम्बल्ड पार्टी नहीं है और न एक परिवार के करिश्मे पर आगे बढ़ी है। उन्होंने आगे कहा कि भाजपा एक ऑर्गेनिक पार्टी है और आज जिस मुकाम पर है वह अपनी विचारधारा की वजह से है। इससे दो बातें निकल कर आती हैं- असेम्बल्ड बनाम ऑर्गेनिक और विचारधारा बनाम परिवार या व्यक्ति का करिश्मा।

कोई संदेह नहीं है कि कांग्रेस एक असेम्बल्ड पार्टी है और आज से नहीं, जब से बनी तभी से। उसका इतिहास ही ऐसा है। आजादी के पहले कांग्रेस कोई पार्टी नहीं थी, बल्कि एक आंदोलन थी, जिसमें हर विचारधारा के लोग जुड़े थे। कांग्रेस के अंदर गरमपंथी और नरमपंथी दोनों विचारधारा के लोग थे। घनघोर हिंदुवादी विचारधारा के नेता भी कांग्रेस में थे तो सेकुलर सोच-समझ के लोग भी पार्टी में थे। समाजवादी विचारधारा के तमाम चिंतक कांग्रेस के ही नेता थे और जयप्रकाश नारायण से लेकर आचार्य नरेंद्र देव तक तमाम समाजवादी विचारक 1946 में कांग्रेस से अलग हुए। आजादी के बाद भी पंडित नेहरू की पहली सरकार में हिंदुवादी नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी मंत्री थे तो कांग्रेस से अलग हो गए भीमराव अंबेडकर भी मंत्री थे।

आजादी के बाद भी कांग्रेस की इस स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। हर विचारधारा के लोग कांग्रेस से जुड़े रहे। राष्ट्रवादी, नरम हिंदुत्व के पैरोकार, सेकुलर विचारधारा के समर्थक कांग्रेस में रहे। यानी वैचारिक स्तर पर भी और नेता के स्तर पर भी कांग्रेस शुरू से असेम्बल्ड पार्टी रही है। पर ऐसा ही तो भारत देश भी है। यह एकमात्र देश है, जहां दुनिया के हर धर्म और हर धर्म के हर फिरके के लोग रहते हैं। धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता की ऐसी मिसाल दुनिया में कहीं नहीं है। इसी विविधता का प्रतीक कांग्रेस रही है। यह अपने आप हुआ था या महात्मा गांधी और पंडित नेहरू ने किसी डिजाइन के तहत इसे ऐसा बनाया था, यह अलग बहस का विषय है।

इसके मुकाबले भारतीय जनसंघ और बाद में बनी भाजपा एक खास वैचारिक आधार वाली पार्टी रही है। उसकी विचारधारा के बुनियादी सिद्धांत हिंदुत्व और राष्ट्रवाद हैं, जिसे लालकृष्ण आडवाणी ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद कहा। इस तरह विचार और नेतृत्व दोनों के स्तर पर उसमें विविधता पहले से ही नहीं थी। इस लिहाज से वह एक ऑर्गेनिक पार्टी कही जा सकती है। पर अब कम से कम नेताओं के स्तर पर भाजपा भी असेम्बल्ड पार्टी की तरह हो गई है। वहां भी देश की हर विचारधारा वाली पार्टियों के नेता आकर जुड़ रहे हैं और भाजपा खुले दिल से उनका स्वागत कर रही है। भाजपा की बिल्कुल विलोम विचारधारा वाली कम्युनिस्ट पार्टियों के नेता भी भाजपा में शामिल हुए हैं। देश भर के समाजवादी नेता तो अब अपने सबसे सम्मानित पूर्वज राम मनोहर लोहिया को भी हिंदुवादी ठहरा कर भाजपा में शामिल हो रहे हैं। कांग्रेस के लोग तो पहले से ही भाजपा में जा रहे थे।

इस मामले में कांग्रेस और भाजपा का फर्क यह है कि अलग विचारधारा का नेता जब कांग्रेस में जाता था तो वह अपनी राय के साथ पार्टी में मौजूद रहता था और समय समय पर उसे अभिव्यक्त भी करता था। पर भाजपा में जाने वाले नेताओं को पहले भाजपा की विचारधारा से सहमति जतानी होती है और तब वे पार्टी में जाते हैं। इस तरह दूसरी विचारधारा के नेता भी भाजपा में जाकर उसके ऑर्गेनिक संगठन का हिस्सा हो जाते हैं।

जहां तक करिश्मे का सवाल है तो कांग्रेस भी नेताओं के करिश्मे पर आगे बढ़ी है और भाजपा भी। इसमें विचारधारा का योगदान कम ही रहा है। महात्मा गांधी से लेकर नेहरू और इंदिरा गांधी तक जब तक कांग्रेस के पास करिश्माई नेतृत्व रहा उसने देश के लोगों के दिलों पर राज किया। भाजपा को भी सत्ता उसके करिश्माई नेताओं- अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी के नाम पर ही मिली। सो, परिवार या व्यक्ति के करिश्मे के लिहाज से दोनों पार्टियां एक जैसी हैं।

(साई फीचर्स)