(रविश कुमार)
मसूद अज़हर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा चिन्हित, प्रतिबंधित और सूचित ग्लोबल आतंकवादी हो गया है। भारत ने लंबे समय तक कूटनीतिक धीरज का पालन करते हुए उसी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से अज़हर को ग्लोबल आतंकी की सूची में डलवाया है जहां से उसे 2009, 2016, 2017 और मार्च 2019 में पहले सफलता नहीं मिली। पांचवीं बार में मिली यह सफलता कूटनीतिक धीरज की मिसाल बनेगी। 1 मई को जब 9 बजे तक चीन की तरफ से कोई आपत्ति नहीं आई तब एलान हो गया कि संयुक्त राष्ट्र की अल कायदा कमेटी मसूद अज़हर को अल-कायदा से संबंध रखने के आरोप में ग्लोबल आतंकी की सूची में डालती है।
भारत ने पुलवामा हमले के बाद मसूद अज़हर को आतंकी सूची में डलवाने की कवायद की थी मगर चीन भारत की दलीलों से सहमत नहीं हुआ। इस बार चीन सहमत नहीं होता तो इस पर संयुक्त राष्ट्र में खुला मतदान होता तब चीन के लिए मुश्किल हो जाता। 27 फरवरी को अमरीका, ब्रिटेन और फ्रांस ने साझा रूप से मसूद अज़हर के ख़िलाफ़ प्रस्ताव रखा था। उसमें यह आधार था कि जैश ए मोहम्मद ने घटना की ज़िम्मेदारी ली है। 13 मार्च को चीन ने आपत्ति लगा दी थी। इस बार 23 अप्रैल को फिर से इस प्रस्ताव को खोला गया। 1 मई तक आपत्ति दर्ज कराने की समय सीमा रखी गई थी। मसूद अज़हर को आतंकी सूची में इसलिए रखा गया है क्योंकि कमेटी ने पाया है कि मसूद अज़हर ने जैश-ए मोहम्मद को सपोर्ट किया है।
जिस जैश ए मोहम्मद को संयुक्त राष्ट्र की इसी 1267 कमेटी ने 2001 को प्रतिबंधित किया था। जैश ए मोहम्मद पर आरोप था कि अल कायदा से उसके वित्तीय और अन्य संबंध आतंकी संगठन अल-क़ायदा से रहे हैं। इस संगठन ने अफगानिस्तान में आतंकी बहाल करने का काम किया था। मसूद अज़हर जमात-उद-दावा का प्रमुख है। संगठन बदल-बदल कर काम करता रहा है। पुलवामा हमले के बाद जैश ए मोहम्मद ने घटना की ज़िम्मेदारी ली थी। भारत ने इस आधार पर मसूद अज़हर को घेरा था। लेकिन इस बार के प्रस्ताव से पुलवामा हमले को हटा दिया गया।
पाकिस्तान और चीन चाहते थे कि पुलवामा का ज़िक्र हटा दिया जाए। इसलिए 1267 के प्रस्ताव में पुलवामा और 2008 के मुंबई हमले का ज़िक्र नहीं है। संसद पर हुए हमले का ज़िक्र नहीं है। प्ब् 814 की घटना का ज़िक्र है। भारत मांग करता रहा है कि मुंबई हमले के मामले में उस पर मुकदमा चले और सज़ा हो। अच्छा होता कि मसूद अज़हर भारत में हुई आतंकी गतिविधियों के कारण प्रतिबंधित होता। इससे भारत को अपने भौगोलिक क्षेत्र में पाकिस्तान की आतंकी गतिविधियों को भी मान्यता मिलती। मसूद अज़हर हमारा दुश्मन है क्योंकि वह भारत की ज़मीन पर हुए आतंकी हमलों का अपराधी है।
जो भी हो उसे दूसरे कारणों से सज़ा तो मिली है। यह खुशी की बात है। पाकिस्तान कह सकता है कि पुलवामा का ज़िक्र नहीं है। उसे राजनीतिक तौर पर बदनाम करने के लिए इसका ज़िक्र डाला गया लेकिन मसूद अज़हर है तो उसी का नागरिक। क्या अल-क़ायदा से संबंध रखने के कारण प्रतिबंधित होना कम शर्म की बात है! भारत और दुनिया की नज़र अब इस बात पर होगी कि मसूद अज़हर की गिरफ्तारी कब होती है। वह उसके ख़िलाफ़ क्या कार्रवाई करता है। पाकिस्तान ने कहा है कि वह प्रतिबंध को लागू करेगा। 2001 में जैश-ए-मोहम्मद पर प्रतिबंध लगा था। इसके बाद भी कई घटनाओं में इस संस्था का ज़िक्र आता है।
इसके बाद भी वही अमरीका और वही चीन पाकिस्तान के साथ संबंध बनाए हुए हैं। चीन ने भी इस घटना पर बयान जारी किया है। चीन हमेशा मानता रहा है कि इस तरह का काम विस्तृत जानकारी, ठोस सबूत, पेशेवर आधार और सर्वसम्मति से होना चाहिए न कि पूर्वाग्रह के आधार पर। संबंधित पक्षों से सकारात्मक बातचीत के बाद प्रासंगिक देशों ने अपने प्रस्ताव को बदला है। चीन को एतराज़ नहीं है। यानी चीन को जिन बातों से एतराज़ से था उसे मान लिया गया है। चीन ने अपने बयान में यह भी जोड़ा है कि पाकिस्तान ने आतंकवाद से लड़ने में काफी योगदान का है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय पाकिस्तान को इस बात का श्रेय दे।
आतंक से लड़ने में पाकिस्तान को सहयोग करे। चीन ने चंद रोज़ पहले पाकिस्तान को अपने सभी मौसमों का साथी बताया था। पाकिस्तान भी अपना स्पेस मिशन कामयाब बनाना चाहता था। मानव युक्त यान भेजना चाहता है जिसमें चीन उसकी मदद कर रहा है। भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में लंबी दूरी की कामयाबी हासिल कर ली है। वो भी अपने दम पर। पाकिस्तान और चीन अपनी बात कहेंगे। कूटनीतिक तराजू पर बटखरा रखकर नहीं तौला जाता है। सब अपने अपने हिसाब से भार बताते हैं। विश्लेषण एक तरफ। मसूद अज़हर पर प्रतिबंध एक तरफ। भारत ने जिन कारणों से प्रयास किया था वो भले न माने गए हों मगर जिस दिशा में प्रयास किया था वो सफल रहा है। माना गया है।
(साई फीचर्स)
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