सूखे आंसुओं से जन्मे पत्थर की मार

(पंकज शर्मा)

नरेंद्र भाई मोदी की पुनर्वापसी के भजन गाते न अघा रहे रणबांकुरों के नथुने मेरी इस बात से गुस्से में फड़कने लगेंगे कि लोकसभा के तीसरे चरण में जिन 116 क्षेत्रों में मतदान हुआ है, उनमें से भारतीय जनता पार्टी मुश्क़िल से 36 जगह ही जीत रही है। कांग्रेस को इस चरण में कम-से-कम 54 सीटें मिल रही हैं। पांच बरस पहले के उफ़ान में भाजपा को इनमें से 63 और कांग्रेस को सिर्फ़ 16 सीटें मिली थीं। उससे भी पहले 2009 के चुनाव में इन 116 में से भाजपा ने 43 और कांग्रेस ने 38 सीटें हासिल की थीं।

पहले दो चरणों में 186 लोकसभा क्षेत्रों में हुए चुनाव के बारे में मैं ने अपना आकलन आपको पिछले शनिवार को बताया था कि भाजपा को 27 और कांग्रेस को 57 सीटें मिलेंगी। यानी अब तक हुए 302 सीटों के चुनाव में भाजपा को अकेले 63 और कांग्रेस को अकेले 111 सीटें मिल रही हैं। मैं जानता हूं कि जब तक नतीजे सामने नहीं आ जाते, मुझे मुंगेरीलाल बताने वालों की कमी नहीं रहेगी। लेकिन 23 मई को जब हम-आप एक-एक सीट का परिणाम अपनी उंगलियों पर गिनेंगे तो आपको आज कही मेरी बात याद आएगी।

तीसरे चरण में गुजरात की सभी 26 और केरल की सभी 20 सीटों पर मतदान हो चुका है। इस चरण में कर्नाटक की बाकी बची 14 सीटों पर भी मतदान पूरा हो गया। पिछली बार गुजरात में भाजपा ने सारी सीटें हथिया ली थीं। इस बार अगर उसने बहुत अच्छा प्रदर्शन भी किया तो वह 14-15 के आसपास ही रहेगी। केरल में तो वह पिछली बार भी शून्य पर थी। इस बार उसकी चरम-उम्मीद महज़ यह है कि वह एक सीट के साथ वहां अपना खाता खोल ले। कर्नाटक का बीजगणित भी दस साल बाद पूरी तरह बदला हुआ है।

241 लोकसभा क्षेत्रों में मतदान अभी बाकी है। छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश, तैलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, गोआ, अरुणाचल, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, अंडमान-निकोबार, दादरा-नगर हेवली, दमन-दीव और पुदुचेरी में सभी सीटों पर मतदान हो चुका है। बिहार की 40 में से 26, हरियाणा की सभी 10, हिमाचल प्रदेश की सभी 4, जम्मू-कश्मीर की 6 में से 3, झारखंड की सभी 14, मध्यप्रदेश की सभी 29, महाराष्ट्र की 48 में से 17, ओडिशा की 21 में से 6, पंजाब की सभी 13, राजस्थान की सभी 25, उत्तर प्रदेश की 80 में से 54, पश्चिम बंगाल की 42 में से 32, दिल्ली की सभी 7 और चंडीगढ़ की एक सीट पर मतदान अभी होना है। 29 अप्रैल को चुनाव के चौथे चरण में 9 राज्यों की 71 सीटों पर मतदान होगा।

चौथे चरण में बिहार की 5 सीटें शामिल हैं। उनमें भाजपा कहीं नहीं है। जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग लोकसभा क्षेत्र में मतदान तीन चरण में होगा। एक चरण का मतदान वहां हो चुका है। चौथे चरण में वहां के कुछ इलाक़ों में फिर मतदान होना है। यह सीट भाजपा को मिलने से रही। झारखंड की जिन 3 सीटों पर चौथे चरण में मतदान होगा, उसमें कोई एक भाजपा को मिल जाए तो मिल जाए। चौथे चरण में मध्यप्रदेश की 6 सीटें हैं। इनमें से ज़्यादा-से-ज़्यादा 3 भाजपा को मिल सकती हैं। महाराष्ट्र की बची 17 सीटों में से भी वह अधिकतम 2 पर जीत पाएगी। ओडिशा की बाकी बची 6 सीटों में एक भी उसे मिल जाए तो गनीमत है। चौथे चरण के चुनाव में जा रही राजस्थान की 13 सीटों में से भाजपा, बहुत हुआ तो, 5 पर अपना जलवा दिखा सकती है। उत्तर प्रदेश की 13 सीटों में से भाजपा 4 ले आए तो बड़ी बात है। पश्चिम बंगाल की 8 में से कोई एक अगर उसे मिल जाए तो हैरत ही होगी।

सो, चौथे चरण के 71 लोकसभा क्षेत्रों में से सिर्फ़ 17 में भाजपा की जीत के आसार हैं। इसका मतलब यह हुआ कि अब से दो दिन बाद जब पूरे देश में 373 लोकसभा सीटों पर मतदान हो चुका होगा, तब भाजपा सब मिला कर 80-90 के आंकड़े के आसपास बिलबिला रही होगी। आने वाले बाकी चरणों में भी अगर हवा का बहाव ऐसा ही बना रहा तो मुझे तो नरेंद्र भाई इस चुनाव में 160-165 पर सिकुड़ते नज़र आ रहे हैं। राजग के अपने सहयोगियों के साथ भी उनके छक्के कहीं 200 सीटों के इर्दगिर्द ही न छूट जाएं!

ऐसा इसलिए हो रहा है कि 2019 की चुनाव-सप्तपदी में भारतमाता की आंखों से पांच साल की यादों का पानी बह रहा है। अब तक सुबक रहे भारतवासी अपने आंसुओं को पोंछ कर यह चुनाव आते-आते पत्थर हो गए हैं। दो-तीन बरस से भीतर खदक रही उनकी बद्दुआओं ने अंततः जनतंत्र की राह में अपनी दुआओं के दीप जलाने शुरू कर दिए हैं। नरेंद्र भाई की आंधी का डंडा तो पिछले पांच साल से बज रहा था। मतदाताओं का डंडा पिछले पांच हफ़ते से बजना शुरू हुआ है।

देशवासी अपने प्रधानमंत्री को, अपनी कातर निग़ाहों से, ऐंठा-ऐंठा घूमता देख रहे थे। हेकड़ी की ईंट नरेंद्र भाई ने पहले उठाई थी। अवाम ने इतने लंबे इंतज़ार के बाद अब जा कर पत्थर अपने हाथ में लिए हैं। सो, जैसे-को-तैसा जवाब देने की ताब लिए मतदान केंद्रों पर पहुंच रहे लोग जिन्हें अभी दिखाई नहीं दे रहे हैं, उन्हें 23 मई को असलियत समझ में आएगी। मतदाता के होठों के चौराहे पर चुप्पी देख कर अंदाज़ मत लगाइए। उनके मन के भीतर का कोलाहल इस बार इतना घनेरा है कि नरेंद्र भाई का गाया जा रहा कोई आल्हा काम नहीं आने वाला! नरेंद्र भाई की सरकार की गठरी उठाते-उठाते देश अब उकता गया है।

इसलिए आपको मानना हो तो आज मानें, न मानना हो तो मई के चौथे बृहस्पतिवार तक इंतज़ार कर लें और उस दिन मानें। चुनावी मिट्टी की महक तो साफ़ बता रही है कि इस बार उससे कौन-से अंकुर फूट रहे हैं! विशाल जयकारा उत्सवों के बीच नरेंद्र भाई को इसका अहसास ही नहीं हो रहा है कि उनकी राह भीतर से कितनी पोली हो गई है! अपनी महिमा सुना-सुना कर उन्होंने खेल तो लोगों को विस्मित करने का खेला था, लेकिन अब वे ख़ुद ही ख़ुद से विस्मित हुए बैठे हैं। अब तक उनके गौरव-बखान से उनके अनुचर गौरवान्वित थे। अब स्वयं नरेंद्र भाई गौरवान्वित हो कर झूम रहे हैं।

लेकिन इस चराचर जगत की महिमा भी अपरंपार है। यह महिमा ऐसी है कि चुनावधर्मी राजनीतिकों को आज तक कभी समझ में नहीं आई। इसीलिए वे ऐन वक़्त पर गच्चा खा जाते हैं। हमारे प्रधानमंत्री अगर अपने अमेरिकी दोस्त बराक की अच्छी नींद लेने की तू-तड़ाक सलाह मान जाते तो अब उनका यह हाल न हो रहा होता। रोज़ सिर्फ़ तीन घंटे से सो कर वे मुल्क़ को जहां से जहां ले आए, उसी का ख़ामियाज़ा तो वे इस चुनाव में भुगत रहे हैं। देश दुरुस्त करने की ऐसी हड़बड़ी दिखाने के बजाय अगर वे शालीनता, संयम और समझदारी से काम लेते तो शायद 2019 भी उनका ही होता। लेकिन मौक़ा तो मौक़ा, नरेंद्र भाई ने तो लोगों की निग़ाह में ख़ुद को भी खो दिया। (लेखक न्यूज़-व्यूज़ इंडिया के संपादक और कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारी हैं.)

(साई फीचर्स)

 

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