(शशांक राय)
अब पार्टियां मेनिफेस्टो यानी घोषणापत्र को घोषणापत्र क्यों नहीं कह रही हैं? कोई उसे संकल्प पत्र कह रहा है, कोई वचन पत्र कह रहा है, कोई दृष्टि पत्र कह रहा है! ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए क्योंकि भारतीय राजनीति में घोषणा एक नकारात्मक शब्द बन गया है। नेताओं के बारे में आम मतदाता मानने लगा है कि वे सिर्फ घोषणा करते हैं और फिर उसे भूल जाते हैं। तभी घोषणापत्र के बारे में भी ऐसी ही धारणा बनी है।
72 साल के लंबे अनुभव के बाद आम लोगों ने मान लिया है कि कोई भी पार्टी अपने घोषणापत्र में जो बात कहे उसे वह नहीं पूरा करेगी। तभी पार्टियां इसके लिए नए शब्द ढूंढ रही हैं। हालांकि शब्द बदल जाने से लोगों का भरोसा कायम हो जाएगा, यह सोचना किसी बुद्धिहीन की सदिच्छा ही हो सकती है। सो, यह माना जाना चाहिए कि घोषणापत्र चाहे जिस नाम से जारी हो, लोग उस पर भरोसा नहीं करेंगे। पार्टियां भी इस बात को जानती हैं लेकिन घोषणापत्र जारी करना एक औपचारिकता होती है, जिसे निभाया जाता है। सो, कांग्रेस, भाजपा और सभी क्षेत्रीय पर्टियों ने घोषणापत्र जारी कर दिए हैं। सबने कुछ न कुछ लोक लुभावन वादे किए हैं, जिनमें से कुछ को सरकार बनने पर आधे अधूरे अंदाज में पूरा कर दिया जाएगा। बाकी बड़ी बड़ी बातें सिर्फ लिखी रह जाएंगी। बहरहाल, कांग्रेस और भाजपा दोनों के घोषणापत्र आ चुके हैं और यह देखना दिलचस्प होगा कि दोनों ने किस तरह से इसे ड्राफ्ट किया है।
भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणापत्र में कई लोक लुभावन वादे किए हैं। उसने देश के हर किसानों को छह हजार रुपए देने का वादा किया है तो साथ ही दुकानदारों और किसानों को पेंशन देने का वादा किया है। पर उसका असली फोकस देशभक्ति और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर रहा है। यह भाजपा की कोर ताकत रही है। पिछले महीने के आखिर में प्रचार शुरू करने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पार्टी को देशभक्त और विपक्षी पार्टियों को देशद्रोही बताना शुरू कर दिया था। भाजपा के घोषणापत्र का मूल भी यहीं सिद्धांत है।
तभी इसमें राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशभक्ति को सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है। पाकिस्तान के खिलाफ हुई सैन्य कार्रवाई को भी इसमें शामिल किया गया है और देश की सुरक्षा का वादा किया गया है। सो, कहा जा सकता है कि यहीं भाजपा की कोर ताकत और चुनाव लड़ने का असली एजेंडा है। उसने लोक लुभावन घोषणाओं का वादा तो इसलिए कर दिया क्योंकि कांग्रेस ने 72 हजार रुपए हर साले देने का भारी भरकम वादा किया है।
दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी के घोषणापत्र में लोक लुभावन वादों पर ज्यादा जोर है। यह भाजपा और कांग्रेस का बुनियादी फर्क है। कांग्रेस गरीबों का हित करने या कम से कम इसकी घोषणा करने में चौंपियन पार्टी रही है। वह चार-पांच दशक से यह करती आ रही है। गरीबी हटाओ से लेकर मनरेगा और मुफ्त आवास, शिक्षा, चिकित्सा जैसे कई कदम हैं, जो कांग्रेस की पिछली सरकारों ने उठाए हैं।
इसलिए जिस तरह भाजपा राष्ट्रवाद के मुद्दे पर भरोसा बना पाती है उसी तरह कांग्रेस लोक लुभावन घोषणाओं के प्रति भरोसा पैदा कर देती है। भाजपा से उलट कांग्रेस ने राष्ट्रवाद के मुद्दे को तरजीह नहीं दी है। उलटे यह वादा किया है कि सरकार बनी तो वह सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून की समीक्षा करेगी। कांग्रेस ने यह भी कहा है कि राजद्रोह के कानून को हटा देगी क्योंकि इसका बहुत दुरुपयोग होता है। भाजपा ने इन दोनों मुद्दों को उठा कर कांग्रेस को कठघरे में खड़ा किया है।
कांग्रेस का घोषणापत्र जारी होने के बाद से कोई भी दिन ऐसा नहीं बीता है, जब भाजपा ने इस पर सवाल नहीं उठाया है। कांग्रेस के लिए इसका जवाब देना भारी पड़ रहा है।
जाहिर है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ने अपनी अपनी ताकत को हाईलाइट करते हुए घोषणापत्र जारी किया है। कांग्रेस की ताकत लोक लुभावन घोषणाएं करने की है तो भाजपा की ताकत राष्ट्रवाद की है। घोषणापत्र देखने से लगता है कि दोनों ने अपना अपना क्षेत्र चुन लिया है। भाजपा का प्रचार राष्ट्रवाद के मुद्दे पर होगा तो कांग्रेस का लोक कल्याण के मुद्दे पर। यह देखना दिलचस्प होगा कि आम लोगों को कौन सा मुद्दा ज्यादा अपील करता है। अब यहीं पर नेतृत्व का फर्क दिखाई दे रहा है।
एक तरफ नरेंद्र मोदी हैं, जिन्होंने सारा नैरेटिव अपने आसपास बुना है और वे लोगों को यकीन दिला रहे हैं कि वे राष्ट्रवादी हैं, हिंदुवादी हैं और देश को सुरक्षित रखेंगे। दूसरी ओर राहुल गांधी अपने परनाना, दादी और पिता की विरासत के आधार पर दावा कर रहे हैं कि सिर्फ उनकी पार्टी ही गरीबों का कल्याण कर सकती है। मतदाता दोनों को तौल रहे हैं। उन्होंने मोदी का पांच साल का राज देखा है और राहुल गांधी के बारे में सोशल मीडिया में पिछले दस साल से ज्यादा समय से चल रहा दुष्प्रचार भी देखा है। सो, यह उनके विवेक पर निर्भर करता है कि वे किस पर भरोसा करते हैं।
(साई फीचर्स)