(प्रकाश भटनागर)
राजनीति के कुछ बहुत सामान्य से सिद्धांत हैं। राजनीतिक दलों के लिए सत्ता सर्वोपरि है। और राजनीति में न कोई स्थाई दोस्त होता है और ना ही स्थाई दुश्मन। तो महाराष्ट्र में सत्ता के लिए जो बैमेल गठबंधन बन रहा है, उसका सार कुल मिलाकर इतना ही है। लेकिन महाराष्ट्र को कोई मजबूत और स्थाई सरकार मिल रही है, अब इसकी गारंटी नहीं है। सनातनी हिंदू होने के नाते मेरा आत्मा के अस्तित्व पर दृढ़ यकीन है। इसी आधार पर कह रहा हूं कि दिवंगत बाल ठाकरे की आत्मा को आज भारी आघात पहुंचा होगा। ‘मातोश्री‘ मेंं सहेज कर रखी गयी उनकी एक-एक याद पर शर्म की गंदी धूल चढ़ गयी होगी। उनकी पार्टी शिवसेना वह कर गुजरी, जो न करने के कारण ही उसे शेर के बराबर खड़ा किया जाता रहा है। कुर्सी की खातिर किसी भी हद तक गिर जाना अब सामान्य चलन हो गया है, लेकिन महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे ने जिस तरह कांग्रेस एवं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का पल्ला पकड़कर खुद को उनके सियासी पिंजरे में बंद करने का जतन किया है, वह बाल ठाकरे की स्मृतियों को निश्चित ही दुखी कर गया होगा। इस गंदे खेल में देश का कोई भी राजनीतिक दल पीछे नहीं रहा
जिन नीतिश कुमार ने सन 2014 में नरेंद्र मोदी का खुलेआम विरोध करते हुए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को छोड़ा, उन्हीं नीतिश ने लालू पुत्रों से छुटकारा पाने और अपनी सत्ता को बरकरार रखने के लिए भाजपा के आगे नतमस्तक होना मंजूर कर लिया। जो बहुजन समाज पार्टी तथा समाजवादी पार्टी लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तरप्रदेश में कांग्रेस को किसी लायक नहीं समझ रही थीं, उन्हीं दलों की युति के आगे राहुल गांधी एअर इंडिया के पुराने महाराजा की तरह बिछ-बिछ जाते देखे गये थे। उपेंद्र कुशवाह ने पांच साल तक मोदी सरकार में मलाई सूती और बीता लोकसभा चुनाव आने के ऐन पहले राजग की हार की आशंका के चलते वे राष्ट्रीय जनता दल की गोद में जा बैठे। बिल्कुल ऐसा ही चरित्र भाजपा ने जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ सरकार बना कर दिखाया था। कम से कम यह सारा कार्यकलाप देखकर वामपंथियों की सराहना की जा सकती है कि इस दलदल में वे अभी पूरी तरह नहीं उतरे हैं। लेकिन वीपी सिंह को उस सरकार को उन्होंने भी बाहर से समर्थन दिया, जिसे उनकी कट्टर विरोधी भाजपा भी बाहर ही से समर्थन कर रही थी।
ऐसे माहौल के बीच शिवसेना जो करने जा रही है, उसे अनैतिक कहना उचित नहीं होगा। हां, जो हो रहा है, उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि पुत्र आादित्य ठाकरे के प्रति मोह और सांसद संजय राउत की गतिविधियों के प्रति आंख मूंदे रखने के भाव के बाद उद्धव ठाकरे ने अब अपनी पार्टी के ‘डेथ वारंट‘ पर खुद ही हस्ताक्षर कर दिए हैं। कई राज्यों में सत्ता से वंचित रही कांग्रेस की बिलबिलाहट समझी जा सकती है। महाराष्ट्र से बाहर किसी भी प्रदेश में सरकार बनाना तो दूर, मुख्य विपक्षी दल बनने जितनी ताकत भी अर्जित नहीं कर सकी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का कुर्सी के प्रति मोह भी स्वाभाविक है। शिवसेना यदि इन दो दलों से हाथ मिला रही है, तो वह उस बहुत बड़े आधार को खो बैठेगी, जिसकी दम पर उसने अपनी ताकत कायम रखी है। वह है, हिंदुत्व। यदि इन तीन दलों की मिली-जुली सरकार बनती है तो उससे पहले ठाकरे से पूछा जाना चाहिए कि हिंदुत्व पर उनकी पहले जैसी राय कायम रहेगी या उसमें कांग्रेसीकरण और एनसीपीवाद का तड़का लगेगा।
क्या पाकिस्तान के खिलाफ भविष्य की किसी सर्जिकल स्ट्राइक पर शिवसेना इसका खुलकर अभिनंदन करेगी अथवा कांगे्रस के सुर में सुर मिलाकर इसके लिए केंद्र से सबूत मांगने लग जाएगी। पड़ोसी देश को रह-रहकर गरियाने वाले इस दल से यह प्रश्न भी होना चाहिए कि शपथ ग्रहण समारोह में वह नवजोत सिंह सिद्धूू को आमंत्रण देने का विरोध कर पाएगा? वही सिद्धू जिन्होंने एक बार फिर पाकिस्तान की सरजमीं पर जाकर भारत के मुकाबले इमरान खान को बब्बर शेर कह दिया है। एनसीपी तो खेर एक क्षेत्रीय दल है लेकिन ऐसे ही सवाल कांग्रेस के सामने भी खड़े हो रहे होंगे। कांग्रेस पर साम्प्रदायिक कहलाने वाली शिवसेना का साथ देने का आरोप लगेगा। केन्द्र में धर्मनिरपेक्ष गठजोड़ बनाने में उसके सामने भविष्य में दिक्कतें खड़ी होंगी।और शिवसेना के इतिहास का भूत क्या कांग्रेस की महाराष्ट्र में रही सही नैया भी डूबोने का खतरा पैदा नहीं करेगा? यह साफ था कि महाराष्ट्र का जनादेश एक बार फिर भाजपा-शिवसेना की युति के लिए दिया गया था। इस राज्य की आवाम ने कांग्रेस तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को सत्ता के योग्य नहीं माना।
उद्धव ठाकरे ने यकीनन किसी बेहद घातक शख्स को अपना सियासी सलाहकार बनाया है। वरना पार्टी की छवि से इतना खतरनाक खिलवाड़ करते हुए वह भीषण मतभेद वाले दलों के साथ हाथ मिलाने का जतन नहीं करते। शिवसेना ने अयोध्या में राम मंदिर की स्थापना के लिए खासी पैरवी की थी। उद्धव तो अदालत का निर्णय आने से पहले अयोध्या पहुंचकर राज्य की योगी एवं केंद्र की मोदी सरकार पर मंदिर की स्थापना के लिए दबाव बनाने से नहीं चूके थे। तो अब संभावित शपथ ग्रहण के बाद ठाकरे एवं मित्रमंडली कपिल सिब्बल से कैसे दूरी बना सकेगी, जिन्होंने एक वकील के तौर पर अदालत में भगवान श्रीराम के अस्तित्व पर ही सवाल उठा दिया था। यदि बदले राजनीतिक माहौल के बावजूद ठाकरे की आस्थाएं अपरिवर्तित रहेंगी तो फिर उन्हें श्रीराम चरित्र मानस की एक पंक्ति, ‘जाको प्रभु दारुण दुख देही, ताकी मति पहले हर लेही।‘ याद रखना चाहिए। ताकि आने वाले समय में जब शिवसेना इस गलती का खामियाजा भुगते तो उद्धव को यह याद करने में दिक्कत न हो कि इसकी वजह वह खुद थे और कोई नहीं। बाल ठाकरे ने एक अच्छे कार्टूनिस्ट के रूप में भी बहुत अलग पहचान बनायी थी और अब उनकी पार्टी खुद किसी कार्टून में तब्दील होती दिख रही है। यदि अब किसी दिन सामना में भी ‘दे दी हमें आजादी बिना खडग, बिना ढाल…‘ प्रकाशित हो गया तो समझ लीजिए कि अपनी आजादी, अपनी मूर्खता से खोने वाले अपना ही मर्सिया लिखना शुरू कर चुके हैं।
(साई फीचर्स)

समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया देश की पहली डिजीटल न्यूज एजेंसी है. इसका शुभारंभ 18 दिसंबर 2008 को किया गया था. समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया में देश विदेश, स्थानीय, व्यापार, स्वास्थ्य आदि की खबरों के साथ ही साथ धार्मिक, राशिफल, मौसम के अपडेट, पंचाग आदि का प्रसारण प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है. इसके वीडियो सेक्शन में भी खबरों का प्रसारण किया जाता है. यह पहली ऐसी डिजीटल न्यूज एजेंसी है, जिसका सर्वाधिकार असुरक्षित है, अर्थात आप इसमें प्रसारित सामग्री का उपयोग कर सकते हैं.
अगर आप समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को खबरें भेजना चाहते हैं तो व्हाट्सएप नंबर 9425011234 या ईमेल samacharagency@gmail.com पर खबरें भेज सकते हैं. खबरें अगर प्रसारण योग्य होंगी तो उन्हें स्थान अवश्य दिया जाएगा.