फल और खालों के धंधे पर सरकार

 

 

(विवेक सक्सेना)

कनाडा के इतिहास में हडसन बे नामक कंपनी का बहुत अहम स्थान रहा है। कहने को यह कंपनी एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है जो कि पूरे कनाडा व योरोप के कुछ हिस्सों जैसे बेल्जियम, नीदरलैंड व जर्मनी आदि में अपने सिले सिलाए कपड़ों का व्यापार करती है। इस कंपनी की तुलना भारत की ईस्ट इंडिया कंपनी से की जा सकती है जो कि धंधा करते-करते देश के मालिक बन बैठी।

200 साल पहले यह कंपनी फर का धंधा करके इतनी शक्तिशाली हो गई कि कनाडा के कई हिस्सों में वह सरकार बना बैठी थी। उसने इतनी ज्यादा जमीन कब्जा ली थी कि अंततः उसे इस जमीन को 1969 में कनाडा को बेचना पड़ा। रुपर्ट लैंड नामक इस जमीन की बिक्री के मामले को द डीड आफ सरेंडर के नाम से जाना जाता है। एक समय तो ऐसा भी आया जबकि कनाडा के फर व्यापार पर इस कंपनी का पूरी तरह से एकाधिकार हो गया था।

उस समय ब्रिटेन का उत्तरी अमेरिका या कनाडा पर अधिकार था। बाद में यह कंपनी फर से तैयार कपड़े व घरेलू कामकाज के उपकरण बेचने लगी और उसके द्वारा डिपार्टमेंटल स्टोर खोले जाने का सिलसिला शुरु हो गया। इतिहास बताता है कि 17 वीं सदी में कनाडा के फर के व्यापार पर फ्रांस के लोगों का लगभग एकाधिकार था। दो फ्रांसीसी व्यापारी पियरो व ग्रासलियर ने भी यहां आकर फर का व्यापार करने की सोची। उन्होंने यहां की लेकर सुपीरियर को हडसन बे सफर कर वहां से व्यापार करने का फैसला किया क्योंकि इससे पहले लोगों को बहुत दूर से खालें लानी पड़ती थी।

वहां के तत्कालीन फ्रांसीसी प्रशासक ने उन्हें ऐसा करने की अनुमति नहीं दी। इसके बावजूद उन्होंने वहां से धंधा किया और काफी बढ़िया खालें कम दाम पर खरीदी। वे यह खाले लेकर अपने देश वापस लौटे व उनकी इस सफलता के कारण हडसन बे इलाका चर्चा में आ गया। फ्रांस वापस लौटने पर उन्हें गिरफ्तार करके उनकी खाले जब्त कर ली गई क्योंकि उन्होंने बिना अनुमति व लाइसेंस के व्यापार किया था।

इससे ये दोनों विचलित नहीं हुए व उन्होंने भविष्य में भी व्यापार करने के लिए अमेरिका के बोस्टन में रह रहे कुछ अंग्रेज व्यापारियों से संपर्क किया ताकि वे अपने इस धंधे व खोज के लिए पैसे जुटा सके। उन्हें पैसा भी मिला मगर उनका जहाज वहां बर्फ में फंस कर बरबाद हो गया और वे लोग बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचा कर आए।

इस बार बोस्टन का एक प्रभावशाली व्यापारी उन्हें अपने साथ इग्लैंड लेकर आया और उसे प्रिंस रुपर्ट से मिलवाया। उस समय वहां प्लेग अपने चरम पर था। प्रिंस रुपर्ट ने उन्हें अपने रिश्तेदार किंग चार्ल्स द्वितीय से मिलाया और 1668 में दोनों व्यापारी दो खास जहाजों पर अपने नए अभियान पर निकल गए। ये लोग हडसन बे इलाके में आए और उन्होंने वहां अपना अड्डा स्थापित किया। यह प्रिंस रुपर्ट नदी का मुहाना था उन्होंने वहां जमकर व्यापार किया और कुछ माह बाद खालों का जखीरा लेकर इंग्लैंड वापस लौटे।

उन्होंने अपने सामान को लंदन के तब के सबसे बड़े खाल वस्त्र निर्माता थामस क्लीवर ने 1233 पौंड में बेच दिया। उसके बाद वह उनसे लगातार फर खरीदने लगा। बाद में किंग चार्ल्स की अनुकंपा के चलते उन लोगों ने अपनी कंपनी बनायी और किंग चार्ल्स ने उन्हें फर के धंधों का एकाधिकार देते हुए कहा कि जितनी भी नदियों का पानी हडसन बे खाड़ी में आता है उन सारे प्रवाह में बीवर पकड़ कर उन्हें बेचने का अधिकार इन दोनों को होगा।

उस इलाके का नाम रुपर्ट लैंड रखा गया और बाद में प्रिंस रुपर्ट को राजा चार्ल्स ने कंपनी का पहला गवर्नर नियुक्त किया। हडसन बे का इलाका 15 लाख वर्ग मील का था। दूसरे शब्दों में आज के आधुनिक कनाडा के कुल क्षेत्र का वह एक तिहाई हिस्सा था। उसकी सीमाओं का कुछ अता पता ही नहीं था। वह इलाका 19 वीं शताब्दी का बीवर खाल खरीदने का सबसे बड़ा इलाका बन गया। कंपनी ने वहां के इलाके के फर की खरीद के लिए 6 केंद्र स्थापित किए। उन्होंने पूरे इलाके में एक जैसे दाम तय किए व खालों की खरीद का मानक मेड बीवर (एमबी) तय किया जिसके आधार पर बीवर के इलाके में गिलहरियों, अदबिलाव, मूज आदि की खालें खरीदी जाती थी।

इस कंपनी ने स्थानीय लोगों पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए अपनी कर्मचारियों को स्थानीय महिलाओं से शादी करने के लिए प्रोत्साहित किया जिससे कि उनके साथ बेहतर संबंध बनाए जा सके व बच्चे हो जाने के बाद वे लोग और खुद को कंपनी के करीब समझे। इस कंपनी ने अपने खरीद भंडार स्थापित करने के बाद भी पहले कनाडा में ब्रिटिश मुद्रा चलाई। मगर ज्यादातर स्थानीय लोगों की वहां के पैसे में कोई रुचि नहीं थी और वे लोग अपनी खालों के बदले में सामान लेना ज्यादा पसंद करते थे।

उन्होंने इस इलाके में अपना एकछत्र राज्य बनाते हुए 250 साल तक मनमानी की। वे लोग मेड बीवर के जरिए खरीद फरीख्त करते थे जो कि एक तरह की करेंसी हुआ करती थी। आंकडे बताते हैं कि 1795 में एक मेड बीवर आठ विदेशी चाकुओं या एक केतली के बराबर हुआ करता था। जबकि एक बंदूक लेने के लिए 10 मेड बीवर या एमबी देने पड़ते थे। कंपनी इस बात का पूरा ध्यान रखती थी कि उसके कर्मचारी इनमें किसी तरह की कोई हेराफेरी न करे। कर्मचारियों को प्रोत्साहित करने के लिए कंपनी उनसे भी जानवरों का शिकार करती थी व उनकी खालों को ब्रिटेन में बेच कर होने वाली मुनाफे का आधा हिस्सा उन्हें दे देती थी।

मौटे तौर पर 1 एमबी ब्रिटेन के 70 शिलिंग के बराबर होता था। खाले लाये जाने वाले जहाज के कप्तान को हर माह 12 डालर वेतन के अतिरिक्त दिए जाते थे व हर 100 खाले लाने पर उन्हें 100 डालर की प्रोत्साहन राशि दी जाती थी। एक एमबी का मूल्य एक कंबल, 1 पेंट, एक पौंड तंबाकू के बराबर होता था।

(साई फीचर्स)