गुरव शिव पुजारी!

 

 

(राजेश शर्मा)

शिव की सेवा पूजा कर अपना जीवन यापन करने वाला गुरव पुजारी कहलाया है, शैवधर्म का पालन करने वाला गुरव कहलाया है । नित सर्व प्रथम शिव का स्मरण करना ओर शिव को ही भजना, जपना ओर शिव को ही अपना सर्व जीवन समर्पित करना यह गुरव कर्म है। यही शैव धर्म है। हमारी संस्कृति में दो धर्म है शैव ओर वैषनव। शैव लोग को शिवजी को और वेषनव  विष्णू जी को पूजते है।

हम सभी गुरव लोग जो है जो जितने भी गुरव बंधु है सभी शैव धर्मी है। शैव पंथी है। ओर शिव ही हमारे सर्व है । शिव परिवार ही हमारा परिवार है। विष्णुजी के सहित उनके  सारे अवतारों की पूजा विग्रह स्वरूप में की जाती है ओर शिव को हम सभी ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजते है । शैव धर्म को मानने वाली, शिव  को पुजने वाली शैव धर्म का पालन करने वाली जाती है

,गुरव जाती शैव धर्म ही गुरव का मूल धर्म है और अगर अपने आप को शैव कहता है तो यह भी सम्मान वाली बात है गुरव के लिए ।जिसके लिए शिव ही सर्व होता है । वो ही शैव है। प्राचीन समय से शिव मंदिरों की सेवा पूजा का कार्य जिस जाती को  सौंपा गया था वो सभी शिव पुजारी कहलाते थे। उनमें से हमारी गुरव जाती भी शामिल

है ओर वो सारे अधिकार आज भी गुरव समाज के पास सुरक्षित है । इसका प्रमाण भी है के देश के कुछ ज्योर्तिलिंगो में गुरव पुजारी आज भी नियुक्त है । घुस्मेश्वर, भीमाशंकर, बैधनाथ, सहित देशभर में  आदि ओर भी मंदिर है जहां गुरव  पुजारी आज भी पूजा सेवा करते है और सरकारी नियुक्ति में है । शिवालय में शिवजी के ऊपर जो भी सामग्री चड़ाई जाती है उसको शिव निर्मल्या कहते है उसको ग्रहण करना या उस पर जिसका प्रथम अधिकार बनता है वो भी शैव धर्मी गुरव का पहला अधिकार बनता है ।  कन्नड भाषा में गुरव को गुरवन कहा जाता था समय के साथ क्षेत्र ओर भाषा के बदलाव में आज गुरव कहलाता है।  ओर गुरव पुजारी प्राचीन काल से शिव मंदिरों की सेवा पूजा करते आ रहे है। गुरव की सेवा अनेकों रूप में शिव मंदिरों में रह कर शिव जी तक पहुंचती है।  जिसमें वो मंदिर को साफ सफाई करता है , शिवजी के साथ पूरे शिव परिवार की  मूर्तियों को भी नहलाता है, वस्त्र आभूषण से सजाता है, कुमकुम चन्दन से सारी मूर्तियों को संवरता है ,फूल बेल पत्र से सजावट करता है,फिर धूप दीप से आरती करता है  नैवेद्य भोग लगाता है, ओर साथ ही संगीत बजाता है भजन गाता है  वाद्य यंत्र बजाता है, इस प्रकार अनेकों रूपो के साथ अपनी सेवा शिव मंदिर में करता आया है । साथ ही शिवकथाशिव भजन,ओर शिव महात्म का वाचन करना भी गुरव कर्म है।

भोर से संध्या तक शिवालय मे ही रहना और दिनभर भर में जो चड़ावा ओर सामग्री भेली होती उससे अपना जीवन यापन करना ही गुरव का कर्म ,धर्म रहा है।

समय का बदलाव ओर परिवार की बड़ती संख्या ओर उनकी जरूरतों की पूर्ति हेतु गुरव को अपने मूल कर्म के साथ कुछ अन्य कार्य भी करने पड़े जिससे पारिवारिक खर्चों की पूर्ति हो  ओर फिर समय के साथ साथ हर क्षेत्र में गुरव आगे बड़े और आज देश भर में 

कोई सरकारी नोकरी में है कोई व्यापारी है पुलिस विभाग में है कोई राजनीति में भी उच्च पद पर है कोई संगीत के क्षेत्र में है डाक्टर, वकील, सहित  सभी विभागों में हर क्षेत्र में गुरव लोग है  यही कारण रहा है के अनेकों क्षेत्रों में कार्य में लगने से गुरव अपने मूल कर्म से कहीं कहीं दूर भी होता गया और इस कारण से पूरे देश में गुरव लोग अपनी अपनी सहूलियत के हिसाब से बस गए कर्नाटक ,आंद्रा, से लगाकर महाराष्ट्र, गुजरात,तमिलनाडु,केरल,मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़,राजेस्थन,सहित पूरे देश में गुरव जाती बसती है । ओर सभी अपने अपने क्षेत्रों में

कहीं कोर्णाक गूरव, कहीं लिंगायत गुरव, कहीं शैव गुरव, कहीं जिंझर ,कहीं हंगर,जुन्नर  गुरव, ओर आदि नाम से अपनी अपनी पहचान  के साथ रह रहे है । और पूरे देश भर में गुरव समाज निवास करता है।ओर एक बात जब जाती सम्बन्धित परिचय जब देना होता है तब हर बंधु गुरव पुजारी के नाम से पहचाने जाते है ।जब जब भी गुरव जाती पर मेरी किसी भी बंधु से चर्चा हुई चाहे वो समाज के इतिहास के संबंध में हो या जाति सम्बन्ध में हो या अन्य किसी भी विषय पर  सभी से  बातो में  हर समय एक ही बात उभर कर आती है के गुरव शिव पुजारी है। शिव ही गुरव के भगवान है शिव पूजा ओर सेवा  ही गुरव  का मूल कर्म है

पिछले कुछ सालों में मैने जितना पड़ा, सुना, समझा,जाना, परखा, पूछा, ओर अनेकों बंधुओ से चर्चा कर जो समझा वो सारा निचोड़ केवल यही निकलता है के गुरव जाती शिव को पूजने वाली पुजारी कर्म को करने वाली शैव संप्रदाय का पालन करने वाली शिव पुजारी कहलाने गुरव समाज है जिसको सारे देश में गुरव पुजारी कहा जाता है।

(साई फीचर्स)