(प्रणव प्रियदर्शी)
हम करीब दर्जनभर भाई-बहन इकट्ठा हुए थे बिहार के उस छोटे से शहर में। कोई पारिवारिक कार्यक्रम था। रात में बिजली गुल होने के बाद सभी बच्चों को इकट्ठा और व्यस्त रखना एक बड़ा काम था। बगैर किसी घोषणा के छोटे मामूजी ने मोर्चा संभाल लिया, चलो दो टीम बनाओ। मैं सवाल पूछूंगा दोनों टीमों से बारी-बारी। जो टीम जीतेगी उसे मुंहमांगा इनाम मिलेगा। तुरंत टीमें तैयार हो गईं, लेकिन खेल से पहले इनाम पर बहस शुरू हो गई। एक भैया बोले, मैं तो ऐसा इनाम मांगूंगा कि अंकल दे ही नहीं पाएंगे। मामूजी को यह चुनौती भा गई। बोले, जो मांगोगे वही दूंगा, पहले जीत कर तो दिखाओ। आप नहीं दे पाएंगे। दूंगा। अब भैया बोले, मैं मुर्गे का अंडा मांगूंगा। मामूजी ने हंसकर कहा, चलो वह भी दूंगा। अब तो खुश। खेल शुरू करो।यह भी पढ़ेंः पोकरण जैसा सीक्रट था मिशन शक्ति, सिर्फ 5 या 6 लोगों को ही थी जानकारी
हम सब कन्फ्यूज, लेकिन मुर्गा तो अंडा देता ही नहीं, आप कहां से लाएंगे? अरे यार जिसे तुम मुर्गी का अंडा कहते हो, वह मुर्गे का भी तो होता है। खैर, खेल शुरू हुआ, लेकिन डेढ़ घंटे से ऊपर चले खेल में दोनों टीमें बराबरी पर ही छूटीं। आखिर सवाल तय करना मामूजी के ही हाथ में था। इनाम की संभावना खत्म होने से हम मायूस थे। लेकिन सबसे दिलचस्प दौर क्विज मुकाबला खत्म होने के बाद शुरू हुआ, जब मामूजी ने पूछा, बताओ हिम्मत क्या है और बहादुरी क्या है? हम सब अपने-अपने हिसाब से जवाब देते और मामूजी की दलीलें हमारे जवाब की धज्जियां उड़ा देतीं। जिससे सब डरते हों, जो किसी से न डरता हो, जो बड़े से बड़े बदमाश से भिड़ने को तैयार रहता हो, जो बड़े से बड़ा खतरा उठाने में भी नहीं हिचकता हो जैसे तमाम जवाब खारिज होने के बाद हमने हथियार डाल दिए और फिर मामूजी ने हमें वह औजार दिया, जो किसी व्यक्तित्व को नापने के लिहाज से आज भी मेरे काम आता है। बोले, सबसे बड़ी बुजदिली है अपनी कमजोरी छुपाना और सबसे बड़ी हिम्मत है सचाई को सबके सामने स्वीकार करना। अच्छे उद्देश्य के लिए बड़ी से बड़ी तकलीफ सहने की तैयारी रखना ही बहादुरी है।
इस फार्मूले को परखने का सुझाव मामूजी ने इस रूप में दिया कि जितने भी महापुरुष हुए हैं, उन सब पर तुम इस सूत्र को लागू करके देख सकते हो कि कौन बहादुर थे और कौन हिम्मती। मैंने इस सूत्र को उसी दिन से आजमाना शुरू कर दिया था। बहरहाल, आज इसे मौजूदा नेताओं पर लागू करता हूं तो बुरी तरह निराश होता हूं। यह भी लगता है कि मेरे मामूजी जैसी जिम्मेदारी अगर बाकी देशवासियों के मामुओं ने भी निभाई होती तो शायद आज हमारे नेताओं की फितरत कुछ और होती।
(साई फीचर्स)
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