(श्रुति व्यास)
पच्चीस अप्रैल को काशी मोदी की छाया और रंगों से अटी पड़ी थी। मगर सिर्फ, नरेंद्र मोदी की छटा और आकर्षण से, न कि भाजपा से। आकर्षण यदि चुबंक है तो उससे भावना और आस्था कैसे बनती है इसका प्रमाण काशी में नरेंद्र मोदी है। मैंने अमेठी, रायबरेली में गांधी परिवार के प्रति लोगों का अनुराग देखा, झालावड़-झालरपाटन में राजे, जोधपुर में गहलोत की बाते सुनी लेकिन वाराणसी में नरेंद्र मोदी पर लोगों के मूड में जो विविधताएं, जैसा जोश उमड़ते देखा वह अलग ही किस्म का है। शिव की नगरी में भक्ति की एक अलग ही धारा फूटी है। बतौर सबूत यह अनुभव है कि मोदी के स्वागत के लिए तेज धूप और झुलसा देने वाली गर्मी में भी लोग तीन घंटे से भी ज्यादा समय खड़े रहे। भक्तों ने धैर्य और अटल निश्चय का परिचय दिया। चारों तरफ का शोर और लोगों का उत्साह बता रहा था कि अपने नायक को देखने के लिए लोग किस कदर बेताब है। वह बेताबी काशी के लोगों के मानस को बताने वाली थी।
काशी का तापमान उस दिन बयालीस डिग्री था। सूखी गरम हवा चल रही थी। लेकिन इसमें भी मोदी का स्वागत करने और उनकी झलक पाने के लिए बड़े-बूढ़े, बच्चे, नौजवान, महिलाएं अपने घरों के बाहर, छतों पर, बाजारों के किनारों पर कतार में घंटों खड़े रहे।
कमला यादव अपने पोते को पास के अस्पताल में भर्ती कराने के लिए आई थीं। उन्हें अस्पताल परिसर और इसके आसपास सुबह से माहौल देख कर लग गया था कि लोगों में आज कुछ ज्यादा ही जोश है। जब उन्हें पता चला कि प्रधानमंत्री आ रहे हैं तो उनसे भी रहा नहीं गया और वे भी प्रधानमंत्री को देखने के लिए रुक गईं। इसके लिए उन्होंने तीन घंटे तक इंतजार किया। इससे पता चलता है कि शहर में मोदी को लेकर किस तरह का जोश था। इसी तरह के उत्साह से लबरेज बिहार से आई एक महिला अपनी बेटी के साथ नरेंद्र मोदी को देखने के लिए दो घंटे से खड़ी नजर आई। कमला यादव की तरह इनके लिए भी बयालीस डिग्री की गरमी कुछ नहीं थी। यह सब बता रहा था कि काशी में नरेंद्र मोदी को लेकर लोगों में जो जोश पहले था, वही अब भी कायम है।
शाम पांच बजे तक बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से दशाश्वमेध घाट तक का रास्ता मोदी के समर्थकों और पसीने से तरबतर जनता से अटा पड़ा था। लोग न सिर्फ मोदी के स्वागत के लिए खड़े थे, बल्कि इससे भी ज्यादा उनकी झलक चाहते थे। 2014 में मोदी जब बनारस से परचा भरने के बाद यहां की सड़कों पर उतरे थे तब भी लोग उत्साहित थे। पांच साल बाद भी वह उत्साह जस का तस है। न वह घटा है और न बढ़ा है। शहर अब भी वैसी ही रोमांचकता, कौतुहलता लिए हुए है जितना तब था। तब उम्मीदवार नरेंद्र मोदी पर्चा भरने आए थे अब भारत का प्रधानमंत्री शहर से चुनाव लड़ने की रोमांचकता बनाए हुए है।
हालांकि 2014 में नरेंद्र मोदी के सामने अरविंद केजरीवाल थे और तब मुकाबला कड़ा बताया जा रहा था। 2014 में मोदी को पांच लाख सोलह हजार पांच सौ तिरानवे वोट मिले थे जबकि अरविंद केजरीवाल को एक लाख उनयासी हजार सात सौ उनतालीस।
जिन लोगों ने केजरीवाल को वोट दिया था उनमें जेके निगम और उनकी पत्नी भी थे। मोदी लहर होने की बात खारिज करते हुए इस दंपति का कहना है कि केजरीवाल के पास तब एक नया विचार था, एक नई राजनीतिक दिशा थी। लेकिन दो साल बाद ही वह दंपति उनसे बुरी तरह निराश हो गई। निगम कहते हैं- किसको पता था वो कम्युनिस्ट निकलेगा। उन्हें यह भी नहीं मालूम कि जो वे कह रहे हैं उसका मतलब क्या होता है और न ही उन्हें इसके कारणों के बारे में पता होगा। वे केजरीवाल की राजनीति से काफी खफा और निराश दिखे। इसलिए इस बार यह निगम दंपति काशी के और लोगों की तरह मोदी को वोट देगी।
काशी के लोग मोदी के कामों से खुश हैं। इसलिए वे मोदी के काम का समर्थन कर रहे हैं, खासतौर से नोटबंदी जैसे फैसले का। नोटबंदी के बारे में लोग समझाते मिले कि इसका फायदा देश को दस साल के बाद मिलेगा। निगम मोदी की उपलब्धियों के बारे में बात कर ही रहे थे, तभी पास से अचानक लोगों की आवाज आई- लो मोदी आ गए, जल्दी आइए। उन्होंने अपनी पत्नी को भी पुकारा और उस ओर इशारा किया जिस रास्ते से मोदी उस जगह पहुंच रहे थे। वह दंपति मोदी के लिए बच्चों जैसी उत्साहित थी, भाजपा के झंडे लिए हुए वह फिर कुर्सी पर चढ़ कर हर-हर मोदी के नारे लगाने लगे।
नरेंद्र मोदी के लिए बनारस के लोगों में जिस तरह का उत्साह और जोश भरा पड़ा है, अगर उस पर गौर से विचारे तो लगेगा कि वह सिर्फ लोगों का प्यार और तारीफ भर नहीं है, बल्कि मोदी को लेकर लोगों में एक आस्था बनी है। आस्था और आकर्षण मन की भावनाओं से जुड़ा है। जैसा कि काशी के साथ है भी कि आस्था एक रहस्यमयी आभा की जुगलबंदी से काशीवासियों को खामोख्याली में डुबोए रहती है। आपको समझ नहीं आएगा कि आप जो देख रहे है वह क्या है लेकिन लोग बोलतेदृबताते मिलेगें कि ऐसा ऐसे है ऐसा वैसे है। सब अपने-अपने अंदाज में अपनी व्याख्या करते है। यही वाराणसी में नरेंद्र मोदी के साथ है। उनकी अपील, उनका आकर्षण आस्था के उस छोर में पहुंच गया है जिससे काशी जितने भी वक्त मोदीमय रहेगी उसमें दूसरे के लिए जगह नहीं होगी।
(साई फीचर्स)
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