न्यूनतम आय गारंटी का दांव

 

 

(सुशांत कुमार)

सोशल मीडिया ने इन दिनों हर व्यक्ति को राजनीतिक विश्लेषक, अर्थशास्त्री और सामरिक व कूटनीति का विशेषज्ञ बना दिया है। सो, पुलवामा से लेकर बालाकोट तक जो लोग सामरिक और कूटनीतिक मामलों पर ज्ञान दे रहे थे वे सभी लोग अब न्यूनतम आय गारंटी योजना के अर्थशास्त्र पर ज्ञान देने लगे हैं। सोशल मीडिया के सामान्य उपयोगकर्ता से लेकर देश के वित्त मंत्री तक और नीति आयोग के उपाध्यक्ष से लेकर प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्यों तक को ऐसा लग रहा है कि ये काम कैसे होगा।

हर आदमी समझा रहा है कि इससे देश का राजकोषीय अनुशासन बिगड़ जाएगा। सवाल है कि जब सरकार चुनावी स्टंट के लिए खुद ही राजकोषीय अनुशासन का ध्यान नहीं रख रही है तो वह कैसे उम्मीद कर रही है कि विपक्ष इसका ध्यान रखेगा? सरकार ने अभी कुछ दिन पहले ही किसानों को हर साल छह हजार करोड़ रुपए देने का वादा किया और पहली किश्त भेज भी दी। तब भी राजकोषीय अनुशासन का ध्यान नहीं रखा गया था। उसी को बढ़ा कर राहुल गांधी ने छह हजार रुपए महीना कर दिया है। उन्होंने कहा है कि कांग्रेस की सरकार बनी तो पांच करोड़ गरीब परिवारों के खाते में 72 हजार रुपए हर साल डाले जाएंगे। इसके लिए करीब सवा तीन लाख करोड़ रुपए की जरूरत पड़ेगी।

सब यह पूछ रहे हैं कि ये पैसे कहां से आएंगे। हकीकत यह है कि चुनावी वादे करते समय यह नहीं सोचा जाता है कि पैसे कहां से आएंगे। सोचने का काम बाद में होगा पर असलियत है कि कांग्रेस ने इस दांव से भाजपा को घेर दिया। सबसे पहले राहुल गांधी के इस दांव की राजनीति को समझने की जरूरत है। उन्होंने यह ऐलान करके भाजपा को उलझा दिया है। अब भाजपा के नेता कुछ भी कहें वे इसकी काट नहीं निकाल सकते हैं। भाजपा ने किसानों को छह हजार रुपए सालाना देने का वादा किया था। राहुल ने उसे छह हजार रुपए महीने कर दिया है। अब भाजपा के नेता इसकी आलोचना कर चुके।

इसलिए वे इससे बड़ी कोई योजना घोषित नहीं कर सकते हैं। अगर करते हैं तो यह सवाल उठेगा कि जब वे कांग्रेस से पूछ रहे थे कि छह हजार महीना देने के लिए कहां से पैसा आएगा तो खुद कहां से पैसे का जुगाड़ करेंगे। अगर भाजपा ने न्यूनतम आय गारंटी योजना का समर्थन और स्वागत किया होता तो उनके लिए आगे का रास्ता खुला रहता। पर भाजपा के हर नेता ने इसका विरोध किया है, जबकि पहले खुद भाजपा भी न्यूनतम आय योजना का वादा करती रही है। तभी ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस के इस दांव से भाजपा बैकफुट पर आई है।

अब रही बात पैसे के इंतजाम की तो इस बारे में अभी बारीकियां सामने आने का इंतजार करना होगा। कुछ बारीकियों का खुलासा हो सकता है कि कांग्रेस के घोषणापत्र से हो जाए, जिसमें इसको मुख्य रूप से शामिल किया जा रहा है। पर संभव है कि उसमें भी सारी बारीकियां नहीं लिखी हों। उससे पहले अंदाजा लगाया जा रहा है कि गरीबों के लिए चल रही दूसरी योजनाओं को इसमें मिलाया जा सकता है। दूसरी योजनाओं की सब्सिडी बंद की जा सकती है या कम की जा सकती है। सरकार का यह आंकड़ा सार्वजनिक नहीं हुआ है कि गरीब कल्याण के नाम पर कितना रुपया खर्च किया जा रहा है।

संभव है कि कुछ योजनाओं को मिला कर कांग्रेस यह न्याय योजना चालू कर दे। दूसरा तरीका यह भी संभव है कि बैंकों का एनपीए कम कराया जाए। बड़े उद्योगपतियों को मिलने वाली मदद बंद करके गरीबों को पैसे देने की योजना चलाई जाए। आखिर बड़े कारपोरेट घराने जितनी सब्सिडी, सुविधाएं और कर्ज ले रहे हैं उसके मुकाबले रोजगार में उनका योगदान नगण्य है। सो, संभव है कि कारपोरेट को मिलने वाली सुविधाओं में कटौती करके इस योजना के लिए पैसे निकाले जाएं।

राजकोषीय अनुशासन बिगड़ने और लोगों के मुफ्तखोर बन जाने का तर्क भी बहुत ठोस नहीं है। ध्यान रहे वैसे भी इस देश में करोड़ों लोगों को रोजगार नहीं मिलने वाला है। कोई लाख कोशिश करे सबको काम नहीं मुहैया कराया जा सकता है। दुनिया के कई विकसित देश इस संकट से गुजर रहे हैं और अपने यहां लोगों को घर बैठा कर पैसे दे रहे हैं। भारत में पहले से करोड़ों लोग घर बैठे हैं। उन्हें अगर सरकार अपने खाते में से पैसे देती है तो बाजार में मांग बढ़ेगी, जिससे विकास दर तेज होगी।

आर्थिकी में सुधार का चक्र चल पड़ेगा। बाजार में तेजी लौटेगी। खरीद बढ़ने से जीएसटी वसूली भी बढ़ेगी। यानी इस योजना का इस्तेमाल बाजार में तेजी लौटाने के लिए भी किया जा सकता है, जिससे औद्योगिक उत्पादन में भी तेजी आएगी। कुल मिला कर कहा जा सकता है कि कांग्रेस ने भले ही चुनावी फायदे के लिए इस योजना का ऐलान किया है पर इससे करोड़ों लोगों का भला भी हो सकता है और अर्थव्यवस्था में सुधार भी हो सकता है।

(साई फीचर्स)