(सुशांत कुमार)
इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन, ईवीएम पर अविश्वास का मामला अब ऐसे मुकाम पर पहुंच गया है, जहां सरकार, विपक्षी पार्टियों, चुनाव आयोग और अदालत सबको मिल कर कोई रास्ता निकालना होगा। अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो यह अविश्वास पूरे लोकतंत्र को एक मजाक बना कर रख देगा। हालांकि ऐसा कहने का मतलब यह मानना नहीं है कि ईवीएम खराब ही हैं और उनके साथ छेड़छाड़ करके चुनाव जीता जाता है। ज्यादा संभावना इसी बात की है कि ईवीएम पूरी तरह से सही हों और चुनाव आयोग का यह दावा भी पूरी तरह से सही हो कि इनसे छेड़छाड़ नहीं हो सकती है।
फिर भी उसे लेकर अविश्वास बना है तो उसको दूर किया जानी चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो किसी भी जनादेश पर भरोसा नहीं बनेगा। दूसरे यह मजाक का विषय नहीं है। आमतौर पर सत्तापक्ष के लोग और मीडिया का एक धड़ा भी इस बात का मजाक बनाता है कि विपक्षी पार्टी जहां जीतती है वहां ईवीएम ठीक होता है और जहां हार जाती है वहां ईवीएम पर ठीकरा फोड़ देती है। जैसे आमतौर पर कहा गया कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस जीती तो वहां ईवीएम ठीक था और अगर हार जाती तो ठीकरा ईवीएम पर फोड़ देती।
पर इसके साथ ही सोशल मीडिया में यह कहानी भी प्रचलित रही कि भाजपा के दोनों शीर्ष नेता नहीं चाहते थे कि इन तीनों राज्यों के पुराने क्षत्रप चुनाव जीतें, इसलिए उन्होंने पार्टी को जिताने का पूरा प्रयास नहीं किया। इस कहानी का प्रचार भाजपा समर्थकों की ओर से किया गया। इससे भी ईवीएम की विश्वसनीयता प्रभावित हुई।
ईवीएम की विश्वसनीयता बहाल करने के काम में सभी पार्टियों की भूमिका इसलिए जरूरी है क्योंकि किसी न किसी समय में हर पार्टी ने इस पर सवाल उठाए हैं। भाजपा जब विपक्ष में थी और कांग्रेस लगातार दूसरी बार जीत कर सत्ता में आई थी तब भाजपा के नेताओं ने ईवीएम पर सवाल उठाए थे। भाजपा के प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद जीवीएल नरसिंह राव ने उस समय किताब लिख कर ईवीएम की गड़बड़ियां बताई थीं। सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भी इस पर सवाल उठाए थे।
आज भाजपा सत्ता में है तो कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों के नेता इस पर सवाल उठा रहे हैं। सो, लोकतंत्र की सुरक्षा और जनादेश की विश्वसनीयता के लिए जरूरी है को सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के नेता ईवीएम पर भरोसा बहाल करने के लिए पहल करें। भाजपा आज इस बात का वादा करे कि जब वह विपक्ष में होगी तो ईवीएम पर सवाल नहीं उठाएगी। ऐसा कहने के लिए उसे आज सारी विपक्षी पार्टियों को भरोसा दिलाना होगा कि ईवीएम में कोई गड़बड़ी नहीं हो सकती है। अगर पार्टियों में सहमति नहीं बनती है तो चुनाव आयोग विपक्षी पार्टियों और आम मतदाता का भरोसा बहाल करने के लिए पहल करे। वह ईवीएम के वकील की तरह बरताव करना बंद करे।
लोकसभा के पहले चरण के मतदान के बाद तमाम विपक्षी पार्टियों ने प्रेस कांफ्रेंस करके जो सवाल उठाए, निश्चित रूप से उनका जवाब चुनाव आयोग को देना चाहिए। अगर आयोग जवाब नहीं देता है तो यह सर्वाेच्च अदालत की जिम्मेदारी है कि वह जवाब मांगे। पहला सवाल तो यह है कि देश में जहां कहीं भी ईवीएम खराब मिलती है वहां किसी भी पार्टी का बटन दबाने पर वोट भाजपा को क्यों जाता है? ईवीएम में खराबी क्यों हो रही है और खराबी होती है तो उसे बदलने की त्वरित व्यवस्था क्यों नहीं है? ध्यान रहे खराब ईवीएम के कारण कई जगह देर से मतदान शुरू हुआ और बीच में भी मतदान रूका रहा, जिससे लोगों को आधी रात तक लाइन में खड़े रहना पड़ा।
यह भी सवाल है कि जब वीवीपैट की पर्ची सात सेकेंड तक दिखनी चाहिए तो वह तीन या चार सेकेंड में ही क्यों हट जाती है? राज्यों के चुनाव में तो इससे भी भयावह स्थिति थी। कई जगह ईवीएम निजी गाड़ियों से पहुंचाए गए। कई जगह पोलिंग पार्टी ईवीएम लेकर होटल में रूकी रही। कई जगह ईवीएम तय समय से बहुत देर से पहुंचाए गए। इन तमाम बातों से ईवीएम पर अविश्वास बना है। लाइव मतदान के समय उसमें छेड़छाड़ हो सकती है या नहीं, इस सवाल से ज्यादा गंभीर यह है कि उसमें पहले से या चुनाव के बाद छेड़छाड़ संभव है या नहीं? इसका जवाब आम लोगों को मिलना चाहिए।
विपक्ष ने ईवीएम पर भरोसा बहाल करने का यह तरीका निकाला था कि वीवीपैट से निकलने वाली 50 फीसदी पर्चियों की गिनती कराई जाए। पर चुनाव आयोग ने कहा कि ऐसा किया गया तो वोटों की गिनती में पांच दिन की देरी हो सकती है। आयोग खुद दो महीने से ज्यादा समय लगा कर सात चरण में चुनाव करा रहा है पर उसे गिनती में पांच दिन की देरी की चिंता है। पहले जब बैलेट पेपर से मतदान होता था तो तीन दिन में नतीजे आ जाते थे। अब ज्यादा सुविधाएं हो जाने के बाद आयोग को लग रहा है कि पांच दिन की देरी हो जाएगी। इस मामले में अदालत ने भी बीच का रास्ता निकालते हुए कहा कि हर विधानसभा में एक केंद्र की बजाय पांच केंद्रों की पर्चियां गिनी जाएं। पर इससे भरोसा बहाल नहीं होगा। अगर मतदान बैलेट से नहीं कराना है और ईवीएम का ही इस्तेमाल करना है तो ज्यादा पर्चियों की औचक गिनती का रास्ता सबसे बेहतर होगा। आयोग और अदालत दोनों को इस पर विचार करना चाहिए। भले नतीजे आने में देरी हो पर मतदाताओं का भरोसा सबसे जरूरी है।
(साई फीचर्स)
समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया देश की पहली डिजीटल न्यूज एजेंसी है. इसका शुभारंभ 18 दिसंबर 2008 को किया गया था. समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया में देश विदेश, स्थानीय, व्यापार, स्वास्थ्य आदि की खबरों के साथ ही साथ धार्मिक, राशिफल, मौसम के अपडेट, पंचाग आदि का प्रसारण प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है. इसके वीडियो सेक्शन में भी खबरों का प्रसारण किया जाता है. यह पहली ऐसी डिजीटल न्यूज एजेंसी है, जिसका सर्वाधिकार असुरक्षित है, अर्थात आप इसमें प्रसारित सामग्री का उपयोग कर सकते हैं.
अगर आप समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को खबरें भेजना चाहते हैं तो व्हाट्सएप नंबर 9425011234 या ईमेल samacharagency@gmail.com पर खबरें भेज सकते हैं. खबरें अगर प्रसारण योग्य होंगी तो उन्हें स्थान अवश्य दिया जाएगा.