(राहुल पाण्डेय)
ज्यादा नहीं, पिछले साल ही की बात है। अचानक खबर आई कि अमेरिका की सेंट्रल इंटैलिजेंस एजेंसी सीआईए ने भारत के इंटैलिजेंस ब्यूरो दृ आईबी के साथ मिलकर उत्तराखंड के नंदा देवी पर चीन के न्यूक्लियर प्रोग्राम पर नजर नरखने के लिए एक मशीन लगाई थी। इस मशीन के बारे में बताया गया कि नंदा देवी पर लगाई गई यह जासूसी करने वाली मशीन खुद भी न्यूक्लियर पॉवर से चलती थी।
इस खबर में कुछ तथ्य जोड़े उत्तराखंड के तब के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने। उन्होंने प्रधानमंत्री से मिलकर पिछले पचास सालों से नंदा देवी में गायब हो रखी एटॉमिक डिवाइस की बात की। उन्हें शक था कि यह गंगा को भी प्रदूषित कर सकती है और अगर ऐसा हुआ तो हिमालय से लेकर गंगासागर तक रेडियोएक्टिविटी फैलने का खतरा है। इकॉनमिक टाइम्स में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक तब पीएम ने उन्हें उस खोई हुई डिवाइस को खोजने का भरोसा दिलाया था।
दरअसल नंदा देवी पर इस डिवाइस से निकला जो प्लूटोनियम खो गया है, वह आज कल की नहीं, सन 1964 की बात है। यह एक टॉप सीक्रेट मिशन था और इसमें दिल्ली के रहने वाले कैप्टन मनमोहन सिंह कोहली भी शामिल थे। टाइम्स ऑफ इंडिया ने पिछले साल इनसे इस सीक्रेट मिशन पर बात की तो पता चला कि सन 1964 में चीन ने जब अपना पहला न्यूक्लियर टेस्ट किया था, तभी से अमेरिका ने उसकी न्यूक्लियर पॉवर पर नजर रखने के लिए भारत सरकार की अनुमति से नंदा देवी पर सेंसर लगाया था।
इस सेंसर की टेस्टिंग 23 जून 1965 को अलास्का के माउंट मॅकिनले पर की गई और फिर इसे वहां से नंदा देवी पर लाया गया। जासूसी के इस कार्यक्रम के खत्म होने के बाद अमेरिकी पूरी गैर जिम्मेदारी निभाते हुए इसे नंदा देवी पर छोड़ गए। जब हिंदुस्तानी अफसरों ने हल्ला किया तो परमाणु शक्ति से चलने वाले इस सेंसर को काफी तलाश करने की कोशिश की गई, लेकिन यह नहीं मिला। अब शक है कि इसमें काम आने वाले प्लूटोनियम कैप्सूल्स आसपास के जंगलों में फैले हैं जो वहां से निकलने वाले पानी पर अपना प्रभाव डाल सकते हैं।
यह सन 1965 था और तब अमेरिका दुनिया की जासूसी करने के लिए नंदा देवी जैसे पहाड़ों पर अपने सेंसर्स लगाता था, लेकिन अब सेटेलाइट लगाता है। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहते हैं। सोशल मीडिया पर ओवर एक्टिविटी कभी-कभार कुछ बेवकूफियां भी कराती हैं और जब यही बेवकूफियां बड़े लोग करते हैं तो किसी बड़े राज का पर्दाफाश होता है। डॉनल्ड ट्रंप के एक ट्वीट से अमेरिका के उस जासूसी सेटेलाइट के बारे में पूरी दुनिया को पता चल गया है, जो उसने अभी तक सबसे छुपा रखा था। 30 अगस्त को डॉनल्ड ट्रंप ने एक तस्वीर ट्वीट की और बताया कि किस तरह से अमेरिका इरान के एक एसएलवी लांच में इन्वॉल्व नहीं था।
इस मौके पर उन्होंने ईरान की उस जगह की सेटेलाइट से खींची तस्वीर लगाई, जहां से ईरान अपना साफिर एसएलवी लांच करने वाला था। उनके यह ट्वीट करने के कुछ ही देर बाद अंतरिक्ष विज्ञानियों ने पकड़ लिया कि यह तस्वीर अंतरिक्ष में मौजूद किस सेटेलाइट से खींची गई थी। दरअसल यह अमेरिका की टॉप सीक्रेट सेटेलाइट से खींची हुई तस्वीर थी जिसका नाम है यूएसए-224। जिस तरह से टोही विमान होते हैं, उसी तरह से यह भी एक टोही सेटेलाइट है। लेकिन यह कोई आम टोही सेटेलाइट भी नहीं है। यूएसए दृ 224 दरअसल हबल टेलिस्कोप जितनी ताकतवर दूरबीन है, बस इसका काम अलग है। हबल जहां सिर्फ अंतरिक्ष और सितारों पर नजर रखती है, वहीं यह सेटेलाइट धरती पर होने वाली महीन से महीन हरकतों पर नजर रखती है। जिस तरह से हबल दूरबीन में 2.4 मीटर का शीशा होता है, इसमें भी शीशे का साइज वही है।
बहरहाल, सन 1965 में चीन था और अब चीन के साथ-साथ अमेरिकी जासूसों की निगाह ईरान पर भी लगातार लगी हुई है। हालांकि ट्रंप अपने ट्वीट में कह रहे हैं कि वे किसी गतिविधि में शामिल नहीं हैं, लेकिन अमेरिकी खुफिया सेटेलाइट की तस्वीर साफ कह रही है कि अमेरिका ईरान में हो रही सभी गतिविधियों पर बाकायदा नजर रखे हुए है। सन 1965 में सोशल मीडिया नहीं था तो बड़ों से इस तरह की बेवकूफी नहीं होती थी, इसलिए यह राज अपने यहां पचास साल तक छुपा रहा। लेकिन सोशल मीडिया के जमाने में बड़े लोगों से होने वाली इस तरह की बेवकूफियां अब छुपे राजों को बहुत जल्द फाश करने लगी हैं।
(साई फीचर्स)