ये हैं कांग्रेस की करारी शिकस्त की वजहें

 

 

 

 

(ब्यूरो कार्यालय)

नई दिल्ली (साई)। लोकसभा चुनाव के संकेत साफ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली भाजपा का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस को पूरी तरह बदलना होगा।

मौजूदा संगठन, रणनीति, कार्य संस्कृति और कार्यकर्ताओं की बदौलत भाजपा को शिकस्त देना बेहद मुश्किल है। कांग्रेस को सियासी तौर पर भाजपा का मुकाबला करना है, तो उसे बिना कोई वक्त गवाए गलतियों से सीखते हुए बड़े बदलाव करने होंगे।

पांच साल पहले जब कांग्रेस को अपने इतिहास में सबसे कम 44 सीट मिली थी, तो उस वक्त लोगों को ज्यादा ताज्जुब नहीं हुआ था। क्योंकि, कांग्रेस के साथ यूपीए-दो सरकार की विफलताएं थी। इन पांच वर्षाे में कांग्रेस विपक्ष में थी, उसके पास संगठन मजबूत करने और रणनीति को जमीन पर उतारने का पूरा मौका था। पर कई प्रदेशों में नामांकन के आखिरी दिन तक रणनीति तय नहीं कर पाई।

कांग्रेस ने महाराष्ट्र, कर्नाटक, बिहार, झारखंड, केरल और तमिलनाडु सहित कई राज्यों में गठबंधन में चुनाव लड़ा। पर इन सभी प्रदेशों में आखिरी वक्त तक सीट को लेकर सहयोगियों से जोर आजमाइश चली। पूरे प्रचार के दौरान चुनाव रणनीति का अभाव रहा। कर्नाटक और बिहार में घटकदल आखिरी वक्त तक एक-दूसरे पर आरोप लगाते रहे। इसके चलते जमीनी स्तर पर महागठबंधन में शामिल दलों के कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच असमंजस की स्थिति बनी रही।

पार्टी के लिए सबसे चिंता की बात यह है कि चार माह पहले विधानसभा जीतकर जिन राज्यों में कांग्रेस सरकार बनाई थी, वहां हनीमून पीरियड माने जाने वाले छह माह में ही स्थिति बदल गई है। इन प्रदेशों में पार्टी का प्रदर्शन 2014 के चुनाव से भी खराब रहा है। जबकि कांग्रेस ने दस दिन के अंदर किसानों की कर्ज माफी को बड़ा मुद्दा बनाया था। ऐसे में साफ है कि कर्ज माफी और दूसरी योजनाओं का लाभ लोगों तक नहीं पहुंच सका। पार्टी को इन प्रदेशों पर अधिक ध्यान देना होगा।

लोकसभा चुनाव में लगातार दूसरी बार हार के बाद कांग्रेस के अंदर आवाज उठने लगी है। कई नेता राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद संगठन में हुए बदलावों से खुश नहीं है। एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि जब तक कांग्रेस जीत के लिए सरकार की गलतियों का इंतजार करती रहेगी, स्थिति में कोई बदलाव नहीं आएगा। पार्टी को अब खुद अपने बूते पर जीत की तैयारी करनी होगी। राष्ट्रीय पार्टी का अंहकार छोड़ते हुए दूसरे क्षेत्रीय दलों को इज्जत देनी चाहिए और सभी को साथ लेकर चलना होगा।

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