(ब्यूरो कार्यालय)
भोपाल (साई)। कमल नाथ सरकार ने संविदाकर्मियों की लंबित महत्वपूर्ण मांग को पूरा करते हुए संविदा पर्यवेक्षकों को बराबरी के पद का न्यूनतम 90 फीसदी वेतन देने का निर्णय किया है। इससे इन्हें अब हर माह पौने नौ हजार रुपए ज्यादा वेतन मिलेगा।
इसके दायरे में 480 संविदाकर्मी आएंगे। महिला एवं बाल विकास विभाग ने मंगलवार को इसके आदेश जारी कर दिए हैं। अन्य विभागों में भी इसको लेकर प्रक्रिया चल रही है। संविदाकर्मियों की समस्याओं का हल निकालने के लिए मुख्यमंत्री कमलनाथ ने दो माह पहले प्रमुख विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक की थी। इसमें विभागीय अधिकारियों को संविदा नीति के तहत समकक्ष नियमित पद के न्यूनतम वेतन का नब्बे फीसदी वेतन देने का पालन करने के निर्देश देते हुए रिपोर्ट मांगी थी।
रिपोर्ट तो अभी तक नहीं मिली है, लेकिन महिला एवं बाल विकास विभाग ने संविदा पर्यवेक्षकों को समकक्ष नियमित पद के न्यूनतम वेतनमान का 90 फीसदी वेतन देने के आदेश निकाल दिए हैं। सातवें वेतनमान में पर्यवेक्षक का न्यूनतम वेतनमान 25 हजार 300 रुपए है। बाल विकास परियोजनाओं में काम कर रहे संविदा पर्यवेक्षकों को काम करते हुए पांच साल से अधिक समय हो चुका है।
इन्हें अभी 13 हजार 948 रुपए महीने मानदेय दिया जा रहा है। मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद विभाग के प्रस्ताव को वित्त विभाग ने 28 अगस्त 2019 को स्वीकृति दी। इसके मुताबिक सातवें वेतनमान के 90 प्रतिशत के हिसाब से 22 हजार 700 रुपए प्रतिमाह मानदेय मौजूदा अनुबंध के खत्म होने और नया करार होने पर मिलेगा।
इस पूरे मामले को मुख्यमंत्री के सामने रखने वाले प्रदेश कांग्रेस मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष सैयद जाफर ने बताया कि कमलनाथ सरकार ने जो वचन दिया था, उसे निभाया है। महिला एवं बाल विकास विभाग के बाद अन्य विभागों में भी कार्रवाई चल रही है। निष्कासित संविदाकर्मियों को भी सेवा में बहाल किया जाएगा। इसके लिए विभागों से जानकारी एकत्र की जा रही है।
वहीं संविदा अधिकारी-कर्मचारी महासंघ के प्रांताध्यक्ष रमेश राठौर ने कहा कि विभाग के अधिकारियों ने मुख्यमंत्री की मंशा को दरकिनार कर ऐसा आदेश निकाला है, जिसके पालन के लिए छह माह इंतजार करना होगा। समकक्ष पद के न्यूनतम वेतनमान का 90 प्रतिशत मानदेय नए अनुबंध से प्रभावी होगा, जो एक जनवरी 2020 को होंगे। उन्होंने इस आदेश को पांच जून 2018 से लागू करने की मांग की है।
जानकारों का कहना है कि आध्यात्म के इन सूत्रों को जानकर व्यक्ति चाहे तो अपनी ऊर्जा कामचक्र पर खर्च कर यौन आनन्द प्राप्त करले, चाहे तो उसी चक्र को सक्रिय कर अपनी समस्त कामनाओं की पूर्ति करलें। दैवीय प्रतिमा में निषिद्धो पाली की मिट्टी के प्रयोग की परंपरा स्वयं में सामाजिक सुधार के सूत्र भी सहेजे दिखायी देती हैं। यह परंपरा पुरुषों की भूल की सजा भुगतती स्त्री के उत्थान और सम्मान की प्रक्रिया का हिस्सा भी प्रतीत होती है।
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