खुद झुलसकर रख रहे यात्रियों का ध्‍यान

 

 

 

 

(ब्‍यूरो कार्यालय)

भोपाल (साई)। भारतीय इतिहास का वो दिन, जब भारत में पहली पर पटरी पर ट्रेन दौड़ी थी। 16 अप्रैल 1853 को बॉम्बे (मुंबई) से ठाणे तक पहली पैसेंजर ट्रेन चली। 14 बोगियों वाली इस ट्रेन में तीन इंजन लगी थी, जो साहिब, सिंध और सुल्तान था। इस ट्रेन में 400 पैसेंजर सवार थे। इऩ 166 सालों में भारतीय रेलवे में कई बदलाव हुए लेकिन नहीं बदली तो यात्रियों को सुरक्षित पहुंचाने वाले ड्राइवरों की स्थिति।

भारतीय रेलवे के ड्राइवर जिस इंजन में बैठ आपकी ट्रेन को रफ्तार देते हैं, उसकी हालत गर्मियों के दिन में किसी बॉयलर से कम नहीं होती। बाहर के टेंपरेचर के साथ-साथ इंजन की गर्मी से ड्राइवर के केबिन का तापमान करीब 50 डिग्री सेल्सियस के करीब होता है। इतने टेंपरेचर पर तो पानी खौल जाता है। इन हालातों में भी खुद को बीमार कर ये ड्राइवर आपको मंजिल तक हर दिन सुरक्षित पहुंचाते हैं।

पूरे मध्यप्रदेश में 42-45 डिग्री सेल्सियस तक तापमान होने से प्रदेश के लोग बेहाल हैं। जरूरी काम न हो तो लोग घरों से निकलने में परहेज करते है। मगर रेलवे के लोको पायलट 5-8 डिग्री सेल्सियस ज्यादा यानि 52 से 53 डिग्री सेल्सियस की गर्मी में ट्रेन चलाने को मजबूर हैं।

सिर्फ तापमान ही नहीं, इंजन में लगी 6 मोटरों के चलने की भारी कर्कश आवाज और गड़गड़ाहट भी इनकी परीक्षा लेती है। ये हालात इसलिए है कि क्योंकि रेलवे की 75 प्रतिशत से अधिक ट्रेनों के ड्राइवर के केबिन में एयर कंडीशनर नहीं लगे हैं। जिन 25 प्रतिशत ट्रेनों में एसी लगे हैं, उनमें से मात्र 5 फीसदी में ही काम कर रहे हैं।

ट्रेन के ड्राइवर इस असहनीय गर्म हवा से बचने के लिए मुंह, कान और सिर पर साफी बांधकर रखते हैं। उन्हें बार-बार पानी पीना पड़ता है। दिन में ट्रेन चलाने वाले ड्राइवरों के 8 घंटे ट्रेन के अंदर किसी भट्टी में तपने से कम नहीं होते।

वहीं, डब्ल्यूसीआरईयू भोपाल के मंडल अध्यक्ष टीके गौतम ने कहा कि लोको पायलट और गार्ड को सामान्य तापमान से 08-10 डिग्री अधिक तापमान में काम करना पड़ता है। इसे लेकर हम लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि इंजन केबिन को एसी किया जाए। सरकार ने हां तो कर दी है, लेकिन इस पर जिस तेजी से होना चाहिए वह नहीं हो रहा है।

बढ़ रही बीमारी

चिकित्सकों के अनुसार लोको पायलट को हाई बीपी, शुगर और बहरेपन की बीमारी आम है। यहां तक की युवा ड्राइवर्स भी तेजी से इसकी चपेट में आ रहे हैं।

2011 में किया था आंदोलन

रेलवे ड्राइवर्स की परेशानी को लेकर वर्ष 2011 में बिलासपुर जोन सहित अन्य डिवीजन में ड्राइवर्स की पत्नी और परिजनों ने गर्मी में अधिक तापमान में करने के मुद्दे पर आंदोलन किया था। तब ही इंजन के अंदर के तापमान रिकॉर्ड किया गया था, जिसमें बाहर के तापमान से 6 से 9 डिग्री अधिक पाया गया था।

वहीं, भोपाल मंडल में कुल रेल इंजन की संख्या 450 है, जबकि ड्राइवरों की संख्या 1500 है। साथ ही लंबे समय तक देश की सबसे लग्जरी ट्रेन मानी जानी वाली शताब्दी एक्सप्रेस तक के इंजन में रेलवे एसी नहीं लगवा सका। जबकि इस ट्रेन में पावर बैकअप के लिए जनरेटर तक लगे हुए हैं।