(ब्यूरो कार्यालय)
मण्डला (साई)। मध्य प्रदेश के कान्हा टाइगर रिजर्व के रेंजरों ने 22 मार्च को जो देखा उसे देखकर वह हैरान रह गए। एक बाघ दूसरे बाघ के शव को खा रहा था। कुछ दिनों पहले भी कान्हा में ही ऐसी एक और घटना हुई थी जिसमें मृत बाघिन का शव क्षत-विक्षत पाया गया था।
तब यही अनुमान लगाया गया था कि इसे किसी दूसरे बाघ ने खाया होगा। लेकिन यह पहला मौका था जब गश्ती दल ने ऐसा होते हुए न केवल अपनी आंखों से देखा बल्कि उसे कैमरे में भी कैद किया।
वन्य अधिकारियों के मुताबिक, कान्हा के किसली रेंज में मगरनाला इलाके में टी56 नामके बाघ ने टी36 बाघ को मार डाला था। कान्हा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर एल कृष्णमूर्ति कहते हैं, ‘जो बाघ मारा गया वह हमलावर से दो साल बड़ा था। ये बात साफ है कि यह इलाके को लेकर हुई लड़ाई का नतीजा था। हमलावर बाघ मृत बाघ के शरीर की रखवाली कर रहा था। हम उसके बर्ताव पर नजर रखे हुए थे।‘ वन्यकर्मी मृत बाघ के शव को कब्जे में नहीं ले पाए क्योंकि बाघ उसे छोड़ नहीं रहा था।
पिछले तीन महीने में यह पांचवां मामला
कान्हा में इस तरह की घटना पिछले तीन महीने में पांचवीं बार हुई है। इससे पर्यावरणविद् परेशान हुए हैं, खासकर वे छोटे बाघों के लेकर चिंता में हैं। 2019 में मारे जाने वाले पांच बाघों में तीन बाघ व्यस्क नहीं हो पाए थे। कान्हा 100 से ज्यादा बाघों का घर है, इनमें से 83 व्यस्क बाघ हैं।
सख्त कदम उठाए जा रहे हैं
जब कोई जीव अपनी ही प्रजाति के जीव को खाए तो उसे अंग्रेजी में कैनिबलिज्म या स्वजाति भक्षण कहते हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या पर्याप्त शिकार के अभाव की वजह से कान्हा के बाघों में यह कैनिबलिज्म देखा जा रहा ? लेकिन कृष्णमूर्ति का कहना है कि कान्हा में बाघों के लिए खाने को पर्याप्त शिकार है। हालांकि वन्य अधिकारी यह भी कहते हैं कि अपने इलाके की रक्षा के लिए बाघ एक-दूसरे को मार रहे हैं, लेकिन ये भी बाघों की इस आदत पर कुछ भी कहने से बच रहे हैं।
16 मार्च को एक बाघ ने दो छोटी उम्र के बाघों को मार कर खा लिया था। माना जाता है कि 19 जनवरी को इसी बाघ ने एक बाघिन को मारकर खाया था। इसीके बाद मध्यप्रदेश के वन्यजीव विभाग ने संरक्षित इलाकों में रह रहे बाघों में कैनिबलिज्म की घटनाओं पर शोध शुरू करवा दिया।