बंदरों का एक बहुत बड़ा दल आम के बाग में निवास किया करते थे. बन्दर जब भी आम तोड़ने का प्रयास करते इस बीच आम तो बहुत कम ही हाथ लगते थे पर बाग के रखवालों के द्वारा पत्थर से मार ज्यादा झेलने पड़ते थे.. एक दिन पत्थर के मार से तंग आकर बंदरों के
सरदार ने एक दिन सभी बंदरों की सभा बुलाई और यह घोषणा की गई कि आज से हम अपना अलग ही बाग बनायेंगे और उसमे आम के पेड़ लगाएंगे आखिर इससे रोज-रोज के इस झंझट से मुक्ति तो मिलेगी!
यह बात सभी बंदरों को जँच गई. सबने आम की एक-एक गुठली ली और उसे जमीन में गढ्ढा करके बो डाली.. सबकी आँखों में प्रसन्नता की लहर व्याप्त हो गई कि बन्दर आम के पेड़ के स्वामी बनने वाले हैं.. लेकिन यह क्या कुछ ही घंटे गुजरे थे कि बंदरों ने जमीन खोदकर गुठलियाँ बाहर निकाल लीं ताकि यह देख सकें कि गुठलियों से पेड़ निकला है या नहीं! देखते ही देखते सारा बाग उजड़ गया.. दूर से यह सब देख रहे बाग के मालिक ने अपने सहचरों से कहा- “कर्मों का इच्छानुसार यदि फल प्राप्त करना हो तो प्रयत्न के अतिरिक्त धैर्य की भी बहुत ही आवश्यकता होती है.. अधीर मनुष्यों का भी हाल इन्हीं मुर्ख वानरों के समान होता है, यदि कोई मनुष्य भी कर्म करते हुए मन में थोड़ा भी धैर्य नहीं रखता तो वह इस प्रकार आम के पौधे तो लगा लेगा परन्तु उसके हाथ कभी भी आम का फल हाथ नहीं आएगा..
मित्रों, आज के दौर में हम सब जल्दी से जल्दी सफल होने के ख्वाब देख रहे हैं, ये भी सच है कि उसके लिए हमारे मेहनत भी में भी कोई कमी नहीं है लेकिन यदि हमें सफलतापूर्वक फल प्राप्त करना है तो धैर्य धारण किये बिना सफल होने के कल्पना करना भी दुश्वार है… इसलिए हम सही दिशा में जमकर मेहनत तो करें ही साथ ही सफल होने पर पूरा विश्वास करके धैर्य के साथ अपने काम में लगे रहें और यदि इसी धैर्य के साथ हम अपना काम करते रहें तो सफल होना निश्चित है. क्योंकि हम सबको पता है कि सब्र का फल बहुत ही मीठा होता है..
(साई फीचर्स)