(शरद खरे)
लोकसभा चुनाव सिर पर है, इस चुनाव में भी स्थानीय मुद्दोें पर चर्चा करने से प्रत्याशियों को परहेज़ ही दिख रहा है। माना कि संसद सदस्य चुनने के बाद केंद्र की सरकार बनेगी। जिस दल के ज्यादा सांसद चुने जायेंगे उस दल की सरकार केंद्र में सत्तारूढ़ होगी, पर इस सबके बाद भी स्थानीय मामलों में सियासी दलों की चुप्पी आश्चर्य जनक ही मानी जायेगी।
विधान सभा के दौरान प्रदेश सरकार से जिन सौगातों को दिलवाया जा सकता था या जो सौगातें (भले ही प्रतिनिधियों के प्रयास की बजाय नीतिगत मामलों के कारण मिली हों) मिलीं थीं उन पर चर्चा से परहेज़ ही किया गया। अब लोकसभा चुनावों में भी कमोबेश वही स्थिति दिख रही है।
सिवनी में फोरलेन का मामला हो या इस फोरलेन पर ट्रामा केयर यूनिट का, महात्मा गाँधी रोजगार योजना सहित अन्य सभी केंद्र पोषित योजनाओं पर अगर नजर डाली जाये तो हर योजना के क्रियान्वयन में सिवनी जिला फिसड्डी ही आता दिखेगा। इसका कारण यही माना जा सकता है कि स्थानीय मामलों में चर्चा करने से सियासतदार बचते ही आये हैं।
सियासी दलों के नुमाईंदों के द्वारा स्थानीय विधायक प्रदेश के मुख्यमंत्री या नेता प्रतिपक्ष को मान लिया जाता है। इसके अलावा स्थानीय सांसद के रूप में उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या काँग्रेस के अध्यक्ष राहुल गाँधी का अक्स ही दिखायी देता है। स्थानीय नेताओं को छोड़कर देश-प्रदेश के नेताओं को कोसना जिला स्तर के नेताओं का प्रिय शगल बनकर रह गया है।
स्थानीय नेता यह भूल जाते हैं कि उनका कद अभी प्रदेश या राष्ट्रीय स्तर का नहीं हुआ है। अगर उनका कद प्रदेश या राष्ट्रीय स्तर का हो गया होता तो विधान सभा और लोक सभा चुनावों के स्टार प्रचारकों की फेहरिस्त में उनके नामों का शुमार हो चुका होता। दरअसल, देश-प्रदेश के आला नेताओं को कोसकर स्थानीय नेता, लोगों का ध्यान भटकाकर मीडिया में बने रहना चाहते हैं।
याद नहीं पड़ता किसी दल के नुमाईंदे के द्वारा फोरलेन के ट्रामा केयर यूनिट के न बनने पर जिले के दोनों सांसदों को कभी कटघरे में खड़ा किया गया हो अथवा जिला अस्पताल के ट्रामा केयर यूनिट पर जिले के चारों विधायकों की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगाये हों। इस तरह के एक नहीं अनेकों मामले हैं जिन्हें अगर गिनाया जाये तो . . .!
लगभग दो दशकों से ज्यादा समय से जिले में यह रवायत चल पड़ी है कि स्थानीय सांसद विधायक की जवाबदेही तय न करते हुए मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री को ही कोसा जाये। यक्ष प्रश्न यही है कि क्या सिवनी के नेताओं के द्वारा जारी की जाने वाली विज्ञप्तियों या बयानों से वे नेता अवगत हो पाते हैं जिनके बारे में यह कहा जा रहा है!
कुल मिलाकर सिवनी का विकास तब तक संभव नहीं है जब तक हम स्थानीय मामलों में स्थानीय प्रतिनिधियों की जवाबदेही तय नहीं करेंगे। स्थानीय प्रतिनिधियों और स्थानीय मामलों को तजने वाले नेताओं को सोचना होगा कि वे आने वाली पीढ़ी को कौन सा सिवनी विरासत में देकर जाने वाले हैं। सिवनी का विकास दो ढाई दशकों से अवरूद्ध है। सिवनी की झोली में जो कुछ भी आया है वह केवल नीतिगत मामलों के कारण ही आया है, इसमें सियासतदारों का शायद ही कोई प्रयास रहा हो!

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