पेयजल संकट की आहट

 

 

(शरद खरे)

हर साल की तरह इस साल भी भीषण गर्मी के मौसम की दस्तक के साथ ही पेयजल के संकट की पदचाप सुनायी देने लगी है। जिला मुख्यालय में भी पेयजल संकट दिखायी दे रहा है तो ग्रामीण अंचलों से भी पेयजल संकट की खबरें आना आरंभ हो गयी हैं। इसी के साथ भूमिगत जल स्तर भी नीचे जाता दिख रहा है।

गर्मी के मौसम में पानी की खपत, अपेक्षाकृत बढ़ना स्वाभाविक ही है। गर्मी में मनुष्यों के साथ ही साथ पशु पक्षियों को भी पानी की अधिक आवश्यकता होती है। जिला मुख्यालय सहित ग्रामीण अंचलों में भी पहले की तरह मवेशियों, जानवरों और पशु पक्षियों के लिये पानी की व्यवस्थाएं न के बराबर ही दिखायी देती हैं।

एक समय था जब जिला मुख्यालय में ही स्थान-स्थान पर धर्मार्थ प्याऊ हुआ करतीं थीं। इसके अलावा नगर पालिका के द्वारा भी प्याऊ की व्यवस्थाएं की जाती थीं। नेताओं के द्वारा भी प्याऊ की व्यवस्थाएं की जाती रही हैं। इस साल किसी के द्वारा भी प्याऊ की व्यवस्थाएं न किया जाना आश्चर्य का ही विषय माना जा सकता है।

सड़क परिवहन के यात्री बस स्टैण्ड पर भी सालों पुरानी प्याऊ कहाँ चली गयी, किसी को पता नहीं। नगर पालिका और राजस्व विभाग सालों से अतिक्रमण हटाने की बात कहता आया है पर बस स्टैण्ड की पुरानी प्याऊ को खोजने और सहेजने में किसी की दिलचस्पी नहीं दिख रही है।

इसके अलावा सपनि के कार्यालय में भी पानी की व्यवस्थाएं हुआ करती थी, जिसके अभाव में अब यात्री पानी के लिये तरसते देखे जा सकते हैं। बोतल बंद महंगा पानी खरीदना हर किसी के बस की बात नहीं है।

जल स्त्रोतों के रखरखवाव में भी स्थानीय निकायों की दिलचस्पी कम ही दिखती है। कुछ माह पूर्व पालिका के द्वारा अनेक कुंओं की सफाई करायी गयी थी। ये कुंए आज भी पहले की ही तरह गंदे नजर आ रहे हैं। इनका पानी निस्तार के लिये भी माकूल नहीं माना जा सकता है। यक्ष प्रश्न यही है कि अगर कुंओं की सफाई नहीं हुई है तो पालिका के द्वारा कुंओं की सफाई के नाम पर पैसा कैसे आहरित कर लिया गया है।

उधर, ग्रामीण अंचलों में पानी के संकट के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। ग्रामीण अंचलों में नल-जल योजनाएं दम तोड़ रहीं हैं। ग्राम पंचायतों के द्वारा इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। ग्रामीण अंचलों में लोग किस तरह से पानी की किल्लत से जूझ रहे होंगे, इसे समझा जा सकता है।

आज आवश्यकता इस बात की है कि जिले में गिरते जल स्तर को देखते हुए रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को सख्ती के साथ लागू करवाया जाये। अभी नहीं तो कभी नहीं की तर्ज पर इस व्यवस्था को लागू कराया जाना अत्यंत आवश्यक है अन्यथा आने वाले सालों में . . .।

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