तय हो विधायक, सांसदों की जवाबदेही!

 

 

(लिमटी खरे)

भारत के संविधान में वैसे तो विधायक और सांसदों की जवाबदेही तय है, किन्तु बीते डेढ़-दो दशकों से सियासी हल्कों में नैतिक मूल्यों में जिस तरह से गिरावट दर्ज की गयी है वह वाकई चिंता का विषय ही माना जा सकता है। सिवनी जिले में एक सांसद और पाँच विधायक हुआ करते थे, अब चार विधायक और दो सांसद हैं। इसके बाद भी सिवनी जिले की झोली आखिर रीति क्यों है? क्यों सिवनी के दामन में सौगातों की बजाय आश्वासनों के झुनझुने ही थमाये जाते रहे हैं।

देखा जाये तो प्रदेश और केंद्र सरकार से सिवनी की झोली में सौगातें डालने का क्रम पूर्व केंद्रीय मंत्री सुश्री विमला वर्मा के सक्रिय राजनीति से किनारा करने के बाद थमता ही चला गया। इक्कीसवीं सदी में सिवनी को जो भी सौगातें मिलीं हैं वे सारी की सारी किसी और कारण से या किसी के प्रयासों से नहीं वरन केंद्र और प्रदेश सरकार के नीतिगत निर्णयों के कारण ही मिली हैं।

सिवनी के सांसदों के द्वारा लोकसभा के पटल पर सिवनी से संबंधित कितनी समस्याएं उठायी गयीं हैं इस बारे में सांसद मौन हैं, वहीं विधानसभाओं में सिवनी के ज्वलंत विषयों पर प्रश्न दागने वाले विधायक यह बताने में असमर्थ ही होंगे कि उनके द्वारा पूछे गये प्रश्नों में से कितने प्रश्नों पर कार्यवाही हुई है, यह प्रश्न अनुत्तरित ही माना जा सकता है जिसमें विधायकों के द्वारा यह कहा जाता है कि सरकार ही हमारी बात नहीं सुन रही है? अगर ऐसा है तो यह जनता के द्वारा दिये गये जनादेश का अपमान ही माना जा सकता है।

मामला चाहे मॉडल रोड का हो, जलावर्धन योजना में घटिया एलम और ब्लीचिंग या मेटेवानी स्थित परिवहन चेक पोस्ट का। हर मामले में पिछली विधान सभा में प्रश्न अवश्य पूछे गये किन्तु उन प्रश्नों के बाद क्या कार्यवाही हुई इस बारे में जानने की जहमत विधायकों ने नहीं उठायी होगी? ऐसा विधायकों ने क्यों किया, यह बात तो वे ही जानें पर इस तरह विधान सभा के पटल पर बातों को उठाने के बाद अगर उन पर कार्यवाही न हो तो इसे क्या माना जाये!

सिवनी जिला लगातार ही उपेक्षा का दंश भोगता आ रहा है। सिवनी, छिंदवाड़ा और बालाघाट जिलों को मिलाकर नया (सतपुड़ा) संभाग बनाने के लिये 2008 में तीनों जिलों के निवासियों से दावे आपत्ति बुलाने की बात भी सामने आयी थी। विडंबना ही कही जायेगी कि पुलिस उप महानिरीक्षक का कार्यालय छिंदवाड़ा में खोल दिया गया जबकि भौगोलिक दृष्टि से सिवनी ही सतपुड़ा संभाग का केंद्र है।

वरिष्ठ इंका नेता आशुतोष वर्मा ने इस संबंध में सूचना के अधिकार के तहत जानकारी माँगी तो उन्हें यह ज्ञात हुआ कि प्रस्तावित सतपुड़ा संभाग में बुलाये गये दावे और आपत्तियों को विलंबित रखने के निर्देश मिले थे। 2008 के बाद 2013 व 2018 में विधानसभा चुनाव हुए। सिवनी को तीन विधान सभा चुनावों में बारह (हर बार चार) विधायक मिले। एक बार फिर विडंबना यही सामने आयी कि बारह विधायकों में से किसी ने भी इस मामले को विधान सभा के पटल पर रखना मुनासिब नहीं समझा।

सिवनी जिला उद्योग धंधे विहीन क्यों हैं? इस बारे में शायद ही कभी सांसदों-विधायकों ने विचार किया हो। सिवनी में सड़क और रेल मार्ग से परिवहन करने में आने वाली परेशानियों के चलते उद्योगपतियों के द्वारा भी सिवनी में उद्योग स्थापित करने से गुरेज ही किया जाता होगा।

सिवनी में डालडा फैक्ट्री के पास का औद्योगिक क्षेत्र भरा हुआ है। अगर कोई बेरोजगार उद्योग कार्यालय जाकर पता करता है तो उसे यह कह दिया जाता है कि डालडा फैक्ट्री के पास के औद्योगिक क्षेत्र में एक भी भूखण्ड रिक्त नहीं है। जमीनी हकीकत यह है कि इस औद्योगिक क्षेत्र में जहाँ नजर डाली जाये वहाँ रिक्त भूखण्ड दिखायी देते हैं।

यक्ष प्रश्न यही है कि क्या यहाँ उद्योग स्थापित करने के लिये भूखण्डों का आवंटन इसलिये किया गया है ताकि यहाँ उद्योग लगाने वाले सालों साल तक भूखण्ड को रिक्त रखें। नियमानुसार अगर एक साल के अंदर उद्योग की संस्थापना नहीं की जाती है तो जमीन की लीज निरस्त कर दी जाती है।

सिवनी से होकर गुजरने वाली फोरलेन का काम बहुत ही मुश्किलों के बाद अब पटरी पर आता दिख रहा है। सिवनी में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के एक हजार करोड़ रूपये से ज्यादा के काम होने हैं, इसके बाद भी एनएचएआई का एक अदद कार्यालय भी सिवनी जिले में खुलवाने में सांसदों को पसीना आ रहा है, जबकि एनएचएआई का परियोजना निदेशक का कार्यालय सिवनी में हुआ करता था, जिसे नरसिंहपुर स्थानांतरित कर दिया गया। अब सिवनी का काम छिंदवाड़ा स्थित परियोजना निदेशक के द्वारा देखा जा रहा है।

सिवनी में फोरलेन पर लखनादौन के पास टोल टैक्स वसूलने टोल बूथ बना हुआ है, बावजूद इसके अलोनिया में ट्रक ले बाय में अस्थायी टोल बूथ बनाकर यहाँ टोल वसूली हो रही है। इस बारे में भी लोकसभा में प्रश्न पूछने में सांसदों को फुर्सत नहीं है कि अगर लखनादौन के पास टोल बूथ का उपयोग नहीं करना था तो उसका निर्माण ही क्यों कराया गया?

इतना ही नहीं सिवनी के नये बायपास पर प्रस्तावित ट्रामा केयर यूनिट, मोहगाँव से खवासा तक के जर्जर सड़क मार्ग के बारे में भी प्रश्न करने में सांसद पीछे ही हैं। और तो और सिवनी शहर में छिंदवाड़ा नाका के पास रेल्वे लाईन पर रेल्वे ओव्हर ब्रिज (आरओबी) का निर्माण भी नहीं कराया गया है।

एक नहीं अनेंकों मसले हैं जिन्हें देखकर लगने लगा है कि सिवनी में सांसद-विधायकों के द्वारा जनता के द्वारा उन्हें दिये गये जनादेश का पूरा-पूरा सम्मान नहीं किया जा रहा है। विधान सभा या लोकसभा में महज प्रश्न पूछकर ही विधायक-सांसद अपनी जिम्मेदारी को पूरा करते नजर आ रहे हैं जिसको किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं माना जा सकता है . . .!