गर्मी में हलाकान होते मरीज!

 

 

(शरद खरे)

प्रदेश हो या केंद्र सरकार, दोनों ही के जिम्मे अपनी रियाया यानी आम आदमी, जिसे संविधान ने सांसद-विधायक के जरिये सरकार चुनने का हक दिया है का पूरा ध्यान रखने की नैतिक जवाबदेही आहूत होती है। हुक्मरानों के जिम्मे यह व्यवस्था भी है कि वे अपनी रियाया को निःशुल्क बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराये। मरीजों को स्वास्थ्य सुविधाएं मिल पा रही हैं अथवा नहीं, यह देखने की जवाबदेही सांसद-विधायकों की होती है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री सुश्री विमला वर्मा जब केवलारी विधायक थीं और प्रदेश में मंत्री रहीं तब उनकी तूती बोला करती थी। उन्होंने अपनी दूरंदेशी दिखाते हुए सिवनी में सत्तर के दशक के पूर्वार्द्ध में मिनी मेडिकल कॉलेज की क्षमता वाले जिला चिकित्सालय की संस्थापना करवायी थी। आज भी लोग उनकी सौगातों को रह-रह कर याद किया करते हैं।

सिवनी के जिला चिकित्सालय को देखकर यह लगता है मानों दो-तीन दशकों से इसे किसी की नजर लग गयी है। यहाँ पदस्थ प्रशासकों के द्वारा पता नहीं अस्पताल की दुरावस्था की ओर ध्यान क्यों नहीं दिया जाता रहा है। वर्तमान में भी अस्पताल में व्यवस्थाओं को देखकर लगता है मानो व्यवस्थाएं ही आईसीसीयू में उखड़ी साँसें ले रही हों।

गर्मी का मौसम अपने पूरे शवाब पर है। लोग अपने घरों और प्रतिष्ठानों में अपनी-अपनी क्षमता के अनुरूप एयर कण्डीशनर (कूलर्स और एसी) के जरिये गर्मी से बचाव के उपाय कर रहे हैं। जिला चिकित्सालय में एयर कण्डीशनर तो लगे हैं पर अस्पताल के प्रशासकों ने अपनी सुविधा के हिसाब से इनकी संस्थापना करवायी है।

रही बात कूलर्स की तो कूलर चहुँओर दिखायी दे जाते हैं। इन कूलर्स में से कुछ चुनिंदा स्थानों पर लगे कूलर पानी के अभाव में इस तरह हवा फेंकते हैं मानों वहाँ एयर कण्डीशनर ही न लगा हो। अस्पताल के वाडर््स में जहाँ मरीज भर्त्ती रहते हैं वहाँ के कूलर आग उगल रहे हैं। गर्मी के मौसम में गर्म कूलर के हवा के थपेड़ों से मरीजों की पीड़ा समझी जा सकती है।

अस्पताल प्रशासन के पास राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की मद में अच्छी खासी इमदाद आती है। इसके अलावा अस्पताल प्रशासन को रोगी कल्याण समिति के माध्यम से भी आवक होती है। अस्पताल में पानी का संकट वास्तव में है या कृत्रिम रूप से यह बात तो अस्पताल प्रशासन जाने पर यह सही है कि मरीज, बिना पानी के कूलर से गर्म हवाएं ले रहे हैं।

मरीजों के प्रति हर कोई संजीदा होता है। इस मामले में अगर अस्पताल प्रशासन के द्वारा सांसद-विधायक से गुहार लगायी जाती तो सांसद और विधायक निधि से ही अस्पताल में दो-तीन बोर हो चुके होते। अस्पताल के पास बहुत बड़ा रकबा है। जिला प्रशासन के माध्यम से अस्पताल प्रांगण में कुंआ खुदवाया जा सकता है। कहते हैं कि अस्पताल में फीडर लाईन का कनेक्शन भी है, जिसकी लाईन क्षतिग्रस्त हो गयी है। अगर किसी चिकित्सक के घर की पानी की लाईन क्षतिग्रस्त हुई होती तो नगर पालिका के आला अधिकारी खड़े होकर इसे सामने से दुरूस्त करवाते, पर यह गरीब गुरबे मरीजों का मसला है इसलिये इस ओर कोई भी ध्यान नहीं दे रहा है। लोगों की नजरें एक बार फिर संवेदनशील जिला कलेक्टर प्रवीण सिंह पर जाकर टिकती दिख रही हैं . . .!

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