अस्पताल में रात में नहीं होती शल्यक्रिया!

 

 

वर्षों से सीजर, हॉर्निया छोड़ अन्य शल्य क्रियाओं से किया जा रहा परहेज!

(अय्यूब कुरैशी)

सिवनी (साई)। रेफरल अस्पताल की छवि बना चुके इंदिरा गाँधी जिला चिकित्सालय में अस्पताल प्रशासन की कथित अनदेखी के चलते रात के वक्त अस्पताल के ऑपरेशन थियेटर में सन्नाटा ही पसरा रहता है। गंभीर मरीज अगर ज्यादा परेशान होता है तो उसका ऑपरेशन करने की बजाय उसे नागपुर या जबलपुर रेफर कर दिया जाता है।

मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय के उच्च पदस्थ सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि जिला चिकित्सालय में लगभग सात आठ सालों से हॉर्निया और सर्जरी वाले प्रसव के अलावा अन्य शल्य क्रियाएं नहीं की जा रही हैं। गंभीर बीमारी के मरीजों को ज्यादा दर्द होने की स्थिति में, उन्हें नागपुर या जबलपुर रेफर कर दिया जाता है।

सूत्रों ने कहा कि कोई विधायक अगर विधान सभा में अथवा कोई सामान्य व्यक्ति अगर सूचना के अधिकार के तहत इस बात की जानकारी निकाले कि अस्पताल में पिछले एक दशक में कितनी गंभीर बीमारियों के लिये शल्य क्रियाएं हुुईं हैं, तो हैरत अंगेज जानकारी सामने आ सकती है। सूत्रों ने कहा कि रात के समय अगर जरूरी हुआ तो सिर्फ प्रसव के मरीजों की ही शल्य क्रिया कर प्रसूती की जाती है। इसके अलावा अन्य मरीजों को जिले से बाहर ही रेफर कर दिया जाता है।

इसी तरह सूत्रों की मानें तो यह पूरा का पूरा मामला निश्चेतक और शल्य क्रिया करने वालों के बीच ही झूलता नजर आता है। अस्पताल में शल्य क्रिया के पहले निश्चेतना देने के लिये निश्चेतकों के द्वारा आनाकानी किये जाने, पैसे माँगने आदि के आरोप, पूर्व में भी लग चुके हैं इसके बाद भी अस्पताल की व्यवस्थाएं पटरी पर नहीं आ पा रही हैं।

सूत्रों ने कहा कि चिकित्सकों की आपसी खींचतान और कथित उदासीनता के चलते अब अस्पताल में ग्रामीण अंचलों से आने वाले मरीजों को इसका खामियाजा भुगतने पर मजबूर होना पड़ रहा है। चिकित्सालय प्रशासन की कथित अनदेखी के चलते मरीजों को रेफर करने की तादाद को देखते हुए अब लोग सिवनी अस्पताल, को रेफरल अस्पताल की संज्ञा भी देने लगे हैं।

सूत्रों ने बताया कि हाल ही में एक प्रसूता को लगभग सात घण्टे से ज्यादा समय तक शल्य के लिये इंतजार करना पड़ा था। इस मामले में भी लिखा पढ़ी में बहुत सारी चीजें आ चुकी हैं। इस मामले की जाँच अगर किसी सक्षम अधिकारी से करवा ली जाये तो जिला प्रशासन के सामने जिला अस्पताल की वास्तविक छवि और हालात आ सकते हैं।

सूत्रों की मानेें तो जिला चिकित्सालय में प्रसूति वार्ड में ही भ्रष्टाचार के खेल का ताना बाना बुना जाता है। महिला चिकित्सकों के बीच चल रही वर्चस्व की जंग का खामियाजा मरीजों को भोगने पर मजबूर होना पड़ रहा है। सूत्रों ने यह भी कहा कि जिले में स्वास्थ्य सेवाओं पर नियंत्रण के लिये सक्षम प्राधिकारी मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी हैं, पर उन्हें भी जिला अस्पताल में चल रही भर्राशाही से ज्यादा सरोकार नजर नहीं आ रहा है।