स्वच्छता सर्वेक्षण में 140 तो प्रदेश में 25वें स्थान पर आया सिवनी
(अखिलेश दुबे)
सिवनी (साई)। स्वच्छता सर्वेक्षण 2019 में सिवनी जिले की स्थिति, पिछली बार की तुलना में फिसल गयी है। राष्ट्रीय सूची में प्रदेश की व्यवसायिक राजधानी इंदौर पहले नंबर पर है वहीं राजनैतिक राजधानी भोपाल दूसरे स्थान पर है। इस सूची में नेशनल टॉप 20 में प्रदेश के छः शहर हैं।
इस सर्वेक्षण में सिवनी की बात करें तो जिला मुख्यालय इस सूची में 140वीं पायदान पर है। पिछले साल के मुकाबले सात पायदान नीचे चला गया है सिवनी। देश भर के 425 शहरों में सिवनी 140वें स्थान पर है तो प्रदेश के 32 शहरों में सिवनी का स्थान 25वां है। स्वच्छता सर्वेक्षण 2018 में देश भर में सिवनी की रैंकिंग 134 थी और प्रदेश में यह 27वीं पायदान पर रहा था।
वहीं, 2017 के सर्वेक्षण में देश में सिवनी की रैंकिंग 163वीं थी। सिवनी की जनसंख्या 01 लाख 02 हजार 343 है और इसमें से 329 नागरिकों से स्वच्छता सर्वेक्षण का फीडबेक लेने की बात कही जा रही है। सिवनी में जब सर्वेक्षण दल आया था उस समय कचरा गाड़ी के साथ एक कर्मचारी भी वर्दी में चलते दिखायी देता था, जो सर्वेक्षण दल के जाते ही गायब हो गये थे।
देखा जाये तो नगर पालिका परिषद को स्वच्छता के लिये अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। सालाना साठ लाख रुपये के स्वच्छता बजट और तीन सैकड़ा से अधिक सफाई कर्मियों की फौज होने के बावजूद सिवनी की स्थिति में आपेक्षिक सुधार का न होना स्पष्ट रूप से लापरवाही की ही ओर इशारा करता दिखता है।
पड़ौसी जिलों की तुलना में बात करें तो पड़ोसी जिला छिंदवाड़ा इस सर्वेक्षण में जहाँ 26वें स्थान पर तो प्रदेश में नवमें स्थान पर है वहीं संस्कारधानी जबलपुर 25वें स्थान पर है तो प्रदेश में यह आठवें स्थान पर है, जबकि दोनों शहरों के मुकाबले सिवनी की जनसंख्या और क्षेत्रफल काफी कम है।
दो दर्जन वार्ड, सवा लाख जनसंख्या : सिवनी जिला मुख्यालय में 24 वार्ड हैं। सिवनी की जनसंख्या सवा लाख के आसपास बतायी जा रही है। संसाधनों की बात करें तो यहाँ सफाई के लिये संसाधनों की कमी नहीं है। नगर पालिका का सालाना सफाई बजट 60 लाख रुपये है। शहर के मात्र 24 वार्डों के हिसाब से देखा जाये तो हर वार्ड में ढाई लाख रूपये सालाना बजट पालिका के द्वारा दिया जाता है।
पालिका के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि पालिका के पास कागजों पर 340 सफाई कर्मियों की लंबी चौड़ी फौज है। इनमें से कुछ चेहरों को अगर छोड़ दिया जाये तो बाकी को सड़कों पर शायद ही शहर के नागरिकों के द्वारा देखा गया हो। शहर से हर रोज 30 टन के आसपास कचरे की निकासी होती है।
जिलाधिकारी प्रवीण सिंह के द्वारा कार्यभार ग्रहण करने के बाद पालिका की मश्कें कसने का प्रयास किया गया था। एक-दो दिन तो सड़कों पर सफाई कर्मियों की बाढ़ दिखी पर उसके बाद पालिका एक बार फिर पुराने ढर्रे पर ही लौट गयी। पालिका के पास भी अपशिष्ट निष्पादन के लिये किसी तरह की ठोस कार्ययोजना नहीं है। नाले – नालियों में कचरा अटा पड़ा है पर पालिका का पूरा ध्यान खरीदी और निर्माण कार्य की ओर ही दिखता है . . .!
(क्रमशः जारी)