पर्यावरण संरक्षण मण्डल की गाईड लाईन को धता बता रहा झाबुआ संयंत्र प्रबंधन!
(अखिलेश दुबे)
सिवनी (साई)। पर्यावरण संरक्षण मण्डल के दिशा निर्देशों को सरेआम धता बताई जा रही है देश के महशूर उद्योगपति गौतथ थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड प्रबंधन के द्वारा, और प्रशासन हाथ पर हाथ रखे बैठा देख रहा है।
प्रदूषण नियंत्रण मण्डल (पीसीबी) के उच्च पदस्थ सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि पर्यावरण संरक्षण मण्डल की स्पष्ट गाईड लाईन है कि कोयले या इस तरह की किसी भी वस्तु का परिवहन अगर किया जा रहा है तो जिस वाहन में इसे ले जाया जा रहा है उस वाहन में कोयला आदि पूरी तरह से तिरपाल से ढका होना चाहिए।
सूत्रों ने बताया कि यह दिशा निर्देश इसलिए बनाए गए हैं क्योंकि कोयले के कणों के उड़ने से वे वायु मण्डल में न जाएं और पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाएं। विडम्बना ही कही जाएगी कि झाबुआ पावर लिमिटेड में जबसे कोयले की आपूर्ति की जा रही है तब से ही यहां खुले वाहनों में बिना तिरपाल के ही कोयले का परिवहन किया जा रहा है।
सूत्रों ने आगे बताया कि इस तरह के उद्योगों को दी जाने वाली संचालन की अनुमति में इस बात का उल्लेख साफ तौर से किया जाता है। इस बात का पालन सुनिश्चित करवाने की जवाबदेही प्रदूषण नियंत्रण मण्डल और संबंधित जिले के उद्योग विभाग की होती है।
सूत्रों ने यह भी कहा कि कोल आधारित बिजली संयंत्र में उत्पादन के दौरान उत्सर्जित होने वाली राख (फ्लाई एश) के उचित निस्तारण के लिए भी मानक और व्यवस्थाएं तय की गई है। इसके अनुसार या तो उद्योग का स्वयं का फ्लाई ऐश ब्रिक्स का प्लांट होना चाहिए
अथवा अगर उसके द्वारा किसी अन्य ब्रिक्स प्लांट को इस राख को दिया जा रहा है उसके साके साथ संयंत्र प्रबंधन का वैध अनुबंध भी होना चाहिए कि कितनी मात्रा में फ्लाई ऐश को दिया जाएगा। इसके अलावा संयंत्र अगर किसी सीमेंट प्लांट को फ्लाई एश प्रदाय किया जा रहा है तो उसके साथ भी संयंत्र का अनुबंध होना चाहिए।
सूत्रों ने बताया कि झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा जिले के ही अनेक सीमेंट ब्रिक्स प्लांट्स को फ्लाई एश प्रदाय किया जा रहा है। इसके लिए प्लांट्स के द्वारा उन वाहनों जिनमें कोयला आता है को ही किराए पर लेकर अपने ब्रिक्स प्लांट्स में फ्लाई एश डलवाई जा रही है।
सूत्रों ने कहा कि जिले में न तो प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के द्वारा इस ओर ध्यान दिया जा रहा है और न ही उद्योग विभाग के द्वारा इस मामले में संज्ञान लिया जा रहा है। कुल मिलाकर कथित तौर पर प्रशासनिक उदासीनता के चलते संयंत्र प्रबंधन की मौज ही नजर आ रही है।

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