(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)। पुष्य नक्षत्र, नाम तो बहुत सुना है। लोगों की देखा देखी खरीददारी भी बहुत की होगी लेकिन क्या वाकई जानते हैं कि पुष्य नक्षत्र को सबसे शुभ क्यों माना गया है?
तिष्य और अमरेज्य जैसे अन्य नामों से भी पुकारे जाने वाले इस नक्षत्र की उपस्थिति कर्क राशि के 3-20 अंश से 16-40 अंश तक है। अमरेज्य का शाब्दिक अर्थ है, देवताओं के द्वारा पूजा जाने वाला। शनि इस नक्षत्र के स्वामी ग्रहों के रूप में मान्य हैं, लेकिन गुरु के गुणों से इसका साम्य कहीं अधिक बैठता है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार विंशोत्तरी दशा में पुष्य नक्षत्र का स्वामी शनि को माना गया है, इसलिये नक्षत्र में शनि के गुण दोषों को भी देखना जरूरी माना जाता है। जिस जातक का जन्म शनियुक्त पुष्य नक्षत्र में होता है उसमें धर्म परायणता, बुद्धिमत्ता, दूरदर्शिता, विचारशीलता, संयम, मितव्ययिता, आत्म निर्भरता, गंभीरता, शांत प्रकृति, धैर्य, अंर्तमुखी प्रकृति, संपन्नता, पांडित्य, ज्ञान, सुंदरता और संतुष्टि होती है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार ऐसे जातक किसी भी कार्य को योजनाबद्ध तरीके से करना पसंद करते हैं। लेकिन कभी – कभी ये शंकालु प्रवृत्ति वाले और कुसंगति में पड़ जाने वाले भी हो सकते हैं। इनके जीवन में 35 से 40 की उम्र अत्यंत उन्नति कारक होती है। विवाह में कुछ विलंब हो सकता है और कई बार इन्हें अपने परिवार में कठिन परिस्थितियां भी देखना पड़ती हैं। अच्छे प्रबंधन के कारण व्यवसाय में इन्हें निश्चित रूप से लाभ मिलता है, पर इनके लिये किसी गंभीर रोग की आशंका से इंकार नहीं किया सकता है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस नक्षत्र में उत्पन्न स्त्रियां भी बहुत ही लजीली, शर्मीली और धीमे स्वर में वार्तालाप करने वाली होती हैं। दांपत्य जीवन में ऐसी स्त्रियों को कभी – कभी पति के संदेह का सामना करना पड़ सकता है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस श्रेणी में आने वाले जातकों को नीलम धारण करना शुभ होगा। इसके लिये शनिवार को ही नीलम खरीदें, फिर उसे पंचधातु या स्टील की अंगूठी में जड़वायें। गंगा जल से उसकी शुद्धि के पश्चात – शं शनैश्चराय नमः शनि के मंत्र का जप करके सूर्यास्त से एक से दो घण्टा पहले पहनें।