नहीं रूक रहा नरवाई जलाने का सिलसिला

 

प्रशासन की अपील होती दिख रही निष्प्रभावी!

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी (साई)। जिला प्रशासन के द्वारा बार – बार नरवाई न जलाने की अपीलें भी निष्प्रभावी ही होती दिख रही है। नरवाई जलाने के कारण पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, वहीं आग लगने के खतरे भी बने हुए हैं। दरअसल, प्रशासन के द्वारा निर्देश देने के बाद उसका पालन सुनिश्चित नहीं कराने से इस तरह के आदेश या अपीलें निष्प्रभावी ही दिख रही हैं।

ज्ञातव्य है कि प्रशासन कई बार नरवाई नहीं जलाने के निर्देश दे चुका है। इन निर्देशों का किसानों पर कोई असर नहीं हो रहा है। किसान मनमानी कर नरवाई जला रहे हैं। प्रशसन ने नरवाई जलाने वालों के खिलाफ कार्यवाही की बात तो कही गयी है लेकिन अब तक किसी पर भी कार्यवाही नहीं हो सकी है। नरवाई जलाने का सिलसिला लगातार जारी है। इससे न केवल प्रदूषण को नुकसान पहुँच रहा है बल्कि जमीन की उर्वरकता भी कम हो रही है।

गेहूँ धान आदि फसलों की कम्बाइन हार्वेस्टर की कटाई के बाद अधिकांश फसलों के अवशेष या नरवाई खेत में रह जाती है जिसे जलाया नहीं जाना चाहिये। नरवाई जलाने से खेतों में मौजूद लाभदायक मित्र कीट नष्ट हो रहे हैं। पेड़ों पर चिड़िया के अण्डे और घोंसले जलकर नष्ट हो रहे हैं। नरवाई जलाने से सख्त होती खेतों की मिट्टी से जुताई करने पर अधिक मेहनत लगती है और डीजल की लागत भी बढ़ जाती है। मिट्टी की जलधारण क्षमता भी कम हो जाती है।

कार्बन की मात्रा हो रही कम : कृषि वैज्ञानिक डॉ.एन.के. सिंह ने बताया है कि नरवाई जलाने से मिट्टी के कार्बन की मात्रा कम हो रही है। उपजाऊपन के लिये कार्बन की मात्रा का होना लाभदायक है। इसके साथ ही नरवाई के जलाने से निकलने वाले धुंआ, जले हुए अवशेष भी पर्यावरण के संतुलन को बिगाड़ रहे हैं।

नरवाई से फैल रही आग : जले हुए घास के कण हवा में उड़कर काफी दूर तक लोगों के घरों के आँगन, छतों में भी नजर आ रहे हैं। कृषि अधिकारी ने बताया कि नरवाई की आग तेज हवाओं के चलने से आग तेजी से फैलती हुई खेतों के आसपास बने घरों, मवेशियों के कोठे वहाँ रखे कृषि उपकरणों को भी अपने आगोश में ले लेती है। इससे किसानों काललाखों का नुकसान भी हो रहा है।

कृषि अधिकारी ने बताया कि नरवाई को जलाने के स्थान पर स्ट्रिपल यंत्र से भूसा बनाना चाहिये या फिर रोटावेटर आदि यंत्रों का उपयोग कर मिट्टी में मिला देना चाहिये। मिट्टी में मिलने से फसल अवशेष सड़कर कार्बनिक पदार्थ में बदल जाते हैं। इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है।

अवशेषों से बनती है खाद : खेतों में फसल कटाई के बाद बचे अवशेषों और डंठलों को एकत्रित करके जैविक खाद जैसे भू नांडेप, वर्मी कम्पोस्ट आदि बनाने में उपयोग किया जा सकता है। ये जल्द सड़कर पोषक तत्वों से भरपूर पोषक खाद बना देते हैं। खेत में कल्टीवेटर, रोटावेटर या डिस्क हैरो आदि की सहायता से फसल अवशेषों को भूमि में मिलने से आने वाली फसलों में जैवांश खाद की बचत की जा सकती है।

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