(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)। हाथों में कुश, दूर्वा और पिण्ड। जल का अर्घ्य देते लोग। मंत्रोच्चार से गुंजायमान होते बैनगंगा तट आदि के दृश्य अश्विन माह में कृष्ण पक्ष के आरंभ होते ही दिखने लगे हैं। साल भर गायब रहने वाले कौए भी अब लोगों के घरों की मुण्डेर पर कांव – कांव करते दिखने लगे हैं।
पितृ पक्ष के आरंभ होने के साथ ही पुण्य सलिला बैनगंगा के तटों और तालाबों आदि में श्राद्ध और तर्पण का दौर आरंभ हो गया है। पितृलोक से आशीष देने आये पुरखों को खुश करने के लिये उनकी तिथि के अनुसार लोग स्वादिष्ट पकवान का भोग लगा रहे हैं। पितरों को खुश करने के लिये शास्त्रों में उल्लेखित विधि के अनुसार गाय, कौआ, चीटी और मछलियों के लिये अनाज निकाला जा रहा है। पकवान बनाकर वैदिक पण्डित को दान करने के साथ ही परिजन को आमंत्रित किया जा रहा है। श्राद्ध पक्ष के दौरान एक पखवाड़े तक तर्पण किया जायेगा।
अच्छे कार्यों से प्रसन्न होते हैं पितर : ज्योतिषाचार्यों के अनुसार तर्पण और अच्छे कार्य करने से पितर प्रसन्न होते हैं। शास्त्रों के अनुसार पितृ पक्ष में 15 दिन पितर बैकुण्ठ धाम से धरती पर आते हैं। जिस घर में पितर प्रसन्न होते हैं, उसी घर में देवता भी उपासना से प्रसन्न होते हैं।
तिथि के अनुसार पितृ श्राद्ध : ज्योतिषाचार्यों के अनुसार पितरों के दिवंगत होने की तिथि के अनुसार पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म किया जाता है। पिण्ड को नर्मदा में प्रवाहित करने के बाद पितरों से सुख – शांति की प्रार्थना की जाती है।
ऐसे करें तर्पण : ज्योतिषाचार्यों के अनुसार मंत्रोच्चार के बीच संकल्पित कुशा, जौ, तिल, अक्षत, पुष्प के साथ तर्पण किया जाता है। सबसे पहले पूर्व दिशा में खड़े होकर देवी – देवता और उत्तर दिशा में ऋषियों को तर्पण करना चाहिये। इसके बाद दक्षिण दिशा में पितर और 14 यमों को तर्पण करना चाहिये।
इनका आगमन भी अजब : दशकों पहले साल भर कौओं की कांव कांव सुनायी देती थी। पर्यावरण असंतुलन, धुआंधार कटाई आदि के चलते अब साल भर कौए शहरों से गायब ही दिखते हैं। लोगों का कहना है कि पता नहीं पितृ पक्ष के आने के साथ ही कौए कहाँ से प्रकट हो जाते हैं। इस बात को लोग अजब ही मानते हैं कि साल भर गायब रहने वाले कौओं को पितरों में आबादी वाले क्षेत्र में आने के लिये कौन प्रेरित करता है!