सोशल मीडिया पर वायरल हो रहीं पुरानी पीढ़ी की बातें
(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)। आज की भाग दौड़ के बीच सोशल मीडिया पर बीसवीं सदी के अंतिम दशकों की जीवन शैली पर अगर कोई बात कह दी जाती है तो उमर दराज हो रहे लोग उसे न केवल बड़े चाव से पढ़ते हैं वरन अपने अतीत में खो भी जाते हैं।
सोशल मीडिया पर इसी तरह की पुरानी बातें साझा हो रही हैं जो जमकर वायरल भी हो रही हैं। लोग इस तरह के संदेशों को पढ़कर अपने परिचितों के साथ इन्हें साझा भी कर रहे हैं। कुछ दिन पहले किराये की साईकिल के बारे में सोशल मीडिया पर बातें साझा हुई थीं अब पाठकों के लिये प्रस्तुत है इसकी अगली कड़ी :
उमर दराज हो चुकी वो आखिरी पीढ़ी हैं, जिन्होंने कई कई बार मिट्टी के घरों में बैठ कर परियों और राजाओं की कहानियां सुनीं, जमीन पर बैठ कर खाना खाया है, प्लेट में चाय पी है।
उमर दराज हो चुकी वो आखिरी पीढ़ी है, जिन्होंने बचपन में मोहल्लों के मैदानों में अपने दोस्तों के साथ परंपरागत खेल, गिल्ली डण्डा, छुपा छिप्पी, खो-खो, खिप्पड़, कबड्डी, कंचे जैसे खेल, खेले हैं।
उमर दराज हो चुकी वो आखिरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने कम या बल्ब की पीली रोशनी में होम वर्क किया है और नॉवेल पढ़े हैं।
उमर दराज हो चुकी वही पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने अपनों के लिये अपने जज़बात, खतों के जरिये न केवल आदन – प्रदान किये हैं, वरन डाकिये के आने के समय का ब्रेसब्री से इंतजार भी वे करते थे।
उमर दराज हो चुके वो आखिरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने कूलर, एसी या हीटर के बिना ही बचपन गुज़ारा है। उस जमाने में स्वेटर नहीं होने पर दो शर्ट पहनकर सर्दी के दिनों में भी गर्मी का अहसास किया है।
उमर दराज हो चुके पीढ़ी के वो आखिरी लोग हैं, जो अक्सर अपने छोटे बालों में, सरसों का ज्यादा तेल लगा कर, स्कूल और शादियों में जाया करते थे। जिनकी माताएं अपने कलेजे के टुकड़े को चमेली का तेल लगाकर राजकुमार बनाते हुए काला टीका जरूर लगाया करतीं थीं।
उमर दराज हो चुके वो आखिरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने स्याही वाली दवात या पेन से कॉपी, किताबें, कपडे और हाथ काले, नीले किये है। उस दौर में डॉट पेन का उपयोग पूरी तरह वर्जित ही था।
उमर दराज हो चुकी पीढ़ी वह आखिरी पीढ़ी ही होगी जिसने शिक्षक – शिक्षिकाओं से जमकर मार खायी है, मुर्गा बने हैं, घुटने पर खड़े हुए हैं। इसके बाद भी घर में शिकायत करने से इसलिये डरते थे, क्योंकि अगले दिन माता या पिता के द्वारा शिक्षक से बात कर स्कूल में ही सबके सामने धुनाई कर दी जाती थी।
उमर दराज हो चुकी पीढ़ी के वे लोग हैं जो मोहल्ले के बुज़ुर्गों को दूर से देख कर, नुक्कड़ से भाग कर, घर आ जाया करते थे।
उमर दराज हो चुकी पीढ़ी के वो आखिरी लोग हैं, जिन्होंने अपने स्कूल के सफ़ेद केनवास शूज़ पर, खड़िया का पेस्ट लगाकर चमकाया है।
उमर दराज हो चुकी पीढ़ी के वो आखिरी लोग हैं, जिन्होंने गोदरेज सोप की गोल डिबिया से साबुन लगाकर शेव बनायी है। जिन्होंने गुड़ की चाय पी है। काफी समय तक सुबह काला या लाल दंत मंजन या सफेद टूथ पाउडर इस्तेमाल किया है। जो सक्षम नहीं थे वे कोयला पीसकर ही दांत माँज लिया करते थे।
उमर दराज हो चुकी पीढ़ी निश्चित ही वो आखिर लोगों की हैं, जिन्होंने चाँदनी रातों में, रेडियो पर बीबीसी की ख़बरें, विविध भारती, ऑल इंडिया रेडियो, फौजी भाईयों की पसंद, एस कुमार्स का फिल्मी मुकदमा और बिनाका गीतमाला जैसे प्रोग्राम सुने हैं।
उमर दराज हो चुकी पीढ़ी में वो आखिर लोग हैं, जब सब शाम होते ही छत पर पानी का छिड़काव किया करते थे। उसके बाद सफ़ेद चादरें बिछा कर सोते थे। एक स्टैण्ड वाला पंखा सब को हवा के लिये हुआ करता था। सुबह सूरज निकलने के बाद भी ढीठ बने सोते रहते थे। वो सब दौर बीत गया। चादरें अब नहीं बिछा करतीं। डब्बों जैसे कमरों में कूलर, एसी के सामने रात होती है, दिन गुज़रते हैं।
उमर दराज हो चुकी वो आखिरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने वो खूबसूरत रिश्ते और उनकी मिठास बांटने वाले लोग देखे हैं, जो लगातार कम होते चले गये। अब तो लोग जितना पढ़ – लिख रहे हैं, उतना ही खुदगर्ज़ी, बेमुरव्वती, अनिश्चितता, अकेलेपन व निराशा में खोते जा रहे हैं।
उमर दराज हो चुकी पीढ़ी वह खुशनसीब पीढ़ी है जिसने रिश्तों की मिठास महसूस की है। यही पीढ़ी है जिसने पहले अपने माता – पिता की बातें मानी और अब अपने बच्चों की बातें मान रहे हैं।