(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)। पूर्णिमा तिथि, ब्रह्ममुहूर्त से प्रारंभ हो जायेगी, जो शनिवार 18 मई की रात को सवा दो बजे तक रहेगी। विशाखा नक्षत्र पूरे दिन रहेगा। इसके साथ ही शुभ योग भी रहेगा। इस बार एक ही दिन स्नान दान एवं व्रत पूर्णिमा एक ही तिथि में रहेंगी, जो जातकों लिये सबसे शुभ व कल्याणकारी होंगी।
बताया गया है कि ये योग कई दशकों बाद बना है। इस दिन किया गया दान पुण्य दरिद्रता दूर करने वाला होगा। बुध पूर्णिमा के नाम से भी वैशाख पूर्णिमा को जाना जाता है। वैशाख स्नान व्रत का समापन भी इस दिन किया जायेगा। सनातन धर्म में चार पूर्णिमा का विशेष महत्व माना गया है। इनमें कार्तिक पूर्णिमा, माघ पूर्णिमा, वैसाख पूर्णिमा और शरद पूर्णिमा शामिल हैं। ये पूर्णिमा पूर्णा तिथि मानी जाती हैं जो हर कार्य को पूर्ण करने वाली होती हैं।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार सामान्य पूर्णिमा की अपेक्षा वैशाख माह की पूर्णिमा को बहुत अधिक पुण्यदायी माना गया है। इस दौरान किये गये पुण्य और दान से पापों का नाश होता है। इसके अलावा प्रभु भक्ति का फल भी मिलता है। वैशाख पूर्णिमा पर व्रत और पुण्य कर्म करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। इस पूर्णिमा व्रत की पूजा विधि अन्य पूर्णिमा व्रत के सामान ही है लेकिन इस दिन किये जाने वाले कुछ धार्मिक कर्मकाण्ड आपको जीवन में सफल बना सकते हैं।
पूर्णिमा पर करें ये काम : वैसाख पूर्णिमा के दिन प्रात काल सूर्याेदय से पूर्व किसी पवित्र नदी, जलाशय, कुंआ या बावड़ी में स्नान करना चाहिये। स्नान के बाद सूर्य मंत्र का उच्चारण करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिये। स्नान के पश्चात व्रत का संकल्प लेकर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिये।
इस दिन धर्मराज के निमित्त जल से भरा कलश और पकवान देने से गोदान के समान फल मिलता है। 05 या 07 जरुरतमंद व्यक्तियों और ब्राह्मणों को शक्कर के साथ तिल देने से पापों का क्षय होता है। इस दिन तिल के तेल के दीपक जलायें और तिलों का तर्पण विशेष रूप से करें। इस दिन व्रत के दौरान एक समय भोजन करें।
वैशाख पूर्णिमा का महत्व : वैशाख पूर्णिमा पर धर्मराज के पूजन का विधान माना गया है। इस पूर्णिमा व्रत के प्रभाव से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के बचपन के साथी सुदामा जब द्वारका उनके पास मिलने पहुँचे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें सत्य विनायक पूर्णिमा व्रत का विधान बताया। इसी व्रत के प्रभाव से सुदामा की सारी दरिद्रता दूर हुई।

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