गया में ही क्यों किया जाता है पिण्डदान व तर्पण

 

 

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी (साई)। सनातन धर्म में नदियों, तालाबों का बहुत ही महत्व है। हर धार्मिक कार्य में इनकी उपयोगिता बतायी गयी है। रविवार 15 सितंबर से पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष आरंभ हो रहे हैं। इस दिन लोग अपने पितरों को घर बुलाने के लिये नदियों के किनारे जायेंगे।

नदियों के किनारे पिण्डदान और तर्पण करने की परंपरा सनातन काल से ही चली आ रही है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पवित्र नदियों के किनारे तर्पण या पिण्डदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

गया जी का महत्व : ज्योतिषाचार्यों के अनुसार वैसे तो नर्मदा समेत सभी नदियों में इस क्रिया को किया जा सकता है, लेकिन सबसे अधिक पुण्य या मान्यता गया जी घाट की है। कहा जाता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने पिता दशरथ की आत्म शांति के लिये यहाँ पिण्डदान किया था तभी से यह मान्यता चली आ रही है। गरुड़ पुराण में वर्णित है कि पिण्डदान करने गया जाने के लिये जो लोग घर से निकलते हैं उनके एक-एक कदम पितरों को स्वर्ग के द्वार जाने वाली सीढ़ी बन जाते हैं।

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार विष्णु पुराण के अनुसार गया में पिण्डदान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है। यहाँ पिण्डदान करने से पूर्वज स्वर्ग चले जाते हैं। स्वयं विष्णु यहाँ पितृ देवता के रूप में मौजूद हैं, इसलिये इसे पितृ तीर्थ भी कहा जाता है। फल्गु नदी के तट पर पिण्डदान किये बिना पिण्डदान हो ही नहीं सकता।

गया में पिण्डदान की कथा : पुराणों के अनुसार भस्मासुर के वंश में गयासुर नामक राक्षस ने कठिन तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न किया। उसने यह वर माँगा कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाये। उसके दर्शन से सभी पाप मुक्त हो जायें। ब्रह्माजी से वर प्राप्त होने के बाद लोग पाप करने के बाद भी गयासुर के दर्शन करके स्वर्ग पहुँच जाते थे, जिससे स्वर्ग पहुँचने वालों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी।

इस समस्या से बचने के लिये देवताओं ने यज्ञ के लिये पवित्र स्थल की माँग गयासुर से की। गयासुर ने अपना शरीर देवताओं को यज्ञ के लिये दे दिया। जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पाँच कोस तक फैल गया। इससे प्रसन्न देवताओं ने गयासुर को वरदान दिया कि इस स्थान पर जो भी तर्पण करने पहुँचेगा उसे मुक्ति मिलेगी।

कहाँ है गयाजी : बिहार की राजधानी पटना से लगभग 104 किलोमीटर की दूरी पर बसा है गया जिला। धार्मिक दृष्टि से गया न सिर्फ हिन्दूओं के लिये बल्कि बौद्ध धर्म मानने वालों के लिये भी आदरणीय है। बौद्ध धर्म के अनुयायी इसे महात्मा बुद्ध का ज्ञान क्षेत्र मानते हैं जबकि हिन्दू गया को मुक्तिक्षेत्र और मोक्ष प्राप्ति का स्थान मानते हैं। इसलिये हर दिन देश के अलग – अलग भागों से नहीं बल्कि विदेशों में भी बसने वाले हिन्दू आकर गया में आकर अपने परिवार के मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति और मोक्ष की कामना से श्राद्ध, तर्पण और पिण्डदान करते दिख जाते हैं। गया को मोक्ष स्थली का दर्ज़ा एक राक्षस गयासुर के कारण मिला है।

वैदिक परंपरा और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार पितरों के लिये श्रद्धा से श्राद्ध करना एक महान और उत्कृष्ट कार्य है। मान्यता के मुताबिक पुत्र का पुत्रत्व तभी सार्थक माना जाता है जब वह अपने जीवन काल में जीवित माता – पिता की सेवा करे और उनके मरणोपरांत उनकी मृत्यु तिथि (बरसी) तथा महालय (पितृपक्ष) में उसका विधिवत श्राद्ध करे।

अश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से आश्विन महीने की अमावस्या तक को पितृपक्ष या महालया पक्ष कहा गया है। मान्यता के अनुसार पिण्डदान मोक्ष प्राप्ति का एक सहज और सरल मार्ग है।

महाभारत में लिखा है कि फल्गु तीर्थ में स्नान करके जो मनुष्य श्राद्धपक्ष में भगवान गदाधर (भगवान विष्णु) के दर्शन करता है, वह पितरों के ऋण से विमुक्त हो जाता है। कहा गया है कि फल्गु श्राद्ध में पिण्डदान, तर्पण और ब्राह्मण भोजन – ये तीन मुख्य कार्य होते हैं। पितृपक्ष में कर्मकाण्ड का विधि व विधान अलग – अलग है। श्रद्धालु एक दिन, तीन दिन, सात दिन, पंद्रह दिन और 17 दिन का कर्मकाण्ड करते हैं।

विदेशों से आते हैं पिण्डदान करने : पितरों के तर्पण के लिये विश्व में मात्र गया जी का नाम ही पुराणों में आता है। इससे यहाँ प्रतिवर्ष लाखों लोग पिण्डदान करने पहुँचते हैं। देश के अलावा विदेशों से भी लोग यहाँ पिण्डदान के लिये पहुँचते हैं।

यहाँ करते हैं पिण्डदान : वैसे पिण्डदान के लिये गयाजी का महत्व सबसे ज्यादा है। इसके अलावा देश में अन्य स्थान भी हैं जहाँ पिण्डदान किया जा सकता है।

उल्लेखनीय है कि देश में श्राद्ध के लिये हरिद्वार, गंगासागर, जगन्नाथपुरी, कुरुक्षेत्र, चित्रकूट, पुष्कर, बद्रीनाथ सहित 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है। शास्त्रों में पिण्डदान के लिये इनमें तीन स्थानों को सबसे विशेष माना गया है। इनमें बद्रीनाथ भी है। बद्रीनाथ के पास ब्रह्मकपाल सिद्ध क्षेत्र में पितृदोष मुक्ति के लिये तर्पण का विधान है।

हरिद्वार में नारायणी शिला के पास लोग पूर्वजों का पिण्डदान करते हैं। बिहार की राजधानी पटना से 100 किलोमीटर दूर गया में साल में एक बार 17 दिन के लिये मेला लगता है, पितृ-पक्ष मेला। कहा जाता है पितृ पक्ष में फल्गु नदी के तट पर विष्णुपद मंदिर के समीप और अक्षयवट के पास पिण्डदान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है। गरुड़ पुराण में कहा गया है कि गया जाने के लिये घर से निकलने पर चलने वाले एक-एक कदम पितरों के स्वर्गारोहण के लिये एक-एक सीढ़ी बनाते हैं।

ऐसे तो देश के हरिद्वार, गंगासागर, कुरुक्षेत्र, चित्रकूट, पुष्कर सहित कई स्थानों में भगवान पितरों को श्रद्धापूर्वक किये गये श्राद्ध से मोक्ष प्रदान कर देते हैं, लेकिन गया में किये गये श्राद्ध की महिमा का गुणगान तो भगवान राम ने भी किया है। कहा जाता है कि भगवान राम और सीताजी ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिये गया में ही पिण्डदान किया था।

बद्रीनाथ : बद्रीनाथ जहाँ ब्रह्मकपाल सिद्ध क्षेत्र में पितृदोष मुक्ति के लिये तर्पण का विधान है।

हरिद्वार : यहाँ नारायणी शिला के पास लोग पूर्वजों का पिण्डदान करते हैं।

गयाजी : यहाँ साल में एक बार 16 दिन के लिये पितृ पक्ष मेला लगता है। कहा जाता है पितृ पक्ष में फल्गु नदी के तट पर विष्णुपद मंदिर के लगभग और अक्षयवट के पास पिण्डदान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है।