चिंताजनक है भीमगढ़ बाँध का गिरता जलस्तर

 

 

अभी समय है हटवायी जाये तलहटी की सिल्ट, बढ़ेगा भराव क्षेत्र!

(फैयाज खान)

छपारा (साई)। संजय सरोवर परियोजना के अंग एवं एशिया के सबसे बड़े मिट्टी के बाँध का गौरव पाने वाले भीमगढ़ बाँध में जल स्तर तेजी से घट रहा है। इस बाँध की जल भराव क्षमता 519.38 मीटर है। तेजी से गिरते जल स्तर के कारण भविष्य में जल संकट गहराने की संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं।

मिट्टी के इस बाँध के निर्माण के बाद, इलाके में सिंचाई के रकबे का जहाँ काफी विस्तार हुआ है और कृषि के व्यवसाय को नया आयाम मिला है वहीं क्षेत्र वासियों की प्यास भी इसी बाँध के पानी से बुझती है। बाँध का पानी सिवनी जिला के साथ ही बालाघाट जिला तक जाता है।

एशिया के पहले मिट्टी के सबसे बड़े बाँध का दर्जा प्राप्त भीमगढ़ बाँध में तेजी से जल स्तर में गिरावट आती जा रही है। यदि यही हाल रहा तो जल्द ही शहर में जल संकट गहरा सकता है। सिंचाई विभाग के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि वर्तमान में भीमगढ़ डेम के पानी में कमी आयी है। इसका कारण यह है कि सालों से इसकी तलहटी से गाद नहीं निकाले जाने के कारण बाँध की निचली सतह उथली होती जा रही है।

जिले की शान भीमगढ़ बाँध में लगातार कम हो रहे जल स्तर ने जिम्मेदारों के होश उड़ा दिये हैं। इस बार मार्च माह से ही गर्मी ने अपने तेवर दिखाना आरंभ कर दिया था। तापमान में लगातार वृद्धि के चलते बाँध का जल स्तर तेजी से घट रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि भीमगढ़ बाँध का जबसे निर्माण हुआ है तब से इतना कम पानी कभी नहीं देखा गया।

क्षेत्रीय लोगों ने बताया कि बाँध के जल स्तर में काफी गिरावट आयी है। बाँध का अधिकतम स्तर 519.38 मीटर माना जाता है। 517 मीटर के बाद बाँध के गेट खोल दिये जाते हैं। इस निशान के बाद बाँध के गेट खोलने की नौबत आ जाती है। इस हिसाब से देखा जाये तो बाँध के स्तर में लगभग 13 मीटर गिरावट आयी है।

मूलतः कृषि कार्य के लिये जल उपलब्ध कराये जाने के लिये निर्मित इस बाँध से सिवनी शहर में पीने की पानी की सप्लाई की जाती है। हाल के दिनों में अन्य क्षेत्रों में भीमगढ़ बाँध का पानी दिये जाने की माँग तेजी से उठी है। इसके अलावा भीमगढ़ बाँध में सूआखेड़ा से सिवनी तक मार्ग में पड़ने वाले अनेक ग्रामों में भी इसी फीडर पाईप लाईन से पानी की सप्लाई भी की जाती है।

जिले की जीवन रेखा कहलाने वाली बैनगंगा नदी जिस पर यह बाँध बनाया गया है, उसे संवारने की माँग कई बार और कई स्तरों पर उठती रही है लेकिन अब तक इस दिशा में ठोस सकारात्मक प्रयासों का अभाव ही रहा है। इसी का नतीजा यह है कि मॉनसून के खत्म होते – होते यह नदी सूख जाती है। लखनवाड़ा और बैनगंगा के उद्गम स्थल मुण्डारा में नदी के तट, मकर संक्रांति के पहले ही सूख जाते हैं।

हालांकि इस बार पेंच परियोजना के अंतर्गत जिले में बिछायी गयी नहरों में पानी छोड़े जाने के कारण बैनगंगा नदी और आसपास के क्षेत्रों का जल स्तर बढ़ा था। मकर संक्रांति के कई दिनों बाद तक बैनगंगा नदी में पानी भरा था। वहीं इससे पहले मकर संक्रांति में भक्तों के स्नान के लिये स्थानीय बोरों से पानी लाकर छोड़ा जाता रहा है।

क्षेत्रवासियों का कहना है कि गर्मियों के मौसम में जब नदी अधिकतर स्थानों पर सूख चुकी है, उसके तल में जमा सिल्ट को साफ किया जा सकता है। इसके अलावा नदी के किनारों पर पौधारोपण जैसी दीर्घकालिक परियोजना आरंभ किये जाने की आवश्यकता भी महसूस की जा रही है।

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