जापान में अप्रैल में स्थानीय चुनावों की एकीकृत शृंखला चलेगी। राजनीति में लिंगानुपात सुधारने के लिए पिछले वर्ष कानून बनाया गया था, उसके बाद पहली बार ये चुनाव हो रहे हैं। हालांकि यह कानून बाध्यकारी नहीं है, राजनीतिक पार्टियों से कहा गया है कि वे राष्ट्रीय व स्थानीय चुनाव में महिला व पुरुष प्रत्याशियों की संख्या को, जहां तक संभव हो, बराबरी पर रखें।
यह कानून इसलिए बनाना पड़ा, क्योंकि सदनों में महिलाओं की भागीदारी औसतन 10 प्रतिशत ही रही है, इस मामले में हम दूसरे देशों से पीछे हैं। वर्ष 2018 में हुए एक सर्वे के अनुसार, दुनिया में महिलाओं की संसदीय भागीदारी के मामले में 193 देशों में जापान 165वें स्थान पर है। दुनिया के निचले व ऊपरी सदनों में औसतन 24.3 प्रतिशत सीटों पर महिलाएं हैं। शहरी निकायों के लिए भी चुनाव होने जा रहे हैं, पर जापान के मुख्य सदन की तरह ही इन निकायों में भी महिलाओं की भागीदारी ठीक नहीं है।
केवल टोक्यो मेट्रोपॉलिटन एसेंबली की स्थिति 28 प्रतिशत महिला भागीदारी के साथ सबसे बेहतर है। 28 निकायों में तो महिलाओं की भागीदारी 10 प्रतिशत से भी कम है। तारुमिजु और कागोशिमा जैसे निकाय भी हैं, जिनके सदन में आज तक कोई महिला नहीं पहुंची। दुनिया में 130 से ज्यादा देशों ने महिला भागीदारी बढ़ाने के लिए कोटा व्यवस्था कर रखी है। ऐसी कोई व्यवस्था अगर सही तरीके से लागू हो, तो संसदीय प्रतिनिधित्व में लैंगिक समानता का मार्ग प्रशस्त होगा।
कैबिनेट ऑफिस ने स्थानीय सदनों की महिलाओं के बीच एक सर्वे किया था, जिसमें पूछा गया था कि सदनों में महिलाओं की भागीदारी क्यों नहीं बढ़ रही है? 60 प्रतिशत महिला प्रतिनिधियों का जवाब था- यह सोच गहरे तक है कि राजनीति पुरुषों के लिए है। दूसरे कारणों में प्रतिनिधि जीवन व पारिवारिक जीवन को साथ-साथ संभालने की मुश्किल भी शामिल था। आगामी चुनावों में यह पता चल जाएगा कि जापान के मुख्य सदन में कानून पारित करने वाली पार्टियों ने लैंगिक अंतर को कितनी गंभीरता से लिया है। (द जापान टाइम्स से साभार)
(साई फीचर्स)
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