न इन्हें रोहित-विराट के प्रदर्शन से मतलब, और न ही निर्मला के बजट से

 

 

(विवेक शुक्लां)

संतोष कुमार सुबह छह बजे से कुछ मिनट पहले एम्स पहुंच चुका है। उसकी ड्यूटी दिन में 2 बजे तक पार्किंग में रहने वाली है। 8 घंटे की ड्यूटी में उसे सैकड़ों कारों और दूसरे वाहनों को सही दिशा में भेजना है। उसे रोगियों को संबंधित वार्डों में तो भेजना ही है, साथ ही साथ वहां आने वालों को बीच-बीच में सही रास्ता भी बताना है। 8 बजे के बाद सूरज देवता ने आग उगलना चालू कर दिया है। उसकी पेशानी से पसीना आ रहा है। कभी अपने हाथ से या रूमाल से पसीना पोंछते हुए वह वाहनों की सूनामी से लड़ रहा है। उसके साथ वहां पर करीब एक दर्जन और भी प्राइवेट कंपनियों के सिक्योरिटी गॉर्ड खड़े हैं। इन्हें पल भर की भी राहत नहीं है। दो मिनट बैठकर सुस्ता लेने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।

लेकिन इनके चेहरों के भाव देखिए। गुस्सा या खीझ का कोई भाव वहां कहीं नहीं है। संतोष झारखंड के चतरा जिले का रहने वाला है। एम्स के पास यूसुफ सराय में एक कमरा किराए पर लिया हुआ है। हर महीने का भाड़ा है साढ़े चार हजार रुपये। कमरे में तीन लोग रहते हैं और किराया मिलकर भरते हैं। संतोष की एम्स की ड्यूटी दिन में 2 बजे समाप्त होने वाली है। लेकिन संतोष अभी घर नहीं जाएगा। क्यों? क्योंकि अभी उसकी एक और ड्यूटी बची हुई है। दो बजे के बाद वह फौरन सड़क के उस पार सफदरजंग अस्पताल में चला जाएगा। वह संतोष का दूसरा दफ्तर है। दो बजे से 11 बजे तक उसे अपने नए दफ्तर के बर्न वार्ड में ड्यूटी देनी है। वहां पर भी उसका साबका मरीजों और उनके साथ आने वालों के साथ पड़ना है। संतोष ने दिन का खाना कब खाया? अपनी टोपी को उतारकर बालों पर हाथ फेरते हुए वह कहता है, थोड़ा बहुत एडजेस्ट हो जाता है। पांच-दस मिनट का वक्त मिल जाता है भोजन करने के लिए।

25 साल का संतोष पिछले चार साल से रोज 16 घंटे नौकरी कर रहा है। दोनों जगहों से उसे कुल जमा 32 हजार रुपये तो मिल जाते हैं, लेकिन छुट्टी कोई भी नहीं मिलती। संतोष जैसे प्राइवेट कंपनियों के सुरक्षाकर्मी दिल्ली-एनसीआर में सैकड़ों हैं। इनमें अधिकतर बिहार और झारखंड से हैं और ये हर रोज दो जगहों पर काम करते हैं। आईसीसी विश्व कप में विराट कोहली या रोहित शर्मा के उम्दा प्रदर्शन पर विस्तार से बात करने का वक्त इनके पास नहीं है। निर्मला सीतारमण के बजट प्रस्तावों में क्या खास है, इस चर्चा में इन्हें रत्तीभर भी दिलचस्पी नहीं है। दूसरी ड्यूटी के बाद घर जाकर भी एक ड्यूटी करनी है। यह ड्यूटी खाना पकाने की है, लेकिन हफ्ते में यह दो दिन ही आती है। बाकी दिन यह जिम्मेदारी दूसरे साथी उठाते हैं।

(साई फीचर्स)