चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात!

 

 

(शरद खरे)

आगे आगे पाठ, पीछे सपाट की तर्ज पर जिलों में इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी कि मौसमी बीमारियों की तरह कमोबेश हर माह जिला प्रशासन के द्वारा निर्देश जारी कर औपचारिकताएं पूरी कर ली जाती हैं, पर उन निदेर्शों पर अमल हुआ अथवा नहीं इस बारे में सुध लेने की फुरसत किसी को नहीं होती है।

राज्य शिक्षा केंद्र के द्वारा चार पांच सालों से लगातार ही इस आशय के आदेश जारी किये जा रहे हैं कि शालाओं के पाठ्यक्रमों की किताबें, गणवेश आदि की कम से कम आठ दुकानें उस स्थान पर होना चाहिये जिस शहर में ये शाला संचालित हैं। इसके लिये अनुविभागीय अधिकारी राजस्व की अध्यक्षता में कमेटी भी बनी है पर अब तक जिले में इसकी जांच नहीं की गयी है।

हाल ही में परिवहन विभाग के द्वारा शालेय परिवहन में लगे वाहनों सहित अन्य यात्री वाहनों की चेकिंग की जा रही थी। कुछ दिन के बाद यह अभियान ठण्डे बस्ते के हवाले कर दिया जायेगा। इसके पूर्व तत्कालीन जिला कलेक्टर भरत यादव के द्वारा दिये गये कड़े निर्देश के उपरांत एक दो दिन ही अभियान चला फिर बंद कर दिया गया।

शालेय परिवहन में लगे ऑटो, छोटा हाथी, यात्री बस आदि में बच्चों को ठूंस ठूंस कर भरा जाता है। यात्री वाहनों में प्राथमिकोपचार के लिये फर्स्ट एड बॉक्स भी नहीं होता है। समय समय पर परिवहन विभाग द्वारा इसकी जांच की जाना चाहिये किन्तु परिवहन विभाग अपनी जवाबदेहियों से सदा ही मुँह मोड़ता आया है।

सिवनी में एक बात और उभरकर सामने आ रही है। वह यह है कि सिवनी से होकर गुजरने वाले माल वाहक वाहनों में परिचालक और हेल्पर रखने का चलन समाप्त हो गया है। एक अकेला चालक ही हजारों किलो मीटर की यात्रा कर लेता है। पिछले कुछ साल पहले दिसंबर माह में सिवनी जिले में प्रोपेलीन गैस का परिवहन करने वाले दो टैंकर पलट गये थे। इन वाहनों में भी अकेला चालक ही था।

इसके अलावा जिन माल वाहक वाहनों के साथ लूट की घटनाएं घट रही हैं उन वाहनों में भी चालक अकेला ही पाया जाता है। यह होने के बाद भी न तो पुलिस ही संज्ञान लेती है और न ही परिवहन विभाग। दरअसल, वाहन मालिक अपने मुनाफे के लिये चालक के भरोसे ही वाहन को भेज दिया करते हैं।

कुछ दिन पहले आरंभ हुई मुहिम दो चार दिन बाद शांत भी दिख रही है। यक्ष प्रश्न यही खड़ा है कि आखिर किस बात का वेतन परिवहन विभाग के अधिकारी कर्मचारियों को मिल रहा है? क्या उन्हें कहीं जाकर छात्रों को पढ़ाना है? या मरीजों का इलाज करना है? उनके जिम्मे तो बस यही काम है कि परिवहन व्यवस्था सही तरीके से संचालित हो तथा वाहन के चालक एवं मालिकों के द्वारा परिवहन नियमों का पालन पूरी ईमानदारी के साथ किया जाये। संवेदनशील जिला कलेक्टर प्रवीण सिंह से जनापेक्षा है कि वे जनता से सीधे जुड़े इस संवेदनशील मामले में पहल अवश्य करें।