ट्रायल जज को लेकर शीर्ष अदालत की अहम टिप्पणी

(ब्यूरो कार्यालय)

नई दिल्ली (साई)। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ट्रायल के दौरान जज को मूक दर्शक नहीं रहना चाहिए, बल्कि उन्हें समय-समय पर महत्वपूर्ण सवाल जरूर करना चाहिए। हत्या के मामले में आरोपी की सजा खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उक्त व्यवस्था दी है।

सुप्रीम कोर्ट ने हत्या मामले में आरोपी को बरी करते हुए कहा कि मामले में लास्ट सीन एविडेंस और परिस्थितिजन्य साक्ष्य की कड़ी नहीं जुड़ रही है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब मामले में ट्रायल चल रहा हो तो ट्रायल जज की ड्यूटी है कि वह सच्चाई को सामने लाने के लिए महत्वपूर्ण सवाल पूछे। ट्रायल जज को मूक दर्शक बनकर नहीं रहना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा-165 में जज को यह अधिकार है कि वह ट्रायल के दौरान सवाल करे। ट्रायल जज को सुनवाई के दौरान तमाम अधिकार दिए गए हैं, वह सवाल पूछ सकते हैं। किसी गवाह से किसी भी समय सवाल कर सकते हैं। बल्कि वास्तविकता यह है कि ट्रायल कोर्ट की ड्यूटी है कि वह सवाल करें। ट्रायल का मकसद ही यही है कि सच्चाई सामने आए।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने यह भी कहा कि ट्रायल कोर्ट को ट्रायल में शामिल होना चाहिए और वह ऐक्टिव तरीके से ऐक्ट करें और महत्वपूर्ण सवाल जो हो सकते हैं, वह पूछें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौजूदा केस में अभियोजन पक्ष केस को बिना संदेह साबित करने में विफल रहा है। दरअसल, परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित केस में साक्ष्यों की कड़ी और लास्ट सीन एविडेंस (मृतक के साथ आखिरी बार किसे और किसने देखा) अहम है।

कोर्ट ने कहा कि लास्ट सीन एविडेंस और मौत के समय में काफी अंतर है। जो भी साक्ष्य हैं, वह सजा के लिए काफी नहीं हैं। यह मामला हरियाणा में किडनैपिंग और मर्डर का है। ट्रायल कोर्ट ने 31 मई 2017 को आरोपी दिनेश कुमार को हत्या मामले में उम्रकैद की सजा दी थी, पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट ने उम्रकैद की सजा बरकरार रखी है। आरोपी ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और सुप्रीम कोर्ट ने उम्रकैद की सजा खारिज कर दी और कहा कि आरोपी को रिलीज किया जाए।