सरेआम होने वालीं आपत्तिजनक गतिविधियां प्रशासन के संज्ञान में स्वतः होना चाहिये!

 

मुझे शिकायत उन सभी से है जिनके द्वारा खुले में ही दिन दहाड़े भरी गर्मी में भी मदिरा पान आरंभ कर दिया जाता है। इसके चलते छोटे-छोटे बच्चों के साथ ही साथ महिलाओं में भी उस क्षेत्र से गुजरते समय दहशत कायम हो जाती है।

सिवनी में पिछले लगभग दो सालों में खुलेआम शराब पीने का तो जैसे चलन बन गया है। पिछले एक साल में इस तरह की गतिविधियों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। मदिरा प्रेमियों को खुले में मदिरा का सेवन करते हुए देखकर ऐसा लगता है कि अब पुलिस का खौफ भी इन लोगों के मन में नहीं रह गया है। आबकारी विभाग का तो कहीं अता-पता ही नहीं है।

लोगों की समझ में यह नहीं आ रहा है कि आखिर खुलेआम मदिरापान करने जैसी गतिविधियों पर कौन सा विभाग लगाम लगायेगा। इसके पहले चार पहिया वाहन के शीशे चढ़ाकर उसके अंदर लोग मदिरा का सेवन किया करते थे। यह बात आम लोगों को पता थी लेकिन आश्चर्य जनक रूप से शायद पुलिस इस बात को नहीं भांप सकी और आबकारी विभाग को तो एक लंबे समय से मैदान में लोगों के द्वारा कभी देखा ही नहीं गया है।

चार पहिया वाहन में जब लोगों को लगा कि कोई दिक्कत नहीं है तो उन्होंने अब खुलेआम शराब पीना आरंभ कर दिया है। कई मर्तबा ऐसे शराबियों के समीप से पुलिस कर्मियों को भी गुजरते हुए देखा जा सकता है और यह भी देखा जा सकता है कि उन पुलिस कर्मियों के द्वारा भी कोई कार्यवाही करने का प्रयास तक नहीं किया जाता है ताकि ऐसे लोगों में कानून का खौफ कायम रह सके।

पुलिस और आबकारी जैसे विभागों को शायद इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि जहाँ-जहाँ भी खुलेआम शराबखोरी हो रही होती है वहाँ से महिलाओं और बच्चों को निकलने में डर लगता है अथवा नहीं। ऐसे विभागों को शायद नहीं मालूम कि ऐसे बेखौफ दबंग शराबियों के रास्ते से सिर्फ महिला और बच्चे ही नहीं बल्कि कई सभ्य पुरूष भी गुजरने से बचना चाहते हैं।

सवाल यह उठता है कि जब सिवनी में अहाते बंद कर दिये गये हैं तब उसके बाद भी क्या यह आवश्यकता रह जाती है कि संबंधित विभागों के द्वारा यह देखा जाये कि कहीं कोई सरेआम मदिरापान तो नहीं कर रहा है अथवा इसके लिये भी किसी को शिकायत करना होगी? क्या यह चलन में ही आ गया है कि ऐसी आपत्ति जनक गतिविधियों को भी प्रशासन की जानकारी में लाया जाये जो प्रशासन के संज्ञान में स्वतः ही होना चाहिये? या फिर यह समझा जाये कि किन्हीं विशेष व्यक्तियों को फायदा पहुँचाने की गरज से प्रशासन ने धृतराष्ट्र बनने का ही फैसला कर लिया है।

इरफान खान