(विवेक सक्सेना)
पिछले कुछ दशको से संभवतः यह पहला ऐसा आम चुनाव है जिसमें मैं किसी भी तौर पर लिप्त नहीं हूं। न तो अच्छी रिपोर्टिंग कर रहा हूं और न ही उसे लेकर किसी तरह का कोई अनुमान लगा रहा हूं। सच कहूं तो पिछले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के नतीजे के बाद मैंने अपना राजनीतिक आकलन करना बंद ही कर दिया। क्योंकि मुझे लगा कि मैं लोगों की सोच का आकलन करने व उनकी दुखती हुई नब्ज पर हाथ रखने में नाकामयाब रहा हूं।
नोटबंदी के बाद हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजो को लेकर मेरा अनुमान था कि जिन लोगों ने अपने पैसे बैंको से निकलवाने की एवज में पुलिस व दूसरे लोगों से मार खाई या जिनके परिचित दवा के अभाव में मर गए क्योंकि पैसे होते हुए भी वे उन्हें नोटबंदी के कारण निकलवा नहीं पाए थे वे तो कम-से-कम मोदी की पार्टी को इस चुनाव में सबक सिखाएंगे। मगर जनता ने तो पुराने सारे रिकार्ड तोड़ते हुए भाजपा को छप्पर फाड़ कर वोट दिया।
गणित तो अपनी पहले से कमजोर थी मगर तब लगा कि मैं राजनीति की रासयनिक प्रक्रिया को समझने में भी नाकाम रहा हूं। इसलिए देश वापस लौटते ही अखबारों को पढ़ कर व जनश्रुति के आधार पर अपना अनुमान लगाने की कोशिश की कि आखिर किसका पलड़ा भारी है व आगामी चुनाव के बाद किसकी सरकार बनेगी। नया इंडिया के व्याजी को पढ़ते हुए बुजुर्ग हुआ हूं और जो वे आजकल लिख रहे हैं उसे पढ़कर लगता है कि अक्सर हम लोग जो सोचते व चाहते हैं वह हो नहीं पाता है क्योंकि हमारे हाथ में कुछ नहीं होता है।
अतः पिछले दिनों अपने मित्र नेताओं और पत्रकारों से जो बातचीत की उसके बाद किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के बजाए मैं असमंजस में ज्यादा पड़ गया। कांग्रेस को बहुत करीब से जानने व कवर करने वाले पत्रकार मित्रों ने पूछा कि भाईसाहब यह कांग्रेसी क्या आपके समय में भी इतने ही घमंडी व आत्मघाती हुआ करते थे? उन्होंने बताया कि पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता से लेकर आम बड़ा नेता अभी से ऐसा बरताव करने लगा है मानों कि वे लोग सत्ता में आ गए हो।
इस बार टिकट वितरण में जमकर खेल हुआ है। बड़े-बड़े नेताओं ने अपने लोगों को टिकट दिलवाने या अपने विरोधी को निपटाने का पूरा इंतजाम किया है। कुल मिलाकर इतना ही कहा जा सकता है कि इन लोगों ने राहुल गांधी, प्रियंका गांधी व सोनिया गांधी के भोलेपन व कुछ हद तक अज्ञानता का इतना ज्यादा लाभ उठाया है कि अगर कांग्रेस को 125 सीटे भी मिल जाए तो बहुत बड़ी बात होगी। कांग्रेस पार्टी के नेता हो या भाजपा विरोधी क्षेत्रीय दलो के नेता सबकी रूचि मोदी का विरोध करना जारी रखते हुए कांग्रेस को निपटाने की है।
इसकी एक बड़ी वजह यह है कि सभी ने कांग्रेस की कीमत पर ही अपना जनाधार बनाया है जोकि कांग्रेस के मजबूत होने के साथ-साथ कमजोर होना शुरू हो जाएगा। क्षेत्रीय दलो ने कांग्रेस के साथ इतना बुरा दुर्व्यवहार किया है जितना कि वे मोदी के साथ भी नहीं कर सकते थे। रही-सही कमी चुनाव घोषणा पत्र तैयार करते व करवाने वाले नेताओं की सलाह ने पूरी कर दी। सत्ता में आने पर पांच करोड़ गरीबो को हर साल 72 हजार रुपए देने का ऐलान कर ट्रंप कार्ड खेलने के बाद भी चुनाव घोषणा पत्र में कुछ ऐसी घोषणाएं कर दी जिससे इतनी अहम घोषणा हाशिए में चलीगई और भाजपा के इस बयान को मीडिया ने बढ़चढ़ कर दिखा कि घोषणापत्र का एजेंडा देश को तोड़ने वाला है। यह आतंकवादियों व अलगाववादियों को बढ़ावा देने वाला है।
घोषणा पत्र में यह कहना कि आईपीसी की धारा 124-ए को हटा दिया जाएगा और इससे देशद्रोह कानून अपराध नहीं रह जाएगा। यह बात पार्टी के लिए बहुत महंगी साबित होगी खासतौर से तब जबकि आपका मुकाबला देशभक्ति की ढपली बजाकर वोट बटोरने वाले मोदी से हो। कुछ का तो दावा यहां तक है कि गायिका नर्तकी सपना चौधरी पूरी तरह से कांग्रेस में शामिल होने के लिए तैयार हो गई थी मगर कुछ नेताओं ने इस मसले को फुस्स कर दिया।
वहीं भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना था कि मेरा मानना है कि यह पार्टी तो आलसी मुद्रा बिट क्वाइन करेसी सरीखी हो गई है। वह 11 करोड़ सदस्य होने का दावा करते हुए घमंड में इतरा रही है मगर आज यह 11 करोड सदस्य हैं कहां? हमारी पार्टी को भी वही हालत होगी जो कि बिट क्वाइन मुद्रा की होनी है। जब चुनाव होंगे तो सारी असलियत सामने आएगी। पता चलेगा कि आम जनता तो दूर रही आप के सदस्यों तक ने आपको वोट नहीं डाला।
भाजपा में भी टिकट वितरण में पार्टी नेताओं ने इतनी जबरदस्त मनमानी की है कि बिहार जैसे राज्य के भूमिहार और कायस्थ मतदाता तक उसके उम्मीदवार को वोट देने के पहले अनेक बार सोचेंगे। रविशंकर प्रसाद को कडे मुकाबले का सामना करना पड़ेगा तो गिरिराज सिंह की हालत भी पतली हो रही है। अगर इस चुनाव में लोग बड़ी तादाद में नोटा पर मुहर लगाए तो कुछ गलत नहीं होगा। यह चुनाव भाजपा को उसकी असलियत बताएगा। तभी मोदी को यह याद रखना चाहिए कि तकदीर हमेशा साथ नहीं देती है।
(साई फीचर्स)