(हरि शंकर व्यास)
एक रिपोर्ट के अनुसार वर्धा के भाषण में नरेंद्र मोदी की जुबां से 13 बार हिंदू शब्द निकला। इसका क्या अर्थ है? सीधा अर्थ हिंदू वोट पकाना है। तथ्य है 2014 में नरेंद्र मोदी का चुनाव अभियान हिंदू राष्ट्रवाद के जुमले से शुरू हुआ था। विदेशी एजेंसी को पहले इंटरव्यू में कहा था दृ मैं हूं हिंदू राष्ट्रवादी! सोचें, याद करें भारत के किस नेता ने प्रधानमंत्री पद की दौड़ में उतरने से पहले डंके की चोट बोला कि दृ मैं हिंदू राष्ट्रवादी। किसी ने नहीं। अटल बिहारी वाजपेयी ने भी नहीं तो नेहरू, इंदिरा, शास्त्री, नरसिंह राव, देवगौड़ा, डॉ. मनमोहन सिंह का तो सवाल ही नहीं उठता। इसका मतलब हुआ नरेंद्र मोदी भारत के पहले और इकलौते प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने 2014 में हिंदू व हिंदू राष्ट्रवाद की बात करके जतलाया कि उनका हिंदुओं से वादा कि यदि वोट दिया, सरकार बनवाई तो वे हिंदू एजेंडे पर काम करके दिखाएंगे। क्या थे वे वादे? तो मोटे तौर पर नरेंद्र मोदी के भाषण और भाजपा के घोषणापत्र 2014 में हिंदुओं का वादा किया गया कि-
एक देश दो संविधान नहीं चलेगा, नहीं चलेगा। अनुच्छेद 370 और 35 ए को खत्म करेंगे। कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी। कसम राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनाएंगे। आंतक के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति। कसम भारत माता की नागरिक संहिता कॉमन होगी। बांग्लादेशी घुसपैठियों को निकाल बाहर करेंगें। कानून बना कर गोहत्या पर पूरी तरह रोक। बीफ का निर्यात नहीं। मदरसों में आधुनिक शिक्षा जरूरी।
ये बिंदु सीधी लिखित वचनबद्धता है। मगर परोक्ष में ऐसे कई बोल सुनाई दिए, जिससे हिंदुओं में यह सोच भी रही कि नरेंद्र मोदी का राज आएगा तो बढ़ती मुस्लिम आबादी पर रोकने के उपाय होंगे। मुस्लिम तुष्टिकरण पूरी तरह खत्म होगा। शिक्षा को हिंदू हित, हिंदू इतिहास में ढाला जाएगा। धर्मांतरण खत्म होगा। घर वापसी का कार्यक्रम चलेगा। अंग्रेजी, विदेशी की गुलामी से मुक्त हो कर स्वदेशीपना होगा।
क्या इन सबकी उम्मीद में औसत हिंदू, कट्टर हिंदू, राष्ट्रवादी हिंदू, हिंदू धर्म के मठाधीशों ने नरेंद्र मोदी के राज में हिंदू एजेंडे की पूर्ति की उम्मीद नहीं पाली थी?
ऐसी उम्मीद आजाद भारत के 70 साल के इतिहास में पहले कभी नहीं पाली गई। इसलिए क्योंकि नेहरू से लेकर वाजपेयी, डॉ. मनमोहन सिंह आदि में किसी ने चुनाव से पहले अपने को हिंदू राष्ट्रवादी बता कर वोट नहीं मांगे। किसी प्रधानमंत्री ने हिंदू बोल कर, हिंदू दृमुसलमान का सांप्रदायिक तनाव बना कर उत्तर प्रदेश में, बनारस में हिंदू आंधी नहीं बनवाई। हिंदू आंधी बना कर उस पर चुनाव जीतने वाले इतिहास के पहले प्रधानमंत्री थे और हैं नरेंद्र मोदी। लेकिन नतीजा क्या निकला? क्या नरेंद्र मोदी ने पांच सालों में हिंदुओं को धोखा नहीं दिया?
पाठक माईबाप, जवाब खुद सोचें। हिंदुओं को अपने आप से सवाल करते हुए पूछना चाहिए कि मोदी के पांच साल में क्या एक भी काम (एक भी) हिंदू एजेंडे वाला हुआ?
यदि नहीं हुआ तो मोदी के पांच साल के राज को हिंदू इतिहास, आजादी के 70 साल के इतिहास का हिंदू विश्वासघाती राज क्या नहीं मानें?
कई भक्त, मूर्ख हिंदू तर्क दे सकते हैं कि जो 55 साल नहीं हो पाया वह पांच साल में कैसे हो सकता है? क्या यह दलील सरकार के सादे कागज पर जम्मू-कश्मीर से 35ए खत्म करने के कार्यपालिका याकि गृह मंत्रालय के महज एक सरकुलर की जरूरत पर सही बनती है? कतई नहीं। इस तरह के झूठों से यह रिकार्ड कतई नहीं मिटेगा कि पांच साल हिंदू के साथ विश्वासघात के थे। वक्त जाया होने के थे।
नरेंद्र मोदी ने सब उलटा किया। हिंदू विरोधी काम किए। प्रधानमंत्री की शपथ लेने के पहले दिन आंतकवाद की फैक्टरी पाकिस्तान के वजीर ए आजम नवाज शरीफ को दिल्ली बुला कर, उनसे गले मिल कर, उनसे इंसानियत की बात करके हिंदुओं से पहला विश्वासघात किया। फिर सरकार की पहली प्राथमिकता अपने उस बयान को बनाई कि मेरी सोच है-पहले शौचालय, फिर देवालय। हां, नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभालते ही अयोध्या में मंदिर निर्माण याकि देवालय बनाने के वादे को प्राथमिकता नहीं बनाया लेकिन शौचालय बनाने का महाअभियान जरूर चलाया। तभी मौजूं सवाल है वे हिंदू के नाम पर वोट क्यों मांग रहे हैं शौचालय पर वोट क्यों नहीं मांग रहे हैं? क्यों भाषणों में हिंदू, हिंदू का राग है?
तो 2014 से पहले हिंदू राष्ट्रवाद का जुमला बोल कर हिंदुओं का दिल जीतना धोखा देना था तो 2019 के चुनाव से ठीक पहले वापिस हिंदू, हिंदू की बात भी धोखा है। हिंदुओं को क्या ऐसी कोई गारंटी नरेंद्र मोदी, अमित शाह दे रहे हैं कि मई में वापिस जिताया तो अब पहले राम मंदिर बनाएंगें फिर शौचालय बनाएंगे? पहले अनुच्छेद 370, 35ए खत्म करेंगें और फिर मेहबूबा या और किसी के साथ जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाएंगें या यह बात कि पहले कब्रिस्तान वालों को ठीक करेंगें और फिर इंसानियत, कश्मीरियत, उपमहाद्वीप से गरीबी हटाने जैसी जुमलेबाजी बोलेंगें?
लेकिन न पांच साल के राज में छंटाग हिंदू काम होने का हवाला है और न आगे वादा है कि पहले देवालय फिर शौचालय। पहले अखिल भारतीय गोहत्या पाबंदी कानून और फिर बीफ निर्यात।
हां, पांच साल में जैसे शौचालय का हल्ला करके देवालय वालों को डांट-डपट हाशिए में रखा (प्रवीण तोगड़िया जैसों को विहिप से ही बाहर निकलवा दिया) वैसे ही गोहत्या के मामले में भी नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के कुछ ही दिनों बाद कहा- फर्जी गोरक्षक देश और समाज को नष्ट कर दे रहे हैं। हमें इन लोगों से सावधान रहने की जरूरत है। इन लोगों को दंडित करने की जरूरत है। कुछ लोग गोरक्षा के नाम पर समाज में तनाव पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे लोगों को उनके निहित स्वार्थ के लिए अच्छे कार्यों को नष्ट करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
तब आज क्यों नरेंद्र मोदी जनसभाओं में गोरक्षक ब्रांड हिंदू की बात कर रहे हैं? जाहिर है हिंदू यदि ईमानदारी से, सत्यता से सोचें तो हिंदू के पांच साल के अनुभव सौ टका झूठ और धोखे वाले बनेंगें। नरेंद्र मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री हिंदुओं के साथ सर्वाधिक धोखा किया है। आजाद भारत मे किसी प्रधानमंत्री, किसी भी सरकार ने हिंदू से इतना धोखा नहीं किया, जितना नरेंद्र मोदी ने किया। इसलिए क्योंकि बाकी किसी ने हिंदू से वादा भी नहीं किया था, छप्पन इंची छाती नही दिखलाई थी।
आगे बढ़ें। जरा बतौर विचार, विचारधारा, आरएसएस और भगवा छाप हिंदुओं के 2014 में बने, पके हुए मनोभावों पर अब विचार करें। इसमें सोच थी- मोदी मुसलमान को ठीक करेंगें। हिंदुओं का मान- सम्मान, हिंदू धर्म की पताका फहरेगी। हिंदू जाति मुक्त व्यवस्था की और बढ़ेंगे। वोट की, तुष्टिकरण की राजनीति खत्म होगी।
सोचें, क्या पांच साल में मुसलमान ठीक हुए? उन्हें ठीक करने की बातें करते हुए योगी आदित्यनाथ के गंवार ठाकुर राज के वाक्यों को यदि उपलब्धि मानें तो फिर विचार की जरूरत नहीं है। तब भक्ति-मूर्खता में भविष्य की अपने हाथों अपनी कब्र खोदना है। मोदी राज ने, योगी राज ने दुनिया में हिंदुओं का मान-सम्मान नही बनवाया, बल्कि उलटे मॉब लिंचिंग की सुर्खियों से बदनामी करवाई। खाड़ी के किसी मुस्लिम देश में मंदिर की नींव या प्रधानमंत्री की भगवाई वेशभूषा से धर्म पताका बूझना बुनियादी तौर पर क्रिश्चियनिटी, इस्लाम के प्रसार-वैभव, बौद्धिक उर्वरता के आगे हम हिंदुओं का दुनिया को जतलाना है कि हममें बुद्धि नहीं है और हम लिजलिजे, अंध और टोटकेबाजी में जीने वाले दोयम दर्जे के लोग हैं।
सचमुच वैश्विक जमात में पांच साल की हिंदूशाही से हिंदुओं का गौरव नहीं बना, बल्कि दुनिया के मीडिया में, वैश्विक नेताओं में धारणा बनी है कि ये कैसे नौटंकीबाज हैं, कैसे उथले, छिछले, बड़बोले और नासमझ लोग हैं। दुनिया की निगाह में, बौद्धिक विमर्श में पांच साल का लब्बोलुआब इस सार में है कि हिंदुओं को राज करना नहीं आता है। हिंदू सियासी दर्शन का निचोड़ शौचालय निर्माण, पकौड़ा रोजगार, अयोध्या में दिवाली, सडकों पर नई तरह की लाइट, रंगबिरंगी लाइटें, मूर्तियां-स्मारक, इवेंट्स, प्रधानमंत्री की जुमलेबाजी, शासन-सत्ता का अशिष्ट, अभद्र व गुंडई आचरण है।
तभी हकीकत हिंदुओं के लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने वाली है। इतिहासजन्य इस रिकार्ड, अनुभव की है कि जिन्होंने छप्पर फाड़ वोट दिया उन्हीं हिंदुओं से हिंदू एजेंडे में नरेंद्र मोदी ने धोखा दिया।
(साई फीचर्स)

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