(भुवेंद्र त्यागी)
कई स्कूलों में परीक्षाएं हो गई हैं और गर्मी की छुट्टियां चल रही हैं। सीबीएसई और आईसीएसई के कुछ स्कूलों में परीक्षाएं होने के बाद अगली क्लास की पढ़ाई शुरू हो चुकी है। उनकी गर्मियों की छुट्टियां मई में होंगी। जिन विद्यार्थियों की छुट्टियां चल रही हैं, उन्होंने साल भर की पढ़ाई के बाद थोड़ा रिलैक्स होना शुरू कर दिया है। जिनकी छुट्टियां अगले महीने होंगी, वे अभी से प्लानिंग करने लगे हैं कि उस दौरान उन्हें क्या-क्या नए काम करने हैं। हर साल ऐसा ही होता है। परीक्षाओं के बाद छुट्टियों में बच्चे वह सब करना चाहते हैं, जो पढ़ाई के बोझ के कारण वे पूरे साल नहीं कर पाए। मसलन खेलना-कूदना किसी और हॉबी क्लास में जाना, कोई नया हुनर सीखना, जमकर घूमना-फिरना, फिल्में देखना, छककर खाना-पीना और नाचना-गाना।
मगर होता यह है कि छुट्टियों के दौरान भी उन पर अगले साल की पढ़ाई का दबाव बना रहता है। वे इस बारे में सोचना भी नहीं चाहते, लेकिन उनके माता-पिता, भाई-बहन अड़ोसी-पड़ोसी और नाते-रिश्तेदार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उन पर यह दबाव बनाए रखते हैं। इससे बच्चे वर्तमान से भविष्य में चले जाते हैं और मौजूदा लम्हों का मजा भी नहीं ले पाते। वे आधे-अधूरे मन से यंत्रवत सब कुछ वैसा ही करते चले जाते हैं, जैसा उनके माता-पिता चाहते हैं। लेकिन पराग इन सबसे अलग है।
सीबीएसई स्कूल में नवीं कक्षा में आए पराग ने परीक्षा खत्म होते ही अपनी सारी किताबें अलमारी में रख दीं। उसे नवीं क्लास की किताबें भी मिल गई हैं, जिन पर कवर चढ़ाकर उसने सलीके से रख दिया है। उसका कहना है कि अगले 15 दिन तक वह एक भी किताब नहीं देखेगा और इस दौरान अपने मन के सभी काम करेगा। यही नहीं, उसने अनाथ, गरीब और वंचित बच्चों के साथ रोज कुछ समय बिताने का भी संकल्प लिया है। इसके लिए उसने अपने कुछ दोस्तों को इकट्ठा किया और किसी पार्क या गार्डन में ऐसे बच्चों को इकट्ठा करके कहानी कहने के अंदाज में सामान्य विषयों की कामचलाऊ जानकारी देनी शुरू कर दी। जैसे भारत, महाराष्ट्र और मुंबई का इतिहास और भूगोल, यहां के धर्म और संस्कृति, तीज-त्योहार और सामाजिक संरचना।
शुरू में उन बच्चों को यह सब कुछ काम का नहीं लगा, लेकिन बाद में उन्हें मजा आने लगा। वे खुलकर सवाल पूछने लगे। यह देखकर पराग और उसके दोस्तों के मन खुशी से खिल गए। उन्हें लगा कि अगर सभी स्कूलों में इसी तरह पढ़ाई हो, कोई दबाव न हरे, तो कितना मजा आए! पराग का कहना है कि मम्मी- डैडी और स्कूल वाले इस बात को नहीं समझते। समझ जाएंगे, तो पढ़ाई बोझ नहीं रहेगी!
(साई फीचर्स)

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