(हरी शंकर व्यास)
वोटर मनोविज्ञान की मेरी यह थीसिस कि इस चुनाव में लोगों का मन पहले से बना हुआ है, उसका आज उत्तरप्रदेश में मुझे अनुभव भी हुआ। अब यह प्रामाणिक तौर पर कह सकते है कि उत्तरप्रदेश में जनसभाओं की भीड़ और भीड़ को भाषण से बांधने की नरेंद्र मोदी की कला और उसका जलवा खत्म है। हां, नरेंद्र मोदी की यूपी की सभा अब जनसभाएं नहीं होती बल्कि वे कार्यकर्ताओं की सभा है। इनमें वे ही चेहरे होते है जो भाजपा को वोट देने का फैसला लिए हुए या उसके बूथ प्रबंधक और व्यवस्थापक है। भाजपा का संगठन-उम्मीदवार अपने कार्यकर्ताओं और चिंहिंत वोटरो को बसो, गाडियों से ढोह कर नरेंद्र मोदी की सभा में पहुंचाती है। ये लोग पहले तो कम पहुंच रहे हैं और पहुंचने के बाद हाजिरी लगा कर चलते बनते हैं। यदि 50 हजार लोग पहुंचे तो उनमें 20-25 हजार लोगों का भी नरेंद्र मोदी का भाषण सुनने का धेर्य होता है। बाकी कार्यकर्ता सभा में ले दे कर लोग हाजिरी दिखाने का रवैया लिए होते हैं।
यूपी में 24 मार्च की मेऱठ की पहली जनसभा हो या वाराणसी में नामांकन के वक्त के भीड़-तमाशे के प्रायोजन से ले कर आज (एक मई) की अयोध्या-फैजाबाद व अंबेडकरगर की दो लोकसभा सीट की मया बाजार की जनसभा का मैंने भरी दुपहरी जो नजारा देखा तो साफ लगा कि नरेंद्र मोदी प्रचार की जनसभाएं नहीं कर रहे हैं बल्कि कार्यकर्ताओं, चिंहित वोटों की उपस्थिति दर्ज होने के तमाशे में वे भाषण इसलिए करते हैं ताकि टीवी चौनल पर भाषण प्रसारित होते रहे। मुझे मया बाजार की सभा में समझ ही नहीं आया कि वे भाषण सुना किसे रहे हैं और उन्हे सुन कौन रहा है! यह तो भूल ही जाए कि सभा लाख या लाखों लोगों की!
हां, जनसभाओं में लोग अपने आप, स्वंयस्फूर्त कतई वैसे नहीं पहुंच रहे है जैसे 2014 में पहुंचते थे। 2014 में मैंने दोपहर की मोदी की जनसभाएं देखी है तब लोग मोदी का भाषण गर्मी के बावजूद सुनते थे। ऐसा कभी नहीं देखा कि भीड़ आई और मोदी का हेलिकॉप्टर लैंड हुआ तो लोगों ने लौटना शुरू कर दिया।
अयोध्या से 24 किलोमीटर दूर की मया बाजार की जनसभा ने अहसास कराया कि मोदी की सभा मतलब भीड़ को पूरी तरह ढोह़ कर लाना। यह सभा दो लोकसभा सीट के लिए थी तो दोनों जगह से लोगों को सभास्थल पर पहुंचाने का बसो, गाडियों का पूरा प्रबंध था। फैजाबाद में अपने पुराने पत्रकार त्रियुग नारायण ने बताया कि मीडिया को पांच लाख लोगों की संख्या बताई जाएगी लेकिन दोनों क्षेत्रों से एक-एक लाख लोगों को पहुंचाने का टारगेट है। मैदान के दो एंट्री गेट फैजाबाद से आ रही भीड के लिए तो सड़क के दूसरी तरफ से अंबेडकर नगर क्षेत्र से लाए जा रहे लोगों की भीड़ के लिए उधर वे दो गेट। हमने चारो गेट की और जा कर देखा। लोगों की मामूली भीड़ खटकी। शाम को त्रियुग ने बताया कि भीड़ कम देख मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी बुरी तरह भन्नाए। प्रबंधकों पर बिगड़े। प्रधानमंत्री को गोरखपुर मैसेज गया कि वे कुछ देर वही रूके रहे। योगी ने मोदी के पहुंचने से पहले लंबा भाषण दे कर वक्त काटा। अधिकारिक 9 बजे का समय था पर अपन मान कर चल रहे थे कि ग्यारह बजे मोदी का भाषण शुरू होगा। आगे आखिर टाइट श्यूडल है। मगर वे दिन की पहली सभा में भी कम भीड़ के चलते मंच पर लेट कोई बारह बजे पहुंचे।
और आश्चर्य जो इधर नरेंद्र मोदी का हेलिकॉप्टर लेंड हुआ और नरेंद्र मोदी मंच पर पहुंचे उससे पहले ही लोग सभास्थल से बाहर निकलना शुरू हो गए। देखते-देखते दस-पंद्रह मिनट में लौटते लोगों से सडक भर गई। सडक की दोनों दिशा से लोग लौटते हुए। संदेह नहीं एक वजह गर्मी थी। मैं, त्रियुग, श्रुति हमारी भी हिम्मत नहीं हुई कि सभा पंडाल में किनारे जा कर खड़े हो। गर्मी से हम भी बेहाल थे लेकिन आए है तो देखना चाहिए, सुनना चाहिए यह सोच खड़े रहे। त्रियुग मोदी के भाषण के नोट्स लेता रहा और हम लौटती, बेजान भीड़ को देखते हुए सोचते रहे कि ये लोग आए क्यों थे? इनमें न नरेंद्र मोदी को देखने का कौतुक और न सुनने की लगन। मैंने लौटते लोगों से पूछा कि तब आए क्यों है? तो जवाब था कार्यकर्ता है तो आना था ही।
तो नोट करके रखे कि नरेंद्र मोदी यूपी में कार्यकर्ता सभा कर रहे है न कि जनसभाएं। कार्यकर्ताजनों की सभा में हर, हर मोदी के नारे जरूर लगते है लेकिन नारे लगना कुल मिलाकर कार्यकर्ताओं की उपस्थिति का हल्ला है। इससे न तो आसपास के अन्य लोगों पर असर होता है और न शहर में याकि अयोध्या-फैजाबाद या अंबेडकरनगर में घर-घर यह माहौल बनता है कि मोदीजी आए थे और फंला-फंला बात कह गए या अयोध्या-फैजाबाद में माहौल बदल गया।
जैसा मैंने कल लिखा कि मोदी भक्त और मोदी विरोधी वोटों का वर्गीकरण पहले से हुआ पड़ा है। लोगों का मूड बना हुआ है। लोगों का मन वर्ग, वर्ण, धर्म विशेष अनुसार पहले बना हुआ है। इसको जांचने के लिए मैंने मया बाजार की मोदी सभा में सडक पर आते-जाते लोगों से जात पूछने का बेशर्म काम किया। जान ले जैसा मैने सोचा हुआ था कि ब्राह्यण, बनिए, राजपूत और कुर्मी लोगों की ही भीड़ होगी तो वहीं निकली। मैने शक्ल-सूरत, हाव-भाव पर ऐसे चेहरे तलाशे कि शायद यह यादव या दलित हो (मोदी की सभा में मुसलमान के चेहरे का ख्याल बनता ही नहीं) लेकिन बहुत कोशिश के बाद एक चेहरे से सुनने को मिला कि वह हरिजन है और उसके साथ आया फला राजभर है और मोदीजी से मुझे तो फायदा हुआ।
हां, एक हरिजन चेहरा मुझे मोदी की सभा में सड़क किनारे खड़ा मिला। बाकि सब ब्राह्यण, बनिए, राजपूत और कुर्मी। मोदी के कार्यकर्ताजनों की सभा में उपस्थिति को शक्ल से पहचाना जा सकता है कि वे किस जाति के है। ऐसे ही सपा-बसपा की जनसभा में पहचाना जा सकता है कि वहां यादव कौन है और दलित कौन और मुसलमान कौन? मोदी की सभा के बाद बाराबंकी में सपा-बसपा की भी सभा थी। उसके चेहरों और मोदी की सभा के चेहरों का फर्क बताता है कि उत्तरप्रदेश की 80 सीटों पर चुनाव मोदी, मोदी की हवा पर नहीं है बल्कि मोदी के समर्थकों और विरोधियों की आमने-सामने की सीधी गोलबंदी पर है। मोदी समर्थक हल्ला करते है, हर हर मोदी नारा लगाते है लेकिन मोदी का भाषण नहीं सुनते है तो बसपा-सपा के लोग मौन रह कर सभा में बैठे रहते है। वे जरूर पूरा भाषण सुन कर लौटते है।
यही यूपी में चुनाव की हकीकत है। कल मैंने लखनऊ में अमीनाबाद के चौराहे पर बृजेश पाठक द्वारा राजनाथसिंह के लिए आयोजित सभा पर गौर किया। सभा हिट थी लेकिन उसमें उपस्थित चेहरे वही थे जो मया नगर की मोदी की सभा में भी थे। मतलब ब्राह्यण, बनिए, राजपूत, सिंधी याकि मध्य वर्ग। मैंने भीड़ में दलित, यादव चेहरे तलाशे। सभा बीच बाजार में और मुस्लिम आबादी की आवाजाही के बीच थी। और ऐसे असंख्य मुस्लिम चेहरों, खास कर मुस्लिम महिलाओं के चेहरे मैंने देखे जिनके चेहरे पर क्षण भर का भी कौतुक नहीं बना कि भारत के गृह मंत्री बोल रहे है तो क्षण भर उधर देखें। भाजपा की हो रही सभा पर असंख्य चेहरों का सपाट भाव आंख, कान, नाक बंद कर गुजरना सचमुच सवाल बनाता है कि वोट के मामले में मतदाताओं के बीच कैसी खांचेबंदी बन गई है।
इसलिए उत्तरप्रदेश में मोदी की हवा पर फैसला नहीं है। जमीनी गोलबंदी, जातियों के आंकडे पर चुनाव है। अपना मानना है कि फैजाबाद और अंबेडकरनगर दोनों सीटे भाजपा गंवा सकती है। वजह 2014 के आंकड़े और जमीनी मुकाबले वाली लड़ाई बनना है। भाजपा मोदी की हवा के हल्ले पर हवा में उड रही है जबकि अखिलेश, मायावती व राहुल-प्रियंका और इनके उम्मीदवार मेहनत और निश्चय से चुनाव ल़ड़ते दिख रहे है। भाजपा के हवाई हिसाब में ही फैजाबाद में आज यह दलील सुनने को मिली कि कांग्रेस के उम्मीदवार निर्मल खत्री अपनी अच्छी इमेज के चलते 20 प्रतिशत मुसलमान वोट पाएगें। इससे अयोध्या-फैजाबाद के शहरी इलाके में भाजपा के ललूसिंह की 40-50 हजार वोटों की बढ़त बनेगी और वे मजे से जीतेगें। मगर अपना मानना है कांग्रेस के निर्मल खत्री भाजपा वाले फारवर्ड वोट ज्यादा काटेगें और मुसलमान कतई 2014 की तरह नहीं बटेगा। कांटे की लड़ाई में भाजपा फंस सकती है तो अंबेडकनगर की सीट में तो 2014 में भी भाजपा के 41.8 प्रतिशत वोटों के मुकाबले सपा-बसपा एलायंस का कुल वोट वैसे भी 51 प्रतिशत था। मतलब 2014 जितना वोट भाजपा को मिल भी जाए तो एलायंस बनने और उसमें कांग्रेस के होशियारी से भाजपा के फारवर्ड वोट काटने की राजनीति हर, हर मोदी के हल्ले को पंचर कर देगी। आखिर जब नरेंद्र मोदी की सभाएं बिना गंभीरता और केवल हाजिरी को दिखलाने की नेचर वाली है तो ललू सिंह को जीताने के लिए लोग कैसे जी जान लगा देंगे?
(साई फीचर्स)

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