(ब्यूरो कार्यालय)
इंदौर (साई)। कानों को सुनने में कितना अच्छा लगता है, पवित्र नगरी महेश्वर! 15 साल पहले राज्य की तत्कालीन उमा भारती सरकार की घोषणा ने महेश्वर को दी थी यह उपमा।
इसके लिए कुछ नियम तय हुए थे कि इस नगरी में शराब नहीं बिकेगी। सीवरेज का पानी और मैला सीधे पुण्य सलिला नर्मदा में जाकर इसे गंदा नहीं करेगा। शहर के सीवरेज का ट्रीटमेंट करके इसे नर्मदा में छोड़ा जाएगा। पर महेश्वर का दुर्भाग्य है कि प्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा में शहर का सीवरेज सीनाजोरी से सीधे मिल रहा है।
यही नहीं, शासकीय शराब दुकान बंद कर दिए जाने के बावजूद कुछ बाहरी ठेकेदार चोरी छिपे अवैध तरीके से शराब बेच रहे हैं। नर्मदा को प्रदूषणमुक्त करने के लिए राज्य शासन ने करीब नौ साल पहले योजना बनाई थी। पर 44 करोड़ की यह योजना अब तक धरातल पर नहीं आ पाई है। बात नर्मदा के प्रदूषण से शुरू करते हैं। शहर की आबादी लगभग 35 हजार है। यहां पानी में औद्योगिक प्रदूषण तो नहीं लेकिन सीवरेज सीधे नर्मदा में पहुंचता है।
पहला स्थान शहर के पूर्व तरफ महेश्वरी नदी पर है जिसमें साड़ियों को रंगने में उपयोग किए जाने वाले रसायन का पानी छोड़ दिया जाता है। इसी इलाके में स्लाटर हाउस भी बना है। इसका गंदा पानी भी महेश्वरी नदी में मिलकर कालेश्वर-जालेश्वर की ओर जाकर नर्मदा में मिल जाता है। दूसरा स्थान काशी विश्वनाथ मंदिर के पास है जहां किले के ऊपर के रहवासी क्षेत्र का जल-मल नर्मदा में पहुंचता है।
धामनोद, चोली से आ रही शराब
महेश्वर में शराब बेचना भले ही प्रतिबंधित हो, लेकिन धामनोद, करही और चोली के कुछ ठेकेदार स्थानीय लोगों से मिलकर महेश्वर में शराब की सप्लाई कर रहे हैं। आबकारी विभाग के नियम के अनुसार ठेके की शराब दुकान से लोग पीने के लिए ले जा सकते हैं, लेकिन दुकान संचालक बल्क में इसकी सप्लाई दूसरी जगह नहीं कर सकते। पर कुछ लोग यहां अवैध तरीके से बेच रहे हैं।