बधाई सिवनी पुलिस को!

 

 

(शरद खरे)

जिला अस्पताल के प्रसूति प्रभाग से 24 मई को सुबह बच्चा चोरी हो गया था। सिवनी पुलिस ने उसे महज़ दो दिनों में ही आरोपियों के साथ बरामद किया है। यह वाकई एक बहुत प्रशंसनीय उपलब्धि है जो सिवनी पुलिस के खाते में जुड़ी है। इसके लिये जिला पुलिस अधीक्षक ललित शाक्यवार सहित समूचा पुलिस परिवार बधाई का पात्र है।

जिला अस्पताल में सफाई और सुरक्षा दोनों ही कार्य आऊट सोर्स किये गये हैं। सुरक्षा ठेकेदार को लाखों रूपये प्रतिमाह का भुगतान किया जा रहा है। जिला अस्पताल प्रशासन सहित मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को इस बात पर नज़र रखना चाहिये कि सुरक्षा ठेकेदार के द्वारा किस तरह से काम को अंजाम दिया जा रहा है।

अगर सुरक्षा कर्मी काम नहीं कर रहे हैं। वार्ड से गायब हैं तो जिला अस्पताल प्रशासन क्या करता रहा! अस्पताल को सीसीटीवी कैमरों की जद में रखा गया है। अधिकांश सीसीटीवी कैमरे खराब पड़े हैं। इन सबका कंट्रोल यूनिट सिविल सर्जन के कक्ष में लगा हुआ है। इसके अलावा संचार क्रांति के युग में अब तो मोबाईल पर भी सीसीटीवी के पल-पल के वीडियो फुटेज देखे जा सकते हैं। हो सकता है कि अस्पताल प्रशासन के द्वारा इस तरह की सेवा का लाभ भी लिया जा रहा हो, पर बच्चा चोरी की घटना अपने आप में बहुत गंभीर बात है।

आरोपियों को पकड़ने के बाद जिस तरह की कहानी सामने आयी है वह भी फिल्मी स्टाईल की कहानी से कम नहीं मानी जा सकती है। दो तीन दिन तक एक अन्जान महिला अस्पताल में बच्चा चोरी के लिये बच्चे को देखती रही और अस्पताल प्रशासन सहित सुरक्षा एजेंसी को इसकी भनक तक नहीं लगी!

उस माता के बारे में सोचकर ही दिल दहल उठता है जिस माता के पास से उसका नवजात गायब हो गया हो। इस घटना के बाद भी अस्पताल प्रशासन की आँखों का नूर बनी सुरक्षा एजेंसी के खिलाफ किसी तरह की अनुशासनात्मक कार्यवाही अब तक नहीं हुई है। अगर हुई भी हो तो इस बारे में अस्पताल प्रशासन के द्वारा कुछ भी सार्वजनिक नहीं किया गया है। यह सब कुछ तब हुआ जब जिलाधिकारी के द्वारा लगातार ही जिला अस्पताल का निरीक्षण किया जाता रहा हो।

बहरहाल, कोतवाली पुलिस के द्वारा अपने आला अधिकारियों के निर्देशन में जिस तरह से समय सीमा में बच्चे को बरामद किया गया वह तारीफ-ए-काबिल है। अधिकारियों की सूझ-बूझ से यह मामला सुलझ सका। इस मामले में 108 के एक कर्मचारी की संलिप्तता भी आश्चर्यजनक ही है।

इस मामले में यह भी देखा जाना चाहिये कि 108 एंबुलेंस का ठेका जिसके पास है उसके द्वारा इस कर्मचारी को रखने के पहले उसका पुलिस से चरित्र सत्यापन कराया गया था अथवा नहीं! अनेक अनसुलझे सवाल हैं इस मामले में जो बार-बार स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की लापरवाही की ओर चीख-चीख कर इशारा करते नज़र आ रहे हैं।

इस मामले को समय सीमा में सुलझाने के लिये जिले के पुलिस अधिकारियों और इस काम को अंज़ाम देने वाले हर अधिकारी और कर्मचारी के लिये उस माता के दिल से दुआएं ही निकल रही होंगी और कहा जाता है कि किसी की दुआएं खाली नहीं जातीं . . .।

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