अवैध गुटखा फैक्ट्री सील!

 

 

(शरद खरे)

यह खबर चौंकाने वाली है कि सिवनी जैसे छोटे जिले में जहाँ उद्योग धंधों के नाम पर कुछ भी नहीं है वहाँ बिना अनुमति, बिना किसी की जानकारी के गुटखा फैक्ट्री का संचालन किया जा रहा था। यह फैक्ट्री कब से चल रही थी यह बात अब तक स्पष्ट नहीं हो पायी है।

खाद्य एवं औषधि प्रशासन के द्वारा बरघाट शहर में वार्ड नंबर 10 में इस तरह की एक फैक्ट्री को गत दिवस निरीक्षण के उपरांत सील किया गया है। इसके लिये खाद्य एवं औषधि प्रशासन बधाई का पात्र है पर यक्ष प्रश्न यही खड़ा है कि इस तरह की फैक्ट्रियों पर इसके पहले विभाग की नज़रें इनायत क्यों नहीं हो पायीं!

इसका सीधा सा जवाब है कि विभाग के अधिकारी और कर्मचारियों के द्वारा कार्यवाही के लिये शायद मुख्यालय के निर्देशों की प्रतीक्षा की जाती है। अगर साल भर विभाग का अमला सड़कों पर रहे तो उसे जिले में हो रहीं अनैतिक गतिविधियों की जानकारी आसानी से मुहैया हो सकती है।

विभाग के नुमाईंदे पान गुटखे का सेवन करते होंगे, अगर नहीं भी करते हैं तो उन्हें इस बात का पता तो होगा कि पान या गुटखे में डलने वाली सुपारी का विक्रय जिले भर में किस तादाद में किया जाता है। यह सुपारी कहाँ से आती है! कटकर आती है या जिले में ही इसे काटा जाता है! यह सुपारी मानव उपयोग के लिये किस तरह की बेची जा रही है! क्या यह फफूंद लगी है! इस बारे में जानकारी अगर विभाग के अधिकारी एकत्र करें तो निस्संदेह विभाग बड़ी कार्यवाही को अंजाम दे सकता है।

आज के समय में तंबाखू का उपयोग न करने की अपील सरकारों के द्वारा की जाती है पर इस तरह की अपीलों का असर बहुत ज्यादा होता नहीं दिखता है। पान की दुकानों में जिस तंबाखू को पान या गुटखे में डाला जा रहा है उसे चूने के साथ कहाँ मला जाता है, इस बारे में शायद ही कोई जानता हो।

बताते हैं कि मली मलाई तंबाखू अब बोरियों में आने लगी है। इसे मिक्सी में पीसने की बातें भी कही जाती हैं। यह तंबाखू कितने दिन पहले मली गयी, इसको सुरक्षित रखने के लिये क्या इसमें कोई रसायन मिलाया जाता है, इस बारे में इसके शौकीन भी नहीं जानते होंगे।

विभाग के द्वारा अगर इस तरह की बातों की पतासाजी की जाकर इसे सार्वजनिक किया जाये तो निश्चित तौर पर तंबाखू सेवन करने वाले लोगों की संख्या में कमी आने की उम्मीद की जा सकती है। वैसे जिले भर में इस तरह की फैक्ट्रियों का संचालन कहाँ-कहाँ किया जा रहा है इस बारे में एक अभियान चलाये जाने की आवश्यकता है।

हो सकता है कि विभाग के अधिकारी इस अभियान के पहले काम की अधिकता की बात कह दें। हो सकता है कि विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों के पास काम का बोझ ज्यादा हो पर उनके जिम्मे मानव स्वास्थ्य के लिये हानिकारक चीजों को रोकने की जवाबदेही भी प्राथमिकता के साथ आहूत होती है।

संवेदनशील जिलाधिकारी प्रवीण सिंह से अपेक्षा है कि वे खाद्य एवं औषधि प्रशासन के उप संचालक सह मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को इस बात के लिये पाबंद करें कि इस तरह से मानव स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने वालों के खिलाफ सख्ती से अभियान चलाया जाये।