0 कॉपी, किताब, गणवेश में लुटेंगे . . . 05
रस्म अदायगी के लिये जारी होते आये हैं निर्देश!
(अय्यूब कुरैशी)
सिवनी (साई)। सोमवार से नया शिक्षण सत्र के आरंभ होने वाला है पर सीबीएसई अथवा राज्य शिक्षा केंद्र के दिशा निर्देशों का पालन सुनिश्चित कराने की चिंता किसी को भी नजर नहीं आ रही है। अब तक जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय के द्वारा भी किसी तरह के दिशा निर्देश जारी नहीं किये गये हैं।
सिवनी जिले में किताबों के मामले में सीबीएसई स्कूलों की मनमानी पर रोक नहीं लग पा रही है। छोटे बच्चों की किताबों में मोटा कमीशन खाने के लिये स्कूल संचालक सीबीएसई की गाईड लाईन को भी दरकिनार कर रहे हैं। इस बात की जानकारी प्रशासन से लेकर शिक्षा विभाग तक के अफसरों को है, लेकिन कार्यवाही के नाम पर प्रत्येक अफसर, अधिकारों की दुहाई देने लगता है।
ज्ञातव्य है कि सीबीएसई (केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड) द्वारा 20 जुलाई 2015 एवं 23 फरवरी 2017 को सर्कुलर जारी कर निर्देश दिये गये थे कि सीबीएसई के सभी स्कूलों में कक्षा आठवीं तक एनसीईआरटी द्वारा निर्धारित सिलेबस ही छात्रों को पढ़ाया जाये। इसके अलावा सीबीएसई के द्वारा और भी निर्देश जारी किये गये हैं।
सीबीएसई ने नाराजगी जाहिर करते हुए यह भी कहा था कि स्कूल संचालक, पालकों को अतिरिक्त किताबें खरीदने के लिये बाध्य नहीं करें, लेकिन शहर के अधिकांश निजि स्कूल सीबीएसई के इस निर्देश का पालन ही नहीं कर रहे हैं। कार्यवाही करने वाले जिम्मेदार सीबीएसई के अफसर शिकायतों के इंतजार में बैठे हैं। पालक शिकायत करेंगे तो वे कार्यवाही करने को तैयार हैं।
ज्ञातव्य है कि राज्य शिक्षा केंद्र के द्वारा 19 अगस्त 2008 के बाद लगातार कई सालों से एक परिपत्र जारी कर निर्देश दिये जा रहे हैं कि स्कूलों और पुस्तक विक्रेताओं की जुगलबंदी को तोड़ने के लिये यह जरूरी है कि पाठ्यक्रम की पुस्तकों और गणवेश की कम से कम आठ दुकानें (अब इसे घटाकर तीन कर दिया गया है) होना चाहिये। इसके साथ ही साथ जिला प्रशासन को निर्देशित किया गया था कि अनुविभागीय अधिकारी राजस्व की अध्यक्षता में एक समिति बनायी जाकर इन दुकानों का सतत निरीक्षण करवाया जाये।
विडंबना ही कही जायेगी कि तत्कालीन जिला कलेक्टर्स के द्वारा मार्च माह में ही एक परिपत्र जारी कर राज्य शिक्षा केंद्र के उक्त आदेश का हवाला दिया जाकर, जिला जनसंपर्क कार्यालय के माध्यम से विज्ञप्ति का प्रकाशन तो करवा दिया जाता रहा है किन्तु कभी भी अधिकारियों के द्वारा जमीनी स्तर पर यह देखने का प्रयास नहीं किया गया कि वास्तव में कितनी दुकानों पर कॉपी, किताबें और गणवेश मिल रहे हैं।
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