(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)। खेतों में नरवाई न जलाये जाने की अपील जिला प्रशासन के द्वारा की गयी है। इस संबंध में जारी सरकाीर विज्ञप्ति के अनुसार गेहूँ कटने के बाद बचे हुए फसल अवशेष (नरवाई) खेतों में न जलायें, क्योंकि यह खेती के लिये आत्मघाती कदम है।
विज्ञप्ति के अनुसार नरवाई में आग लगाने से भूमि में उपलब्ध जैव विविधता समाप्त हो जाती है। भूमि में उपस्थित सूक्ष्म जीव जलकर नष्ट हो जाते है, सूक्ष्म जीवों के नष्ट होने के फलस्वरूप जैविक खाद का निर्माण बंद हो जाता है। भूमि की ऊपरी परत में ही पौधों के लिये आवश्यक पोषक तत्व होते हैं, आग लगने के कारण पोषक तत्व जलकर नष्ट हो जाते है। नरवाई जलाने से भूमि कठोर हो जाती है, जिसके कारण भूमि की जल धारण क्षमता कम हो जाती है और फसलें सूख जाती है। खेत की सीमा पर लगे पेड़ पौधे आदि जलकर नष्ट हो जाते हैं।
विज्ञप्ति के अनुसार इससे पर्यावरण प्रदूषित होता है, वातावरण के तापमान में वृद्धि होती है, जिससे धरती गर्म हो जाती है। कार्बन से नाईट्रोजन तथा फॉस्फोरस का अनुपात कम हो जाता है। केंचुए नष्ट हो जाते हैं, जिस कारण भूमि की उर्वरक क्षमता खत्म हो जाती है। वर्तमान में रबी फसलें जैसे गेहूँ, चना की कटाई करने के बाद किसान उसे जला रहे हैं।
विज्ञप्ति के अनुसार नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्णय अनुसार नरवाई जलाने से पर्यावरण खराब हो रहा है। साथ ही जन-धन को नुकसान होने की संभावना बनी रहती है। मित्र कीट भी नष्ट हो रहे है। किसानों से अपील की गयी है कि नरवाई न जलाते हुए उन्हें कृषि यंत्र स्ट्रारिपर से कटाई करके भूसा तैयार कर गहरी जुताई करें।
विज्ञप्ति के अनुसार नरवाई जलाने का कृत्य धारा 144 के तहत प्रतिबंधित है। नरवाई में आग लगाने पर पुलिस द्वारा प्रकरण भी कायम किया जा कर कठोर कार्यवाही की जायेगी। इस संबंध में मध्य प्रदेश शासन के नोटिफिकेशन 15 मई 2017 में निषेधात्मक निर्देश दिये गये हैं।
विज्ञप्ति के अनुसार निर्देशों के उल्लंघन किये जाने पर व्यक्ति, निकाय को नोटिफिकेशन प्रावधान अनुसार दो एकड़ से कम भूमि रखने वाले को ढाई हजार प्रति घटना पर्यावरण क्षतिपूर्व, दो से पाँच एकड़ भूमि रखने वाले को पाँच हजार प्रति घटना क्षतिपूर्ति एवं पाँच एकड़ से अधिक भूमि रखने वाले को 15 हजार प्रति घटना पर्यावरण क्षतिपूर्ति राशि देना होगी।