कैमिकल्स वाले रंगों से रहें सावधान

 

 

(वाणिज्य ब्यूरो)

सिवनी (साई)। प्राकृतिक रंगों की बजाय अब कैमिकल युक्त रंगों का प्रयोग जोरों पर है। ये सस्ते होने के कारण आसानी से चलन में आ गये हैं। लोग इन चटखदार रंगों का प्रयोग तो करते हैं पर यह भूल जाते हैं कि इस तरह के रंग उनकी सेहत पर क्या प्रभाव डाल रहे हैं?

टेसू, हल्दी, चंदन, गुलाब आदि से तैयार किये जाने वाले रंग अब पूरी तरह गायब हो गये हैं। प्राकृतिक रंग गुलाल की जगह अब कैमिकल रंगों ने ले ली है। रसायन युक्त इन रंगों से त्वचा पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ता है। कैमिकल से बने रंग लोगों की सेहत से सीधा खिलवाड़ कर रहे हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि ये कैमिकल और सिंथेटिक रंग हर्बल रंगों के नाम पर बेचे जा रहे हैं।

होली के त्यौहार पर सिंथेटिक रंगों का बाजार भर गया है। इस मार्केट में स्वदेशी सहित विदेशों में निर्मित सिंथेटिक रंगों को बेचा जा रहा है। ये रंग हर्बल के नाम पर चाईना में निर्मित रंग बताये जा रहे हैं। दुकानदार यह रंग महानगरों से खरीदकर लाये हैं, जिसकी जानकारी संबंधित विभाग को नहीं है।

बाजार की हकीकत यह है कि रंग, गुलाल और पिचकारी आदि का कोई घोषित थोक व्यापारी नहीं है। ये सामग्री फुटकर और थोक में बेची जा रही है। जानकारों का कहना है कि इन रंगों की तस्करी कर चाईना मार्केट से यहाँ लाया गया है जिसकी खेप चोरी – छुपे शहर में आ चुकी है।

शहर के बुधवारी बाजार, शुक्रवारी सहित बारापत्थर, भैरोगंज, डूण्डा सिवनी आदि क्षेत्रों में होली के पहले रंग गुलाल की दुकानें सज गयी हैं। इन दुकानों में रंगों के अलावा नकली विग, पिचकारी, मुखौटे, आदि का विक्रय किया रहा है। इन सामग्रियों में छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में निर्मित रंग – गुलाल के साथ चीन में निर्मित उत्पादों को बेचा जा रहा है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार दुकानों में उपनगरीय क्षेत्रों सहित ग्रामीण अंचल के दुकानदारों की थोक व फुटकर खरीददारी की जा रही है। त्यौहार नजदीक आते ही बाजार में मनमाने दाम पर रंग बिक रहे हैं। पाँच रुपये से लेकर पाँच सौ रुपये तक के रंग – गुलाल हैं। छोटी बोरियों में पैक्ड गुलाल है। वहीं डिब्बों में पैक्ड रंग हैं। फुटकर बाजार में ये रंग लोहे की डिब्बियों सहित प्लास्टिक के पाउच में भी विक्रय किया जा रहा है। इन रंगों में लाल और हरे रंग की माँग सबसे ज्यादा है।

जानकारों का कहना है कि ज्यादातर रंग कैमिकल युक्त होते हैं। कैमिकल होने की वजह से ऐसे रंगों का प्रभाव त्वचा पर पड़ता है। त्वचा पर दाग, धब्बे पड़ जाते हैं। इनमें खुजली के साथ फुंसियां हो जाती हैं। इन दाग – धब्बों से पानी आने लगता है। ज्यादा संक्रमण होने से खिंचाव और दर्द आरंभ हो जाता है। कई मामलों में त्वचा पर गहरे दाग पड़ जाते हैं।

वहीं, चिकित्सकों की मानें तो सिंथेटिक रंग पानी में घुलते ही रसायनिक क्रिया करने लगते हैं। इससे पानी में प्रतिक्रिया होती है। पानी के आयन टूट जाते हैं, ये रंग के कणों को अवशोषित करते हैं। इस पानी के इस्तेमाल से संक्रमण होता है। इससे त्वचा, किडनी, लीवर, फेफड़े सहित आँखों पर असर पड़ता है। सिंथेटिक रंगों में कैमिकल होता है जो सूर्य की रोशनी के संपर्क में आते ही कैमिकल रियेक्शन कर नया यौगिक तैयार कर लेता है। यह यौगिक शरीर की त्वचा के संपर्क में आते ही संक्रमण कर दाग, धब्बे छोड़ता है।