दुकानदार नहीं दे रहे किताबों के बिल!

 

 

0 कॉपी, किताब, गणवेश में लुटेंगे . . . 07

(अय्यूब कुरैशी)

सिवनी (साई)। निजि स्कूलों और पुस्तक विक्रेताओं की सांठ – गांठ की जानकारी शासन से लेकर प्रशासन तक सभी को है, लेकिन स्कूलों पर कार्यवाही के नाम पर सभी अपने हाथ पीछे खींचने लगते हैं। यही कारण है कि अभी तक एक भी स्कूल पर कोई कार्यवाही नहीं की गयी है।

जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय के उच्च पदस्थ सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि अधिकारी हर साल शिकायत आने पर कार्यवाही की जायेगी, कहकर मामले को टाल देते हैं। अभिभावक जब किताबें खरीद लेते हैं, तब बैठक कर स्कूल और किताब विक्रेताओं को सख्त चेतावनी दी जाती है कि ऐसा नहीं चलेगा।

वहीं अभिभावक भी बच्चों के भविष्य और स्कूल, किताब विक्रेताओं के रसूख के आगे स्वयं को बौना महसूस करते हैं। इस गोरखधंधे की आड़ में किताब विक्रेताओं ने टैक्स चोरी का एक नया रास्ता निकाल लिया है। इसके चलते वे अभिभावकों को बिल तक नहीं देते हैं।

अभिभावकों का कहना है कि जिले में किसी भी पुस्तक विक्रेता के पास से किताबें खरीदी जायें पर उन्हें पक्के बिल नहीं दिये जा रहे हैं। कर सलाहकारों का कहना है कि इस मामले में डिपो संचालक सीधे तौर पर टैक्स चोरी कर रहे हैं। यदि वे पक्का बिल देंगे और सीधे उनके खाते में पैसा जायेगा तो इससे उनकी इन्कम दिखायी देगी।

बदल दिये जाते हैं प्रकाशक : अभिभावकों का कहना है कि वे बच्चों को सीनियर छात्र की पुरानी किताबें भी लेकर नहीं दे सकते हैं। स्कूल यहाँ भी चालाकी दिखाते हैं। कोर्स में पढ़ायी जाने वाली किताबें वे अलग – अलग पब्लिशर की खरीदने को कहते हैं और इसे हर साल बदल भी देते हैं, ताकि बुक डिपो से ही किताबें खरीदें।

कर सलाहकारों की मानें तो एजुकेशन सिस्टम में एक बड़ा गु्रप काम कर रह है। उनके पास हर जिम्मेदारी से बचने के उपाय हैं। किताब आदि चीजों का बिल नहीं दे रहे हैं तो सीधी सी बात है कि उनकी योजना इन्कम टैक्स बचाने की है। शासन चाहे तो उसके द्वारा इस मामले में सख्त कार्यवाही की जा सकती है।